सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार-हत्या मामले में बिना किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा को 30 साल के कारावास में बदला

LiveLaw News Network

6 Jan 2022 5:51 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने आजीवन कारावास की सजा के आदेश को बिना किसी छूट के संशोधित करते हुए 30 साल की सजा में बदल दिया।

    आरोपी को 10 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था।

    ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376-ए, 302, 363,201 के तहत दोषी ठहराया था। साथ ही यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 6 ('पॉक्सो एक्ट') के तहत मौत की सजा दी थी।

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट मृत्यु के संदर्भ का उत्तर देते हुए ने अपने आक्षेपित निर्णय में अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था लेकिन मृत्युदंड को आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया। हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि आजीवन कारावास अपीलकर्ता के प्राकृतिक जीवन तक रहेगा।

    सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक अपील का निपटारा करते हुए आजीवन कारावास की सजा के आदेश को बिना किसी छूट के 30 साल की सजा में बदल दिया।

    कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376-ए अपराध करने के लिए सजा का प्रावधान करती है जिसकी अवधि 20 वर्ष से कम नहीं होगी और जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। इस आलोक में बिना किसी छूट के 30 साल के कारावास की संशोधित सजा भारतीय दंड संहिता की धारा 376-ए के मापदंडों के अंतर्गत आएगी।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि POCSO अधिनियम की धारा छह में यह भी प्रावधान है कि गंभीर यौन हमले के लिए सजा एक अवधि के लिए कठोर कारावास होगी, जो बीस साल से कम नहीं होगी, लेकिन जो आजीवन कारावास या मौत की सजा तक बढ़ सकती है।

    केस शीर्षक: अरविंद @ छोटू ठाकुर बनाम मध्य प्रदेश राज्य

    वकील: याचिकाकर्ता के लिए एओआर अपर्णा झा; प्रतिवादी के लिए एओआर पशुपति नाथ राजदान

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story