'बहुत अहंकारी', 'कोर्ट के आदेशों का कोई सम्मान नहीं': सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट के खिलाफ यूपी सरकार के सचिवों की याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

14 Nov 2021 8:57 AM GMT

  • बहुत अहंकारी, कोर्ट के आदेशों का कोई सम्मान नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट के खिलाफ यूपी सरकार के सचिवों की याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को उत्तर प्रदेश के उन अधिकारियों के खिलाफ तीखी टिप्पणी की, जिनके खिलाफ अदालत के आदेशों का सम्मान नहीं करने और उनके 'लापरवाह रवैये' के लिए हाईकोर्ट द्वारा जमानती वारंट जारी किया गया है।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की खंडपीठ संग्रह अमीन के नियमितीकरण से जुड़े एक मामले में वित्त सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) सहित राज्य के अधिकारियों के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने के हाईकोर्ट के हालिया आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    सभी तीन न्यायाधीशों ने कहा कि अधिकारी 'अहंकारी' प्रतीत होते हैं और उनके साथ हो हो रहा है वह उसी के अधिकारी हैं।

    मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की,

    "आप इसी सब के हकदार हैं, और इससे शायद कहीं ज्यादा ही।"

    जस्टिस हिमा कोहली ने उत्तर प्रदेश की ओर से पेश हुई अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा,

    "आप यहाँ क्या कर रही हैं सुश्री भाटी! अपने आचरण को देखें, आप उसे उसके बकाया से भी वंचित कर रहे हैं। आपकी कनपटी पर बंदूक रखे जाने के बावजूद, आपने अदालत के आदेश का पालन नहीं किया है।"

    न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा,

    "हाईकोर्ट को गैर जमानती वारंट जारी करना चाहिए था और अब तक उन्हें गिरफ्तार कर लेना चाहिए था।"

    सीजेआई ने कहा,

    "इस तरह का लापरवाह रवैया, अदालत का सम्मान नहीं।''

    न्यायमूर्ति कांत ने टिप्पणी की,

    "इस गरीब चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का क्या दोष है?"

    न्यायमूर्ति कांत ने आगे बढ़कर कहा कि राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव "बहुत अहंकारी" प्रतीत होते हैं।

    एएसजी भाटी ने अदालत को सूचित किया कि कर्मचारी को आयु में छूट और नियमितीकरण दिया गया है, न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने कहा, "आपने उस पर कोई एहसान नहीं किया है सुश्री भाटी।"

    न्यायमूर्ति कांत ने यह स्वीकार करते हुए कि उनके कार्य दिवस कम थे, अपने कनिष्ठों को नियमित करने की अनुमति देने के सरकार के फैसले को भी खारिज कर दिया।

    न्यायमूर्ति कांत ने कहा,

    "आपने उनके कनिष्ठों को नियमित करने की अनुमति दी, आपने स्वीकार किया है कि उनके कार्य दिवस कम थे। इन सबके बावजूद, आपके अतिरिक्त मुख्य सचिव का कहना है कि हम अनुमति नहीं देंगे और उनकी उम्र में छूट नहीं देंगे।"

    एएसजी भाटी ने प्रस्तुत किया कि जिस व्यक्ति को गलत तरीके से बकाया दिया गया था उसे अब हटा दिया गया है।

    न्यायमूर्ति कोहली ने इस दलील से नाखुश कहा कि,

    "कोर्ट ने आपको गलत तरीके से देने वालों को हटाने का निर्देश नहीं दिया, यह कहा कि उन्हें 4 साल हो गए हैं। अदालत ने केवल आपको अनुपालन करने का निर्देश दिया है। आपने हर तरीके से अनुपालन का विरोध किया है। आपको जो मिला है, उसी के लायक आप हैं, उससे भी कहीं ज्यादा।"

    एएसजी भाटी ने इसका जवाब देते हुए कहा, "यदि आपको लगता है कि जिस पद पर काम नहीं किया है उसके लिए पांच साल का बकाया देना है, तो..."

    जस्टिस कोहली ने कहा,

    "आप गिरफ्तार और पेश किए जाने के बाद अदालत को बताएं।''

    इसके बाद पीठ ने राज्य की विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी।

    एएसजी भाटी द्वारा कल तत्काल सूची की मांग किए जाने के बाद राज्य की याचिका पर आज सुनवाई हुई।

    सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ के समक्ष मामले का शुक्रवार को उल्लेख करते हुए एएसजी ने अदालत से मामले को आज सूचीबद्ध करने का आग्रह किया था, क्योंकि हाईकोर्ट द्वारा राज्य के अधिकारियों के खिलाफ जारी जमानती वारंट सोमवार को वापस करने योग्य हैं।

    एएसजी ने कहा था, "एसएलपी 1 नवंबर के आक्षेपित आदेश के खिलाफ है। हाईकोर्ट ने राज्य के अधिकारियों के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया है और सोमवार को वापस करने योग्य है। नियमितीकरण आदेश पारित किया गया है, लेकिन जब उन्होंने काम नहीं किया तो 4 साल का बकाया वेतन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।"

    सीजेआई ने कहा था,

    "आपको इसे चुनौती देनी होगी, यदि आप आदेश को लागू नहीं करते हैं तो स्वाभाविक रूप से न्यायालय आदेश पारित करने का हकदार है। अब अवमानना के मामले में आप चुनौती दे रहे हैं, अन्यथा आप इसे लागू करने की जहमत नहीं उठाते।"

    सीजेआई ने कहा था,

    "अवमानना क्यों आई? क्योंकि आपने रिट याचिका के आदेशों को लागू नहीं किया है।''

    हाईकोर्ट ने आक्षेपित आदेश के माध्यम से देखा था कि अधिकारियों ने जानबूझकर न्यायालय को गुमराह किया और कर्मचारी को बकाया वेतन नहीं देने में इसके अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा दिए गए वचन की अवहेलना की।

    उनके आचरण को 'निंदनीय' बताते हुए, हाईकोर्ट ने अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) और संजय कुमार, तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट, वर्तमान में सचिव (वित्त), उत्तर पद्रेश सरकार के रूप में तैनात के खिलाफ जमानती वारंट जारी करते हुए उन्हें 15 नवंबर को अदालत के समक्ष पेश होने के लिए कहा था।

    केस शीर्षक: उत्तर प्रदेश सरकार बनाम भुनेश्वर प्रसाद तिवारी एवं अन्य, एसएलपी (सी) 18381/2021

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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