सुप्रीम कोर्ट ने मृत कर्मचारी को ग्रेच्युटी देने के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने पर उत्तर प्रदेश सरकार पर 50, 000 रुपए का जुर्माना लगाया

Shahadat

11 Feb 2023 12:22 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने मृत कर्मचारी को ग्रेच्युटी देने के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने पर उत्तर प्रदेश सरकार पर 50, 000 रुपए का जुर्माना लगाया

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार पर मृतक प्रोफेसर की पत्नी को डेथ कम रिटायरमेन्ट ग्रेच्यूटी लाभ के भुगतान से संबंधित आदेश के खिलाफ तुच्छ अपील दायर करने के लिए 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

    जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस बी.वी. रागरत्ना की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष राज्य सरकारों द्वारा तुच्छ अपील दायर करने की प्रथा की निंदा की।

    खंडपीठ ने कहा,

    “हम सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस तरह के मामलों को दायर करने वाले राज्य के अभ्यास का विरोध करते हैं। अतः अपील आज से चार सप्ताह की अवधि के भीतर अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवादी को 50,000 / - देय रूपये के अर्थदण्ड के साथ खारिज की जाती है।

    डॉ. विनोद कुमार उत्तर प्रदेश के राजकीय कॉलेज में लेक्चरर के पद पर कार्यरत थे। 2009 में सेवा के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी प्रियंका (मूल याचिकाकर्ता) ने कुमार को देय ग्रेच्युटी के भुगतान के लिए आवेदन किया। सरकार ने उसके दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सेवा में रहते हुए उसके पति ने 60 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होने का विकल्प नहीं चुना।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसे मंजूर कर लिया गया। राज्य को निर्देश दिया गया कि वह ग्रेच्युटी के लिए अपने पति को देय राशि की गणना 8% प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ करें। हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष राज्य द्वारा की गई अपील का भी वही हश्र हुआ।

    खंडपीठ ने कहा कि कुमार का जन्म 1.7.1951 को हुआ; वह 30.06.2011 को 60 वर्ष पूरे कर लेता। 16.09.2009 को सरकारी आदेश (जीओ) जारी किया गया, जिसके अनुसार वह 1.7.2010 को या उससे पहले 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने के अपने विकल्प का प्रयोग कर सकते थे। हालांकि, निर्धारित अवधि से पहले उनका निधन हो गया और उनके लिए 2009 के जीओ में उल्लिखित विकल्प का प्रयोग करने का कोई मौका नहीं था। इसने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा।

    कोर्ट ने आगे नोट किया,

    "डेथ कम रिटायरमेन्ट ग्रेच्यूटी परोपकारी योजना है और इसे प्रतिवादी को मृतक कर्मचारी के वारिस/आश्रित होने के नाते एकल न्यायाधीश द्वारा विस्तारित किया जाता है, जिसकी खंडपीठ द्वारा पुष्टि की जाती है। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में इस न्यायालय के किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।"

    [केस टाइटल: स्टेट ऑफ यू.पी. और अन्य बनाम प्रियंका एसएलपी (सी) नंबर 1595/2022]

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