सुप्रीम कोर्ट ने अतिसंवेदनशील गवाह बयान केंद्रों को सिविल और फैमिली समेत सभी क्षेत्राधिकारों तक बढ़ाया
LiveLaw News Network
20 April 2022 12:33 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में (8 अप्रैल) सभी हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि वे 20 मई, 2022 तक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को परिचालित अतिसंवेदनशील गवाहों के बयान केंद्रों (वीडब्ल्यूडीसी) के लिए मॉडल दिशानिर्देशों का जवाब दें, ताकि जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली समिति , जिन्हें अखिल भारतीय वीडब्ल्यूडीसी प्रशिक्षण कार्यक्रम को लागू करने के लिए नियुक्त किया गया है, कार्यान्वयन के लिए एक समान राष्ट्रीय मॉडल प्रदान कर सके।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने यह भी कहा कि आपराधिक मामलों के अलावा, सिविल न्यायालयों, पारिवारिक न्यायालयों, किशोर न्याय बोर्डों और बाल न्यायालयों में मामलों में भी वीडब्ल्यूडीसी का उपयोग किया जाना चाहिए और संवेदनशील गवाहों के साक्ष्य दर्ज करने की अनुमति दी जानी चाहिए। पीठ ने इस संबंध में एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता विभा दत्ता मखीजा के सुझाव को स्वीकार कर लिया।
"वीडब्ल्यूडीसी के उपयोग की आपराधिक मामलों के अलावा, अन्य न्यायालयों के लिए अनुमति दी जानी चाहिए, जिसमें सिविल क्षेत्राधिकार, पारिवारिक न्यायालय, किशोर न्याय बोर्ड और बाल न्यायालय क्षेत्राधिकार शामिल हैं। सभी मामलों में संवेदनशील गवाहों के साक्ष्य दर्ज करने की अनुमति दी जानी चाहिए। रिपोर्ट में यह सुझाव उचित है और स्वीकार किया जाता है।"
उक्त समिति को वीडब्ल्यूडीसी के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण पर हाईकोर्ट के साथ जुड़ने का भी अधिकार है। पीठ ने कहा कि उसी के मद्देनज़र, उसने चित्र और दिशानिर्देश विकसित किए और हाईकोर्ट को यह विचार करने के लिए अग्रेषित किया कि क्या वीडब्ल्यूडीसी की स्थापना के लिए मौजूदा सेट अप में कोई नया निर्माण या संशोधन आवश्यक है।
वरिष्ठ अधिवक्ता, विभा दत्ता मखीजा और अदिति चौधरी, रजिस्ट्रार (सतर्कता) दिल्ली हाईकोर्ट ने पीठ को अवगत कराया कि समिति एक प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार करने की प्रक्रिया में है जिसमें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की भागीदारी की आवश्यकता होगी। पीठ ने कहा कि अगर समिति देश के बाहर के विशेषज्ञों से सलाह लेती है, तो वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म के जरिए फिलहाल ऐसा कर सकती है।
इसके अतिरिक्त, बेंच ने जस्टिस मित्तल को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में सचिव के साथ वीडब्ल्यूडीसी के संबंध में विकास को साझा करने के लिए कहा।
11 जनवरी, 2022 को, अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा तैयार किए गए दिशानिर्देशों को स्वीकार करते हुए " अतिसंवेदनशील गवाहों" की परिभाषा का विस्तार किया था।
इसने कहा कि अतिसंवेदनशील गवाहों की परिभाषा के तहत केवल बाल गवाह जिन्होंने 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है, तक ही सीमित नहीं होगी और अन्य बातों के साथ-साथ अतिसंवेदनशील गवाहों की निम्नलिखित श्रेणियों को शामिल करने के लिए विस्तारित किया जाएगा-
ए - सीआरपीसी की धारा 273 और 327 आईपीसी की धारा 354 के साथ यौन उत्पीड़न के सभी आयु के शिकार
बी- पॉक्सो अधिनियम की धारा 2(डी) के साथ पठित यौन उत्पीड़न के लिंग तटस्थ शिकार;
सी- साक्षी बनाम भारत संघ में निर्णय के अनुच्छेद 34(1) के साथ पठित आईपीसी की धारा 377 के तहत यौन उत्पीड़न के सभी आयु और लिंग के शिकार
डी- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 के साथ पठित 2017 के मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम की धारा 2(एस) के तहत परिभाषित मानसिक बीमारी से पीड़ित गवाह;
इ- महेंद्र चावला बनाम भारत संघ 2019 14 SCC 615 में इस अदालत द्वारा अनुमोदित केंद्र सरकार की गवाह सुरक्षा योजना 2018 के तहत किसी भी गवाह को खतरे में मानना
एफ- कोई भी बोलने या सुनने से बाधित व्यक्ति या किसी अन्य दिव्यांगता से पीड़ित व्यक्ति जिसे सक्षम अदालत द्वारा अतिसंवेदनशील गवाह माना गया है;
जी- किसी अन्य गवाह जिसे संबंधित अदालत द्वारा अतिसंवेदनशील समझा गया है
पृष्ठभूमि
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने महाराष्ट्र राज्य बनाम बंडू में देश के हर जिले में अतिसंवेदनशील गवाह अदालत कक्ष स्थापित करने के आदेश दिए थे।
2019 में, महाराष्ट्र राज्य बनाम बंडू [(2018) 11 SCC 163] में इस न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन में अतिसंवेदनशील गवाह बयान अदालत कक्षों की स्थापना के संबंध में स्टेटस रिपोर्ट के लिए सभी हाईकोर्ट को संबंधित हाईकोर्ट के रजिस्ट्रारों के माध्यम से नोटिस जारी करने का निर्देश दिया गया था।
बंडू के मामले में कोर्ट ने इस सुझाव पर विचार किया था कि अदालत में अनुकूल माहौल के हित में आपराधिक मामलों में अतिसंवेदनशील गवाहों के परीक्षण के लिए विशेष केंद्र होना चाहिए ताकि किसी अतिसंवेदनशील पीड़ित को बयान देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
कोर्ट ने कहा था,
"ऐसे केंद्रों को सभी आवश्यक सुरक्षा उपायों के साथ स्थापित किया जाना चाहिए। हमारा ध्यान दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक मामलों में अतिसंवेदनशील गवाहों के साक्ष्य दर्ज करने के लिए जारी दिशा-निर्देशों की ओर आकर्षित किया गया है और यह भी तथ्य है कि दिल्ली में इस उद्देश्य से चार विशेष केंद्र स्थापित किए गए हैं।। हम उपरोक्त सुझाव में योग्यता पाते हैं।"
प्रबंधन के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के महत्व को ध्यान में रखते हुए वीडब्ल्यूडीसी का संचालन और न्यायिक अधिकारियों, बार के सदस्यों और अदालत के कर्मचारियों सहित सभी हितधारकों को संवेदनशील बनाने के लिए, जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गीता मित्तल को एक अखिल भारतीय वीडीडब्ल्यूसी प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करने की डिजाइनिंग के लिए समिति की अध्यक्षता करने के आदेश दिए गए हैं अध्यक्ष का प्रारंभिक कार्यकाल दो वर्ष की अवधि के लिए होगा। सभी हाईकोर्ट और संबंधित भूमिका सौंपने वालों को अध्यक्ष द्वारा तैयार किए जा सकने वाले मॉड्यूल के संदर्भ में प्रशिक्षण कार्यक्रमों के संचालन में सुविधा प्रदान करने और पूर्ण सहयोग देने की आवश्यकता होगी।
अदालत ने कहा था कि प्रत्येक हाईकोर्ट की वीडब्ल्यूडीसी समिति द्वारा तैयार की गई लागतों के अनुमान पर, राज्य सरकार प्रस्ताव दाखिल करने की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर अपेक्षित धनराशि को शीघ्रता से मंज़ूरी देगी और उसे वितरित करेगी।
राज्य सरकार वित्त विभाग से लिए गए एक नोडल अधिकारी को नामित करेगी, जो पदेन हाईकोर्ट की वीडब्ल्यूडीसी समिति के काम से जुड़ा होगा और उपरोक्त निर्देशों के अनुसार हाईकोर्ट द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव के कार्यान्वयन की सुविधा प्रदान करेगा। हाईकोर्ट यह सुनिश्चित करेगा कि चार महीने की अवधि के भीतर जिला न्यायालय में कम से कम एक स्थायी वीडब्ल्यूडीसी स्थापित किया जाए। रजिस्ट्रार जनरल इस अदालत के समक्ष अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करेंगे।
इससे पहले जस्टिस ए के गोयल और जस्टिस यू यू ललित की पीठ ने कहा था कि साक्षी बनाम भारत संघ और अन्य (2004) 5 SCC 518 में इस न्यायालय ने उपरोक्त मुद्दे पर विचार करने के बाद निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
"(1) धारा 327 सीआरपीसी की उप-धारा (2) के प्रावधान, उप-धारा में उल्लिखित अपराधों के अलावा, धारा 354 और 377 आईपीसी के तहत अपराधों की जांच या ट्रायल में भी लागू होंगे।
(2) बाल यौन शोषण या बलात्कार के ट्रायल में:
(i) एक स्क्रीन या कुछ ऐसी व्यवस्था की जा सकती है जहां पीड़ित या गवाह (जो पीड़ित की तरह समान रूप से अतिसंवेदनशील हो सकते हैं) आरोपी का शरीर या चेहरा ना दिखे;
(ii) अभियुक्त की ओर से जिरह में पूछे गए प्रश्न, जहां तक वे घटना से सीधे संबंधित हैं, लिखित रूप में न्यायालय के पीठासीन अधिकारी को दिए जाने चाहिए जो उन्हें पीड़ित या गवाहों के सामने उस भाषा में डाल सकते हैं जो स्पष्ट है और शर्मनाक नहीं है;
(iii) बाल शोषण या बलात्कार की पीड़िता को अदालत में गवाही देते समय, जब भी आवश्यक हो, पर्याप्त अवकाश दिया जाना चाहिए।
ये निर्देश पंजाब राज्य बनाम गुरमीत सिंह में दिए गए निर्देशों के अतिरिक्त हैं।"
[मामले : स्मृति तुकाराम बडाडे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य]
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ ( SC) 380
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