COVID काल में ड्यूटी करते हुए जान गंवाने वाले निजी डॉक्टरों के परिजनों को भी मिलेगा पीएम बीमा योजना का लाभ : सुप्रीम कोर्ट
Amir Ahmad
11 Dec 2025 5:38 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि COVID-19 महामारी के दौरान अपनी मेडिकल सेवाएं देते हुए जिन निजी डॉक्टरों की मृत्यु हुई उनके परिवार भी केंद्र सरकार की “प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज : COVID-19 से लड़ने वाले स्वास्थ्य कर्मियों के लिए बीमा योजना” के तहत मुआवजे के पात्र हैं।
अदालत ने कहा कि डॉक्टर का सरकार द्वारा औपचारिक रूप से रिक्विज़िशन किया जाना अनिवार्य शर्त नहीं है।
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि निजी डॉक्टर इस योजना का लाभ नहीं ले सकते।
फैसले का उच्चारण करते हुए जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि कोविड अवधि के दौरान डॉक्टरों की सेवाएं राष्ट्र द्वारा सिद्धांततः मांगी गई थीं, इसलिए यह सवाल कि कोई डॉक्टर सक्रिय रूप से कार्य कर रहा था या नहीं, साक्ष्यों के आधार पर तय किया जाएगा। उन्होंने कहा कि महामारी में बलिदान देने वाले डॉक्टरों के परिवारों को यह नहीं बताया जा सकता कि उन्हें मुआवजा नहीं मिलेगा।
यह निर्णय महामारी के दौरान अपनी जान गंवाने वाले अनेक निजी डॉक्टरों के परिवारों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है।
मामले की पृष्ठभूमि में बताया गया कि यह योजना कोरोना ड्यूटी के दौरान संक्रमित होकर मृत्यु होने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को 50 लाख रुपये का बीमा कवर प्रदान करती है।
इस मामले में अग्रणी याचिकाकर्ता डॉ. बी.एस. सुर्गडे की पत्नी हैं, जिनकी जून 2020 में कोविड संक्रमण से मृत्यु हो गई थी। बीमा कंपनी ने उनका दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि डॉ. सुर्गडे निजी प्रैक्टिस कर रहे थे और उन्हें नवी मुंबई महानगरपालिका ने कोविड-19 ड्यूटी के लिए औपचारिक रूप से नियुक्त नहीं किया था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बीमा कंपनी के इस निर्णय को सही माना था।
इस फैसले को चुनौती देते हुए याचिका सुप्रीम कोर्ट पहुंची, जहां कई अन्य डॉक्टरों के परिजन भी कार्यवाही में जुड़े।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अत्यंत सार्वजनिक महत्व का विषय बताते हुए कहा कि यह सरकार द्वारा महामारी के दौरान स्वास्थ्य कर्मियों को दिए गए आश्वासन से जुड़ा मुद्दा है।
अक्तूबर 2025 की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर विचार किया था कि क्या वे डॉक्टर, जिन्होंने बिना किसी सरकारी आदेश के अपने स्तर पर मरीजों का इलाज जारी रखा उन्हें भी योजना में शामिल किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा था कि समाज मेडिकल पेशे को सुप्रीम सम्मान देता है और ऐसे डॉक्टरों के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
अदालत ने अपने अवलोकन में यह भी संकेत दिया कि दावों के निर्धारण में यह देखा जाएगा कि डॉक्टर वास्तव में महामारी के दौरान सक्रिय मेडिकल सेवाओं में लगे थे और मृत्यु कोविड संक्रमण के कारण हुई थी।
अदालत ने केंद्र सरकार से समानांतर योजनाओं का डेटा प्रस्तुत करने और बीमा कंपनियों को वैध दावों का निस्तारण सुनिश्चित करने को भी कहा था।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल नीति के दायरे का विस्तार करता है बल्कि उन हजारों परिवारों के लिए न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है, जिन्होंने COVID-19 के दौरान अपने प्रियजनों को खोया और लंबे समय से मान्यता व मुआवजे की मांग कर रहे थे।

