सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अवैध निगरानी और तलाशी का आरोप लगाने वाले सरकारी कर्मचारी को अंतरिम संरक्षण प्रदान किया

Shahadat

1 Oct 2022 1:39 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरकारी कर्मचारी द्वारा दायर याचिका में नोटिस जारी किया, जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य को उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हुए उसके आवास पर लगातार तलाशी और निगरानी को रोकने के लिए निर्देश देने की मांग की गई।

    जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली ने याचिकाकर्ता को सुनवाई की अगली तारीख तक किसी भी कठोर कदम से सुरक्षा प्रदान की। उक्त कर्मचारी को छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा कथित रूप से परेशान किया गया।

    उन्होंने कहा,

    "सूचीबद्ध होने की अगली तिथि तक पीएस सिविल लाइंस, रायपुर में दर्ज एफआईआर नंबर 133/2022 (अनुलग्नक पी -4) के अनुसरण में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ता अनिवार्य रूप से एफआईआर रद्द करने की मांग कर रहा है। उसी के मद्देनजर, उसने याचिकाकर्ता को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,

    "अब आपके पास हाईकोर्ट के समक्ष उपाय हैं। आप एफआईआर रद्द करने की मांग कर रहे हैं, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के समक्ष जाएं।"

    याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने प्रस्तुत किया कि उनके मुवक्किल ने पहले ही हाईकोर्ट के समक्ष 18 याचिकाएं दायर की हैं और अधिकांश मामलों में उसकी रक्षा की गई। यह बताया गया कि छत्तीसगढ़ में वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था द्वारा याचिकाकर्ता को केवल इस आरोप के आधार पर परेशान किया जा रहा है कि वह विपक्ष का हमदर्द है।

    याचिकाकर्ता ने कहा,

    "मैंने हाईकोर्ट में 18 याचिकाएं दायर की हैं, उनमें से अधिकांश में हाईकोर्ट ने मेरी रक्षा की। मुख्यमंत्री के कार्यालय से मेरे खिलाफ एक डायरी है। मैं नीच सरकारी कर्मचारी हूं। यह शासन के सदस्यों द्वारा लगाया गया आरोप है। कहा गया कि मैं विपक्ष का हमदर्द हूं और यह रिकॉर्ड में है।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ चिंतित हैं कि अनिवार्य रूप से सीआरपीसी की धारा 482 के तहत रद्द की जाने वाली इस याचिका को अनुमति दी जाती है तो यह सुप्रीम कोर्ट में इस तरह याचिकाओं की बाढ़ ला देगा और वादी हाईकोर्ट को दरकिनार कर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इसी तरह की रिट याचिका दायर करेंगे।

    उन्होंने कहा,

    "हमने आरोप देखा, लेकिन अगर हम अनिवार्य रूप से यहां सीआरपीसी की धारा 482 पर सुनवाई करना शुरू कर देते हैं तो इसका कोई अंत नहीं होगा।"

    याचिकाकर्ता को पीड़ा देने में राज्य की दुर्भावनापूर्ण मंशा को प्रदर्शित करने के लिए रोहतगी ने पीठ को अवगत कराया कि याचिकाकर्ता के आवास की निगरानी की जा रही है; उसके बैंक खाते पिछले दो वर्षों से फ्रीज हैं; उसके आवास पर बिना वारंट के तलाशी ली जा रही है।

    उन्होंने कहा,

    "निगरानी है, मेरे घर में तलाशी चल रही है, बैंक खाते दो साल से फ्रीज है। वह बिना वारंट के खोज रहे हैं ..."

    उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता का नाम न तो एफआईआर में है और न ही आरोप पत्र में। इसके बाद राज्य पुलिस ने कहा कि उनके पास जानकारी है कि याचिकाकर्ता का आरोप एफआईआर में कथित अपराध के पीछे है।

    उन्होंने कहा,

    "मेरा नाम एफआईआर में नहीं है, चार्जशीट में भी मेरा नाम नहीं है। अब वे कह रहे हैं कि हमें 2-3 महीने पहले सूचना मिली है कि आप वेब-पोर्टल के पीछे हैं ..."

    याचिकाकर्ता को 2001 में लोक सेवक के रूप में भर्ती किया गया। वर्तमान में वह पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में संयुक्त आयुक्त के पद पर तैनात है। याचिका में आरोप लगाया गया कि 2018 में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद राज्य सरकार के शीर्ष पदाधिकारियों के बीच राज्य में "भगवाकरण" का आरोप लगाकर याचिकाकर्ता को उनके पद से हटाने के लिए सहमति बनी।

    याचिका के अनुसार, राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा अपने पद से याचिका को हटाने का निर्देश देने वाला नोट-शीट है। उसे हटाने की मांग करने वाले/निर्देश देने वाले सभी संचारों को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई। याचिकाकर्ता दावा किया कि जवाबी विस्फोट के रूप में राज्य ने ने तुच्छ जांच शुरू की है और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत उसके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज की।

    याचिकाकर्ता को परेशान करने की सरकार की कार्रवाई को कई याचिकाओं में हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई। अंत में इसने बिना किसी जबरदस्ती की कार्रवाई के पूर्ण स्थगन और अंतरिम राहत प्रदान की। वर्तमान याचिका में कहा गया कि उसने राज्य सरकार को नहीं रोका और उसने याचिकाकर्ता और अंततः उसकी पत्नी को परेशान करना जारी रखा।

    भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 504, 505(1)(बी) और 505(2), आईटी अधिनियम की धारा 67(ए) और अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 की धारा 4 और 5 के तहत 02.03.2022 को अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की गई। 26.04.2022 को आरोप पत्र दायर किया गया, जहां याचिकाकर्ता का उल्लेख नहीं किया गया। इसके बाद उसके आवास पर अवैध रूप से तलाशी अभियान चलाया गया। इसकी शिकायत प्रार्थी ने संबंधित अधिकारी से की।

    याचिकाकर्ता भी अपने निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हुए निगरानी में लग रहा है। अवैध तलाशी और निगरानी जारी है। 05.09.2022 को याचिकाकर्ता ने मेडिकलक कारणों का हवाला देते हुए छुट्टी का आवेदन दिया। उसी दिन उसने अग्रिम जमानत याचिका दायर की, जिसे अंततः ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके बाद हाईकोर्ट में एक और अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल की गई।

    वर्तमान याचिका एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड अभिनव श्रीवास्तव के माध्यम से दायर की गई।

    [केस टाइटल: अशोक चतुर्वेदी और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य।]

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