रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग की अर्जी पर SC ने कहा, देखेंगे

LiveLaw News Network

5 Aug 2019 3:38 PM GMT

  • रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग की अर्जी पर SC ने कहा, देखेंगे

    रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग करने की याचिका पर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश जारी नहीं किया है। सोमवार को याचिकाकर्ता की ओर से सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग की मांग की गई। कहा गया कि फिलहाल सुनवाई की रिकॉर्डिंग कराई जा सकती है। लेकिन जस्टिस एस ए बोबड़े ने कह् कि ये संस्थानिक फैसला है और इसके लिए CJI से बात करनी होगी।

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व विचारक के एन गोविंदाचार्य ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की दिन-प्रतिदिन की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। ये सुनवाई मंगलवार 6 अगस्त से शुरू होने वाली है।

    पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाले पैनल ने गुरुवार को अयोध्या विवाद को सुलझाने में मध्यस्थता कार्यवाही की विफलता के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी और इसके बाद पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को 6 अगस्त से दिन-प्रतिदिन की शुरुआत करने का फैसला किया है।

    वकील विराग गुप्ता के माध्यम से दायर की गई याचिका में शीर्ष अदालत के सितंबर 2018 के फैसले का उल्लेख किया गया है जिसमें कहा गया था कि अदालत की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग होनी चाहिए।याचिकाकर्ता के वकील सोमवार को तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेख कर सकते हैं।

    याचिका के अनुसार लगभग एक साल बीतने के बावजूद अभी तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया जा सका है। याचिका में कहा गया है कि देश के पास अयोध्या मामले की लाइव स्ट्रीमिंग की व्यवस्था करने के साधन मौजूद हैं।

    यह दावा किया गया है कि इस मामले की सुनवाई के लिए इस साल जनवरी में भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट को पहले ही एक पत्र लिखा गया था। गोविंदाचार्य ने याचिका में कहा, "यह मामला राष्ट्रीय महत्व का विषय है। करोड़ों लोग हैं ...., जो इस अदालत के समक्ष अपनी कार्यवाही देखना चाहते हैं, लेकिन सर्वोच्च अदालत में वर्तमान मानदंडों के कारण ऐसा नहीं कर सकते।"

    "लोग राम मंदिर मामले में शीघ्र न्याय के लिए बेताब हैं, जिसमें भगवान राम को पिछले कई वर्षों से एक अस्थायी तम्बू में रखा गया है.. यह मामला पिछले नौ वर्षों से उच्चतम न्यायालय में लंबित है और जनता बड़े पैमाने पर परेशान है।दलीलों में कहा गया है कि मामलों को तय करने में देरी के पीछे के कारणों को जानने में सबकी दिलचस्पी है।

    याचिकाकर्ता यह भी कह रहे हैं कि संविधान में भगवान राम के चित्र हैं इसलिए अयोध्या मामले की लाइव स्ट्रीमिंग "संवैधानिक देशभक्ति" को पूरा करेगी।

    " .. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि संविधान की मूल प्रतियां ही भगवान राम के चित्रों का विस्तार करती हैं। यह प्रस्तुत किया गया है कि इस न्यायालय के समक्ष कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग संवैधानिक देशभक्ति के जनादेश को भी पूरा करेगी।"

    दरअसल SC में अपीलों का समूह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ है, जिसमें फैसला सुनाया गया था कि अयोध्या की 2.77 एकड़ भूमि को 3 भागों में विभाजित किया जाए, जिसमें 1/3 हिस्से में राम लला या शिशु राम के लिए हिंदू सभा द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाना है, इस्लामिक सुन्नी वक्फ बोर्ड में 1/3 और शेष 1/3 हिस्सा हिंदू धार्मिक संप्रदाय निर्मोही अखाड़ा को दिया जाए।

    2: 1 बहुमत से, जस्टिस एस यू खान,जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस डी वी शर्मा ने कहा था कि ध्वस्त तीन-गुंबद वाली संरचना के मध्य गुंबद के नीचे का हिस्सा जहां राम लला की मूर्ति को एक मंदिर में रखा गया था, "हिंदुओं की आस्था और विश्वास के अनुसार भगवान राम का जन्मस्थान था। "

    जस्टिस शर्मा ने अपने विवादास्पद फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि "विवादित स्थल भगवान राम की जन्मभूमि है" और यह माना कि हिंदुओं का विवादित स्थल पर विशेष अधिकार था।

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