सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज में इंग्लिश लेक्चरर को बहाल करने के लिए अनुच्छेद 142 की शक्तियों का इस्तेमाल किया

Shahadat

30 Aug 2023 10:54 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज में इंग्लिश लेक्चरर को बहाल करने के लिए अनुच्छेद 142 की शक्तियों का इस्तेमाल किया

    सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करते हुए अपीलकर्ता को अंग्रेजी लेक्चरर के पद पर बहाल करने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल किया।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    "इसलिए पर्याप्त न्याय करने के लिए यह उपयुक्त मामला है, जहां हमें पूर्णकालिक आधार पर उनकी नियुक्ति जारी रखने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग करना चाहिए।"

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस संजय करोल बेंच में शामिल थे।

    मामले की पृष्ठभूमि

    यह मुद्दा दूसरे प्रतिवादी (कॉलेज) के साथ अपीलकर्ता लेक्चरर की नौकरी के इर्द-गिर्द घूमता है, जो चौथे प्रतिवादी (शिवाजी यूनिवर्सिटी, कोल्हापुर, महाराष्ट्र) से संबद्ध है। 5 जुलाई 1993 को परमानेंट लेक्चरर के पदों पर आवेदन आमंत्रित करते हुए विज्ञापन (पहला विज्ञापन) प्रकाशित किया गया। उक्त विज्ञापन में दो पद विज्ञापित किये गये। एक ओपन कैटेगरी में और दूसरा अनुसूचित जाति श्रेणी के विरुद्ध है।

    अपीलकर्ता और पांचवें प्रतिवादी ने अन्य उम्मीदवार, अर्थात् एस.डी. पाटिल के साथ उक्त पदों के लिए आवेदन किया। यूनिवर्सिटी चयन समिति ने उपरोक्त तीन उम्मीदवारों की सिफारिश की। एस.डी. पाटिल का नाम योग्यता के क्रम में पहले स्थान पर था, पांचवें प्रतिवादी दूसरे स्थान पर और अपीलकर्ता तीसरे स्थान पर। हालांकि पांचवीं प्रतिवादी अनुसूचित जाति वर्ग से नहीं है, 26 अगस्त 1993 को पहली प्रतिवादी ने उसे एक वर्ष की अवधि के लिए अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित पद पर नियुक्त किया।

    एस.डी. पाटिल रोजगार में शामिल नहीं हुए। इसलिए अपीलकर्ता को पूर्णकालिक आधार पर एक शैक्षणिक वर्ष के लिए अंग्रेजी लेक्चरर के पद पर नियुक्त किया गया। इसके बाद अन्य विज्ञापन आए और पांचवां प्रतिवादी आवेदन करता रहा और इस पद पर बना रहा।

    चौथा विज्ञापन, दिनांक 17 जून 1996, अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित उसी पद के लिए आया। फिर पांचवें प्रतिवादी ने आवेदन किया। हालांकि, कॉलेज के प्रबंधन ने आरक्षित पद के विरुद्ध गोरख जगन्नाथ साठे को नियुक्त किया, जिसके कारण पांचवें प्रतिवादी की बर्खास्तगी का आदेश दिया गया।

    समाप्ति से व्यथित होकर पांचवें प्रतिवादी ने यूनिवर्सिटी और कॉलेज ट्रिब्यूनल, पुणे ('ट्रिब्यूनल') के समक्ष अपील दायर की, जिसमें अपीलकर्ता को पक्षकार नहीं बनाया गया। 5 फरवरी, 1998 के आदेश के अनुसार, ट्रिब्यूनल ने अपील की अनुमति दी और पांचवें प्रतिवादी को उसके मूल पद पर बहाल करने का निर्देश दिया।

    चूंकि इससे अंग्रेजी के तीन परमानेंट लेक्चरर हो जाएंगे, जिसके लिए कोई मंजूरी नहीं है, कॉलेज ने यूनिवर्सिटी से अपीलकर्ता को आधे समय या अंशकालिक शिक्षक के रूप में जारी रखने की मंजूरी देने का अनुरोध किया। हालांकि, यूनिवर्सिटी ने उक्त अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। इस प्रकार, 29 मार्च 2000 को पत्र द्वारा कॉलेज ने अपीलकर्ता को सूचित किया कि अगले शैक्षणिक वर्ष के लिए वह आधे समय के कार्यभार और आधे वेतन पर काम करेगी।

    परामर्शदाताओं का प्रस्तुतीकरण

    अपीलकर्ता की ओर से पेश सीनियर वकील ने कहा कि अपीलकर्ता की नियुक्ति पहले विज्ञापन के आधार पर की गई। यहां तक कि दूसरे विज्ञापन के आधार पर अपीलकर्ता का चयन भी कर लिया गया। दोनों प्रक्रियाओं में अपीलकर्ता को ओपन कैटेगरी के पद के लिए चुना गया। इस प्रकार, 26 अक्टूबर 1994 को कॉलेज ने अपीलकर्ता को ओपन कैटेगरी में नियुक्त करते हुए नियुक्ति पत्र जारी किया, जिस पर पांचवें प्रतिवादी ने कोई आपत्ति नहीं जताई।

    इसके विपरीत तीसरे और चौथे विज्ञापन के अनुसार, पांचवें प्रतिवादी ने उस पद के लिए आवेदन किया, जो अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है। वकील ने आगे कहा कि पांचवें प्रतिवादी ने ओपन कैटेगरी के तहत अपीलकर्ता की नियुक्ति को स्वीकार कर लिया। हालांकि, इसके लिए ट्रिब्यूनल से संपर्क करने और यह तर्क देने के लिए बहुत देर हो चुकी है कि वह पहले विज्ञापन के आधार पर प्रक्रिया में योग्यता के क्रम में अपीलकर्ता से ऊपर है।

    दूसरी ओर, पांचवें प्रतिवादी की ओर से पेश वकील ने कहा कि पहले विज्ञापन के अनुसार जब चयन प्रक्रिया आयोजित की गई तो योग्यता के क्रम में पांचवें प्रतिवादी को अपीलकर्ता से ऊपर दिखाया गया। इसलिए पांचवें प्रतिवादी को ओपन कैटेगरी के पद पर और अपीलकर्ता को अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित पद पर अस्थायी आधार पर नियुक्त किया जाना चाहिए।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    न्यायालय ने बताया कि यह स्थिति इसलिए उत्पन्न हुई, क्योंकि पांचवें प्रतिवादी ने पहले और दूसरे विज्ञापन के अनुसार अपीलकर्ता की नियुक्ति पर कभी आपत्ति नहीं जताई। उसने तीसरे और चौथे विज्ञापन के आधार पर आयोजित दो आगे की प्रक्रियाओं में भाग लिया। कोर्ट ने कहा कि इस प्रक्रिया में अपीलकर्ता के लिए अन्यत्र व्याख्याता पद पर नियुक्ति पाने की उम्र वर्जित हो गई।

    यह मानते हुए भी कि वर्ष 1994 में अपीलकर्ता को ओपन कैटेगरी के पद पर नियुक्त करके कॉलेज प्रबंधन द्वारा गलती की गई, अपीलकर्ता को पीड़ित होने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि दूसरी प्रक्रिया में वह योग्यता के क्रम में पहले स्थान पर थी। इस चयन को पांचवें प्रतिवादी द्वारा कभी चुनौती नहीं दी गई।

    इन तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर न्यायालय ने अपीलकर्ता की नियुक्ति को पूर्णकालिक आधार पर जारी रखने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्ति का इस्तेमाल किया। हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि पांचवें प्रतिवादी को परेशान किए बिना भी ऐसा किया जाएगा। अत: आदेश दिया गया कि अपीलार्थी को वरिष्ठता सूची में पांचवें प्रतिवादी के ठीक नीचे रखा जाए तथा लेक्चरर को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पद पर नियुक्त किया जाए।

    इसके अलावा, न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि यदि आवश्यक हो तो अतिरिक्त पद सृजित करके इस आदेश के अनुसार अंग्रेजी लेक्चरर के पद पर उसकी नियुक्ति की तारीख से अपीलकर्ता को वेतन के भुगतान के लिए आवश्यक अनुदान सहायता जारी की जाए।

    केस टाइटल: विजया भीकू कदम बनाम मायानी भाग शिक्षण प्रसारक मंडल और अन्य, 2023INSC775

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