सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में जाति आधारित जनगणना की मांग वाली जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

26 Feb 2021 10:12 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में जाति आधारित जनगणना की मांग वाली जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने (शुक्रवार) एक जनहित याचिका में नोटिस जारी की, जिसमें सरकार को 2021 में पिछड़े वर्गों के लिए जाति आधारित जनगणना करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई।

    इसके साथ ही याचिका में सरकार के गृह मंत्रालय, सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग (Social Justice & Empowerment Department) और पिछड़े वर्ग के राष्ट्रीय आयोग को इसे संचालित करने के लिए निर्देश की देने मांग की गई ।

    आज सुनवाई के दौरान, सीजेआई एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बोपन्ना और न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यम की तीन-न्यायाधीश पीठ के समक्ष प्रस्तुत याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता जीएस मणि ने कहा कि अदालत ने वर्तमान मामले के समान एक मामले में नोटिस जारी किया था।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि,

    "शिक्षा, रोजगार क्षेत्र, पंचायत राज चुनावों और नगर निगम चुनावों में आरक्षण लागू करने में पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, और इस तरह की जनगणना के अभाव में पिछड़े वर्गों के आबादी के अनुपात में आरक्षण का प्रतिशत तय करने में समस्याएं पैदा होती हैं।"

    याचिका के अनुसार, सरकार 2021 में एक राष्ट्रीय जनगणना करने की योजना बना रही है। सरकार की ओर से जारी प्रपत्र में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी), हिंदू, मुस्लिम आदि के विवरण के साथ कुल 32 कॉलम बनाए गए हैं, लेकिन इस प्रपत्र में अन्य पिछड़ा वर्ग के कॉलम को शामिल नहीं किया गया है। पिछड़े वर्ग के समुदाय का जाति आधारित जनगणना करना आवश्यकता है।"

    दलील में कहा गया है कि,

    "भारत में केंद्र और राज्य सरकारें शिक्षा, रोजगार, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों के लिए कई योजनाओं बना रही है और लागू कर रही है। इसके पीछे सरकार का उद्देश्य है कि पिछड़े वर्गों के लोगों का विकास सुनिश्चित किया जा सके और इस समुदाय को गरीबी से बाहर निकाला जा सके। इन योजनाओं के लिए हर साल एक बजट आवंटित किया जाता है, लेकिन जाति आधारित सर्वेक्षण की कमी के लिए पिछड़े वर्गों में बजट साझा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।"

    दलील में आगे कहा गया कि,

    "साल 2017 में न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग बनाया गया था। इस आयोग को ओबीसी समुदाय में से हाशिए के समुदायों के लाभ के लिए सिफारिश करने के लिए स्थापित किया गया था। आयोग को भी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए अधिक समय की आवश्यकता है और 31 जनवरी तक छह महीने यानी 31 जनवरी 2021 तक के लिए अपना नौवां विस्तार प्राप्त किया है। केंद्रीय मंत्री को एक पत्र भी लिखा गया था जिसमें पिछड़े समुदाय से संबंधित मुद्दों को इंगित किया गया है और पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना के लिए अनुरोध किया गया था, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला है।"

    याचिका में यह भी कहा गया है कि,

    "संवैधानिक जनादेश के तहत, जहां एक निषेध है कि राज्य किसी भी नागरिक के खिलाफ केवल धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करेगा, राज्य को भी सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित वर्गों, जातियों और जनजातियों के उत्थान और महिलाओं और बच्चों के लिए प्रावधान बनाने के लिए सशक्त बनाया जाए।"

    याचिका एडवोकेट अंजु वर्की द्वारा दायर की गई है और एडवोकेट महेश चरी द्वारा तैयार गई है।

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