Breaking: हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों का अलग-अलग फैसला, मामला सीजेआई को भेजा गया

Brij Nandan

13 Oct 2022 5:12 AM GMT

  • हिजाब केस

    हिजाब केस

    हिजाब मामले (Hijab Case) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के दोनों जजों ने अलग-अलग फैसला सुनाया। एक जज ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, वहीं दूसरे जज ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज किया। मामला सीजेआई के पास भेजा जाएगा। मामला बड़ी बेंच को भेजा जाएगा।

    सुप्रीम कोर्ट ने आज 10 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद 22 सितंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसने शैक्षणिक संस्थानों में मुस्लिम छात्रों द्वारा हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को बरकरार रखा था।

    जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया।

    उन्होंने कहा,

    "उच्च न्यायालय ने गलत रास्ता अपनाया। अनुच्छेद 14 और 19 का मामला। यह पसंद का मामला है, न ज्यादा और न ही कम।"

    जस्टिस सुधांशु ने कहा कि उनके मन में सबसे बड़ा सवाल बालिकाओं की शिक्षा को लेकर है।

    "क्या हम उनके जीवन को बेहतर बना रहे हैं? यह मेरे दिमाग में एक सवाल है। मैंने 5 फरवरी के सरकारी आदेश को रद्द कर दिया है और प्रतिबंधों को हटाने का आदेश दिया है।"

    दूसरी ओर, जस्टिस गुप्ता ने 11 मुद्दों को तय किया और अपील के खिलाफ सभी सवालों के जवाब दिए।

    मामले को उचित निर्देशों के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाएगा।

    क्या है पूरा मामला?

    पीठ के समक्ष 23 याचिकाओं का एक बैच सूचीबद्ध किया गया है। उनमें से कुछ मुस्लिम छात्राओं के लिए हिजाब पहनने के अधिकार की मांग करते हुए सीधे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर रिट याचिकाएं हैं। कुछ अन्य विशेष अनुमति याचिकाएं हैं जो कर्नाटक हाईकोर्ट के 15 मार्च के फैसले को चुनौती देती हैं, जिसने सरकारी आदेश दिनांक 05.02.2022 को बरकरार रखा था। इसने याचिकाकर्ताओं और अन्य ऐसी महिला मुस्लिम छात्रों को अपने पूर्व-विश्वविद्यालय कॉलेजों में हेडस्कार्फ़ पहनने से प्रभावी रूप से प्रतिबंधित कर दिया था।

    चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की एक पूर्ण पीठ ने माना था कि महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना इस्लाम की एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। पीठ ने आगे कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में ड्रेस कोड का प्रावधान याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।



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