FIR में ज्ञात आरोपी का नाम न लेना घातक चूक: सुप्रीम कोर्ट ने हत्या की सजा रद्द की
Amir Ahmad
9 Dec 2025 3:37 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (8 दिसंबर) को एक हत्या मामले में दोषसिद्धि को रद्द करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी के अपराध को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा, क्योंकि FIR में एक अहम चूक हुई थी।
अदालत ने पाया कि सूचक को आरोपी की पहचान की जानकारी होने के बावजूद FIR में उसका नाम दर्ज नहीं किया गया, जो पूरे मामले की नींव को कमजोर करने वाला तथ्य है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि मृतक के पिता, जिन्होंने FIR दर्ज कराई थी, उन्हें अपने बहू से हमलावर की पहचान की जानकारी मिलने के बावजूद अपीलकर्ता-आरोपी का नाम FIR में शामिल नहीं किया।
कोर्ट ने यह माना कि यह चूक अभियोजन के मामले के मूल में प्रहार करती है।
मामला छत्तीसगढ़ के एक गांव में हुई हत्या से जुड़ा था, जहां रात के समय दो नकाबपोश लोगों ने मृतक पर हमला किया। मृतक के पिता (PW-1) ने अपनी बहू (PW-2) के बयान के आधार पर FIR दर्ज कराई, जो इस घटना की एकमात्र चश्मदीद गवाह थी।
प्रारंभिक रिपोर्ट में हमलावरों का जिक्र केवल नकाबपोश अंजान व्यक्तियों के तौर पर किया गया। हालांकि, चार दिन बाद अपने CrPC की धारा 161 के बयान में PW-2 ने दावा किया कि उसने एक हमलावर की पहचान कर ली थी, जो मृतक का बहनोई था।
उसका कहना था कि हमलावर का मास्क खिसक गया था और उसने आवाज से भी उसे पहचान लिया था। अभियोजन ने FIR में आरोपी का नाम न जोड़ने को PW-2 की तबीयत खराब होने और सदमे की स्थिति से जोड़ा।
इस दलील को खारिज करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ ने फैसले में कहा कि PW-2 ने हमले से जुड़ी तमाम सूक्ष्म जानकारियां जैसे हमलावरों के आने का समय, उनकी कद-काठी, साथ लाए हथियार, मृतक को उठाकर ले जाने का तरीका और बाद में सुनाई देने वाली चीखें विस्तार से बताई हैं।
ऐसे में यह अविश्वसनीय है कि वह केवल बीमारी या सदमे के चलते आरोपी का नाम अपने ससुर को बताना भूल गई हों। अदालत के अनुसार, इस कमी को दूर करने के लिए बाद में एक कहानी गढ़ी गई और विलंबित पुलिस बयान में आरोपी का नाम जोड़ा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निष्कर्ष के समर्थन में राम कुमार पांडे बनाम मध्य प्रदेश राज्य (AIR 1975 SC 1026) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यदि आरोपी की पहचान की जानकारी होते हुए भी उसका नाम FIR में नहीं लिखा गया हो तो यह अभियोजन के लिए घातक साबित हो सकता है।
ऐसा तथ्य साक्ष्य अधिनियम की धारा 11 के अंतर्गत प्रासंगिक है क्योंकि यह सीधे तौर पर अभियोजन के पूरे मामले की विश्वसनीयता और संभाव्यता को प्रभावित करता है।
कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि FIR में आरोपी का नाम न होना एक गंभीर चूक है, जो मामले की जड़ पर चोट करती है और अभियोजन की विश्वसनीयता को पूरी तरह कमजोर कर देती है।
अदालत ने आगे कहा कि एक बार जब पहचान से जुड़ा साक्ष्य हट जाता है तो रिकॉर्ड पर ऐसा कोई भरोसेमंद साक्ष्य शेष नहीं बचता जो आरोपी को अपराध से जोड़ सके।
इन परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की अपील स्वीकार करते हुए उसकी हत्या की सजा को रद्द कर दिया।

