सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण मामले की सुनवाई के लिए ओबीसी/अनारक्षित श्रेणी के न्यायाधीशों के बिना 'तटस्थ पीठ' की मांग करने वाले वादी पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया

Shahadat

20 July 2023 10:41 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण मामले की सुनवाई के लिए ओबीसी/अनारक्षित श्रेणी के न्यायाधीशों के बिना तटस्थ पीठ की मांग करने वाले वादी पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिकाकर्ता पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया, जिसने ओबीसी और अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों द्वारा दायर सार्वजनिक सेवा में आरक्षण में वृद्धि से संबंधित मामले की सुनवाई के लिए ऐसे न्यायाधीशों के साथ 'विशेष तटस्थ पीठ' के गठन की मांग की, जो न तो ओबीसी से हैं और न ही अनारक्षित श्रेणी से।

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की गई, जिसने विशेष पीठ के गठन के लिए दायर आवेदन को अनुमति देने से इनकार कर दिया।

    जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने जुर्माना लगाते हुए कहा,

    “हाईकोर्ट के आक्षेपित आदेश में हमें जो एकमात्र कमज़ोरी दिखती है, वह यह है कि आई.ए दायर करने वाले वादी पर भारी जुर्माना नहीं लगाया गया। नंबर 1873/2023 में रिट याचिका पर अपनी इच्छानुसार एक पीठ के गठन की मांग की गई।”

    कोर्ट ने अपने आदेश में ये कहा,

    “..गलत समझी गई इस विशेष अनुमति याचिका को याचिकाकर्ता पर 50,000/- रुपये का जुर्माना लगाते हुए खारिज किया जाता है। जुर्माना राशि आज से एक महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति के पास जमा की जाएगी।

    याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष आवेदन दायर कर विशेष पीठ के गठन का निर्देश देने की मांग की, जिसमें ऐसे सदस्यों को शामिल किया जाए, जो न तो ओबीसी से हों और न ही अनारक्षित श्रेणी से, यह तर्क देते हुए कि विचार किए जाने वाले मामले ओबीसी श्रेणी के उम्मीदवारों या अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों द्वारा दायर किए गए।

    याचिका सार्वजनिक सेवा में ओबीसी श्रेणी के लिए आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27% करने से संबंधित है और दूसरी अनारक्षित श्रेणी के व्यक्तियों से संबंधित है।

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आवेदन खारिज करते हुए कहा,

    “एक न्यायाधीश से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह किसी वादी या वकील के कहने मात्र से अपनी बात से अलग हो जाए। शपथ के अनुसार कारण तय करना नियम है जबकि मुकरना दुर्लभ अपवाद है।

    हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि इस मामले में किसी भी प्रकार की अस्वीकृति की आवश्यकता नहीं है।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    ".. दिए गए तथ्यों और परिस्थितियों में हममें से किसी एक द्वारा इनकार करना भय या पक्षपात, स्नेह या द्वेष के बिना न्याय प्रदान करने के लिए ली गई शपथ की अवहेलना होगी।"

    केस टाइटल: लोकेंद्र गुर्जर बनाम मध्य प्रदेश राज्य, अपील के लिए विशेष अनुमति (सी) संख्या। 9682/2023

    साइटेशन: लाइव लॉ (एससी) 540/2023

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