सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को लगाई फटकार: गिरफ्तारी पर सवाल पूछने के बजाय जमानत पर फैसला करना चाहिए

Amir Ahmad

5 Sept 2025 1:42 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को लगाई फटकार: गिरफ्तारी पर सवाल पूछने के बजाय जमानत पर फैसला करना चाहिए

    सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे आरोपी को अग्रिम ज़मानत (Anticipatory Bail) देते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की तीखी आलोचना की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने अस्पष्ट और असामान्य आदेश पारित किया, जिसमें आरोपी की जमानत याचिका पर फैसला करने के बजाय पुलिस से पूछा गया कि उसे चार साल तक क्यों नहीं गिरफ़्तार किया गया।

    जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को या तो अग्रिम जमानत मंज़ूर करनी चाहिए थी या फिर उसे ठुकरा देना चाहिए था। अदालत ने टिप्पणी की कि जब चार साल तक आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई तो यह अपने आप में जमानत देने के लिए पर्याप्त आधार था।

    मामला भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 और 7A तथा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120B के तहत दर्ज FIR से संबंधित है। आरोपी ने गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग की थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने उसके आवेदन पर फैसला करने की बजाय पंजाब पुलिस के डीजीपी से हलफ़नामा मांगा कि चार्जशीट दाख़िल क्यों नहीं की गई और आरोपी की गिरफ्तारी अब तक क्यों नहीं हुई। इस आदेश को आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

    सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि 2021 की FIR में आरोपी ने 2025 में अग्रिम ज़मानत क्यों मांगी। इस पर आरोपी ने बताया कि पहले उसे लगा कि उसके ख़िलाफ़ कोई मामला नहीं है और निलंबन भी रद्द कर उसे 27 सितंबर, 2023 को सेवा में बहाल कर दिया गया था। हालांकि, आर्थिक अपराध शाखा से पेशी का नोटिस आने के बाद उसे गिरफ्तारी का डर हुआ।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का रुख़ न केवल ग़लत था बल्कि अनुचित भी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि सह-आरोपी, जिस पर रिश्वत लेने का सीधा आरोप था, उसको पहले ही अग्रिम जमानत मिल चुकी है। ऐसे में चार साल तक गिरफ्तारी न होना आरोपी के पक्ष में एक महत्वपूर्ण तथ्य था।

    आख़िरकार, सुप्रीम कोर्ट ने मामले का निपटारा करते हुए आदेश दिया कि अगर आरोपी को गिरफ़्तार किया जाता है तो उसे जांच अधिकारी द्वारा तय की जाने वाली शर्तों के साथ ज़मानत पर रिहा किया जाए।

    केस टाइटल- Gursewak Singh v. State of Punjab

    Next Story