सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम को बरकरार रखने के फैसले के खिलाफ दायर रिट याचिका खारिज की, कहा- याचिका पूरी तरह गलत

Avanish Pathak

4 Sep 2022 9:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक रिट याचिका को रद्द कर दिया, जिसमें पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम 2008 की संवैधानिकता को बरकरार रखने के उसी के फैसले को चुनौती दी गई थी।

    जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि रिट याचिका पूरी तरह से गलत है।

    मजना हाई मदरसा की मैनेजिंग कमेटी ने एसके मोहम्मद रफीक बनाम कोंटाई रहमानिया हाई मदरसा (2020) 6 SCC 689 के फैसले के खिलाफ के फैसले रिट याचिका दायर की थी।

    एसके मोहम्मद रफीक में कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था, जिसमें पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 की धारा 8, 10, 11 और 12 को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत दिए गए अधिकारों से परे (ultra vires) पाया गया था। उल्‍लेखनीय है कि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों द्वारा शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के अधिकार से संबंधित है।

    जस्टिस यूयू ललित के फैसले में टीएमए पाई फाउंडेशन मामले तक सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर विस्तार से चर्चा हुई।

    यह मानते हुए कि अधिनियम के प्रावधानों को अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है, अदालत ने कहा,

    "यदि अधिकार को पूर्ण और बिना शर्त माना जाता है तो निश्चित रूप से इस प्रकार के विकल्प को मान्यता दी जानी चाहिए और स्वीकार किया जाना चाहिए।

    हालांकि यदि अधिकार को पूर्ण और बिना शर्त नहीं माना गया है और राष्ट्रीय हित पर हमेशा विचार होना चाहिए, लागू होना चाहिए, तब उत्कृष्टता और योग्यता को शासनकारी मानदंड होना चाहिए। योग्यता और उत्कृष्टता की अवधारणा से कोई भी विचलन अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान को इस कोर्ट के विभिन्न जजमेंट में विचार किए गए लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक प्रभावी वाहन नहीं बनने देगा।

    इसके अलावा, यदि योग्यता एकमात्र और शासी मानदंड नहीं है तो अल्पसंख्यक संस्थान गैर-अल्पसंख्यक संस्थानों के साथ कदम से कदम मिलाने के बजाए उनसे पीछे रह सकते हैं ...

    यदि अल्पसंख्यक संस्थान के पास नियामक व्यवस्था के तहत नॉमिनेटड कैंड‌िडेट की तुलना में बेहतर कैंडिडेट उपलब्ध है तो संस्थान निश्चित रूप से प्राधिकारण द्वारा नॉमिनेटेड कैंडिडेट को अस्वीकार करने के अपने अधिकारों के भीतर होगी,

    हालांकि यदि शिक्षा प्रदान करने के लिए नॉमिनेटेड व्यक्ति अन्यथा ज्यादा योग्य और उपयुक्त है तो अल्पसंख्यक संस्थान द्वारा इस तरह के अस्वीकरण से ऐसी संस्था को उत्कृष्टता प्राप्त करने में कभी मदद नहीं मिलेगी और इस प्रकार ऐसी कोई भी अस्वीकृति संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत संरक्षित अधिकार के सही दायरे में नहीं होगी।"

    अदालत ने यह भी घोषणा की कि आयोग अधिनियम के प्रावधानों के अनुसरण में आयोग द्वारा किए गए सभी नामांकन वैलिड और ऑपरेटिव हैं।

    केस टाइटल : प्रबंध समिति मजना हाई मदरसा बनाम पश्चिम बंगाल राज्य | WP (C) 257/2022

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