क्या अदालत फैक्ट फाइंडिंग कोर्ट के रूप में जाति के दावों पर निर्णय ले सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने संदेह व्यक्त किया

Shahadat

4 Oct 2023 9:42 AM IST

  • क्या अदालत फैक्ट फाइंडिंग कोर्ट के रूप में जाति के दावों पर निर्णय ले सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने संदेह व्यक्त किया

    सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने मंगलवार (3 अक्टूबर) को इस प्रस्ताव पर संदेह व्यक्त किया कि वह फैक्ट-फाइंडिंग कोर्ट के रूप में जाति के दावों पर फैसला कर सकता है। न्यायालय जाति के दावों (महाराष्ट्र आदिवासी ठाकुर जमात स्वरक्षा समिति बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य) का सवाल उठाने वाली अपीलों के समूह में आगे की कार्रवाई पर विचार कर रहा था।

    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की फुल बेंच ने हाल ही में माना कि जाति/जनजाति के दावे की सत्यता निर्धारित करने के लिए 'एफिनिटी टेस्ट' अनिवार्य हिस्सा नहीं है।

    जब मामला अदालत के समक्ष रखा गया तो महाराष्ट्र राज्य की ओर से पेश वकील ने कहा कि वर्तमान मामले में लंबित सिविल अपीलों को तथ्यात्मक मैट्रिक्स के आधार पर व्यक्तिगत रूप से लिया जाना चाहिए।

    हालांकि, बेंच ने स्पष्ट रूप से मामलों को व्यक्तिगत रूप से लेने से इनकार कर दिया, यह देखते हुए कि "प्रथम दृष्टया यह संदिग्ध लगता है कि क्या यह न्यायालय फैक्ट-फाइंडिंग कोर्ट होगा जैसा कि उत्तरदाताओं द्वारा सुझाया गया है।"

    इसके अलावा, न्यायालय की राय थी कि कानून का सीमित प्रश्न जिस पर निर्णय लेने की आवश्यकता है, वह है,

    "क्या अपीलें हाईकोर्ट को भेजी जाएंगी या अपीलें स्क्रीनिंग कमेटी को ही भेजी जाएंगी।"

    कोर्ट-रूम एक्सचेंज

    महाराष्ट्र राज्य की ओर से पेश वकील ने कहा कि संदर्भ का जवाब देने वाले फैसले में न्यायालय की टिप्पणियों को व्यक्तिगत मामलों में लागू करना होगा। उन्होंने तर्क दिया कि अदालत ने पहले ही दिन यह स्पष्ट कर दिया कि वह सिद्धांत का फैसला करेगी। इस प्रकार, इसके साथ टैग किए गए अन्य 49 मामलों का निपटारा नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस कौल ने इस पर पूछा,

    “इसकी जांच कौन करेगा? इस न्यायालय को जांच करनी होगी? ...इन सभी अपीलों की सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर हाईकोर्ट द्वारा जांच की जाएगी?

    जस्टिस धूलिया ने पूछा,

    "तो एफ़िनिटी टेस्ट बरकरार रखा गया है?"

    वकील ने सकारात्मक उत्तर दिया।

    जस्टिस धूलिया ने कहा,

    “तब तो इसे स्क्रीनिंग कमेटी को ही देखना होगा… अब केवल यह देखना होगा कि आप उस जाति से हैं या नहीं। यह पूर्णतः तथ्यात्मक है। स्क्रीनिंग कमेटी इसकी जांच करेगी।

    जस्टिस कौल ने उपरोक्त टिप्पणी का समर्थन करते हुए यह स्पष्ट किया कि इस मामले में निर्णय लिया जाने वाला प्रश्न सीमित है। इस प्रकार, न्यायालय 31 अक्टूबर को उसी के आधार पर पक्षकारों को सुनेगा।

    तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

    उल्लेखनीय है कि वर्तमान मामला बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अपीलों के एक बैच से उत्पन्न हुआ है, जिसमें उसने माना कि एफ़िनिटी टेस्ट जाति के दावे की शुद्धता का निर्धारण करने का अभिन्न अंग है।

    मार्च 2022 में दो-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने एफ़िनिटी टेस्ट की अनिवार्यता से संबंधित प्रश्न को निपटाने के लिए मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया। इस साल मार्च में जस्टिस कौल की अगुवाई वाली 3-न्यायाधीशों की पीठ ने उस संदर्भ का जवाब दिया जिसमें कहा गया था कि एफ़िनिटी टेस्ट अभिन्न विशेषता नहीं है।

    केस टाइटल- आदिवासी ठाकुर जमात स्वरक्षा समिति बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य, सिविल अपील नंबर 2502/2022

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