कमलनाथ सरकार को साबित करना होगा बहुमत, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार शाम 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट कराने का दिया आदेश
LiveLaw News Network
19 March 2020 7:28 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को शुक्रवार शाम 5 बजे तक बहुमत साबित करने का आदेश दिया है।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व अन्य बीजेपी नेताओं की ओर से दायर याचिका पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को बहुमत साबित करने के लिए राज्य विधानसभा में शुक्रवार शाम 5 बजे बहुमत परीक्षण आयोजित करना होगा।
पीठ ने कहा कि परीक्षण में मतों की गिनती हाथों खड़े करके की जानी चाहिए और कार्यवाही की वीडियो ग्राफी भी होनी चाहिए। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि यदि 16 बागी विधायक बहुमत परीक्षण में शामिल होना चाहते हैं, तो कर्नाटक और एमपी पुलिस महानिदेशकों को उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
उल्लेखनीय है मौजूदा याचिका पर बुधवार को पूरे दिन सुनवाई हुई थी। गुरुवार को भी पूरे दिन की सुनवाई के बाद पीठ ने लगभग 6.15 बजे आदेश पारित कर दिया।
सुनवाई के दूसरे दिन गुरुवार को पीठ ने क्रमशः मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं डॉ एएम सिंघवी और कपिल सिब्बल की दलीलें सुनीं। उनकी दलीलों में मुख्य मुद्दा यह था कि जब विधानसभा सत्र चल रहा हो तो न्यायालय फ्लोर टेस्ट आयोजित करने का निर्देश नहीं दे सकता। अदालत ने पिछले मामलों में भी ऐसा आदेश नहीं दिया है।
सिब्बल ने कहा, "जब सदन नहीं चल रहा हो तो राज्यपाल को सत्र बुलाने की शक्ति होती है। यदि सरकार बहुमत खो चुकी हो तो तो सदन को बुलाने के लिए एक संवैधानिक जनादेश होना चाहिए।... ऐसा कभी नहीं हुआ है कि सत्र चल रहा हो और राज्यपाल ने बहुमत परीक्षण का आदेश दिया हो।"
उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा मामले में फ्लोर टेस्ट का आदेश "एक निर्वाचित सरकार को गिराने" के लिए दिया गया है। सिब्बल ने जिसे एक "संवैधानिक पाप" कहा।सिब्बल ने कहा कि जगदंबिका पाल मामले में भी दोनों पक्षों के सहमत होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सिंघवी से पूछा "क्या आपका तर्क यह है कि सत्र के बीच विधानसभा में बहुमत परीक्षण तभी किया जा सकता है, जब अविश्वास प्रस्ताव पारित किया जा चुका हो?"
मनु सिंघवी ने जवाब दिया, "हां, मैं बहुत अनुगृहित हूं। दूसरा तरीका यह है कि यदि कोई मनी बिल विफल हो गया हो।"
उन्होंने आगे कहा कि सत्र जारी रहने की स्थिति में स्पीकर को फ्लोर टेस्ट के लिए कहना राज्यपाल की शक्तियों में शामिल नहीं है। मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंड की ओर से स्पीकर को भेजे गए पत्र का हवाला देते हुए, सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल पहले ही तय कर चुके हैं कि सरकार बहुमत खो चुकी है।
सिंघवी ने यह भी कहा कि केरल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे कई राज्यों की विधानसभाओं को COVID19 के मद्देनजर निलंबित किया गया है। संसद के स्थगन पर भी विचार किया जा रहा है। सिंघवी ने पूछा, ऐसे हालत में मध्य प्रदेश की विधानसभा को स्थगित करने के स्पीकर के फैसले को विकृत कैसे कहा जा सकता है?
मध्य प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा ने कहा कि राज्यपाल "राजनीतिक कठपुतली" नहीं बन सकते हैं? उन्होंने पूछा, "राज्यपाल कैसे यह तय कर सकते हैं कि सरकार अल्पमत में है, जबकि बागी विधायकों के इस्तीफे को स्पीकर ने स्वीकार नहीं किया है?
जवाबी दलील में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि राज्यपाल सत्र के दरमियान बहुमत परीक्षण का आदेश नहीं दे सकते। उन्होंने कहा कि एसआर बोम्मई मामले में बहुमत परीक्षण का आदेश दिया गया था, जबकि उस समय कर्नाटक विधानसभा का सत्र चल रहा था।
रोहतगी ने सिंघवी और सिब्बल के तर्कों को 'गलत' करार दिया और कहा कि गवर्नर फ्लोर टेस्ट कराने के लिए बाध्य हैं, यदि उन्हें लगता है कि सरकार बहुमत खो चुकी है। ऐसे में यह बिलकुल मायने नहीं रखता कि सदन सत्र में है या नहीं। रोहतगी ने कहा, "हर दिन महत्वपूर्ण है, विधायकों की खरीद-फरोख्त के लिए न्योता है। सत्ता में गुजर रहा कमलनाथ सरकार हर मिनट असंवैधानिक है।"
बागी विधायकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लंबित नहीं रख सकते हैं। सिंह ने कहा, "इस्तीफा देना और तटस्थ रहना हमारा अधिकार है। हमें कुछ भी करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।"
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रोहतगी की दलीलों का समर्थन करते हुए पीठ से तुरंत फ्लोर टेस्ट का आदेश पारित करने का आग्रह किया। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और बागी विधायकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह को सुनवाई के पहले दिन बुधवार को सुना था।
कोर्ट ने दिया सुझाव
गुरुवार को सुनवाई के दरमियान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने एक तटस्थ स्थल पर स्वतंत्र पर्यवेक्षक की नियुक्ति का सुझाव दिया ताकि यह पता लगाया जा सके कि बागी विधायक अपनी इच्छा पर काम कर रहे या नहीं।
विधायक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह इस प्रस्ताव से सहमत थे, हालांकि सिंघवी ने इसे स्वीकार नहीं किया। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि स्पीकर एनपी प्रजापति वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए विधायकों से बातचीत कर सकते हैं। इस सुझाव को भी सिंघवी ने ठुकरा दिया।
सिंघवी ने कहा कि यह संवैधानिक स्तर पर गलत होगा यदि न्यायालय विधानसभा अध्यक्ष को दिशा-निर्देश देना शुरू कर दे कि सदन की कार्यवाही कैसे की जाए।
मामले की पृष्ठभूमि
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन ने मुख्यमंत्री को कमलनाथ को 16 मार्च तक बहुमत साबित करने को कहा था, हालांकि 16 मार्च को बहुमत परीक्षण के बजाय मध्य प्रदेश की विधानसभा बजट सत्र तक के लिए स्थगित कर दी गई।
मध्य प्रदेश विधानसभा 230 सीटें हैं, जिसमें कांग्रेस के पास 114 सीटें हैं और भाजपा के पास 107 सीटें हैं। दिसंबर 2018 में कांग्रेस ने 7 अन्य विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी।
बीजेपी नेताओं की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया था कि 22 कांग्रेस विधायक 10 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप चुके हैं। याचिका में कहा गया था कि भाजपा ने 14 मार्च को राज्यपाल को एक पत्र सौंपकर मध्य प्रदेश विधानसभा में तत्काल बहुमत परीक्षण की मांग की थी। राज्यपाल ने 16 मार्च को फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था, हालांकि सोमवार को सदन 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया गया।