सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए रेलवे टिकट की कीमतों में रियायत बहाल करने की मांग वाली याचिका खारिज की

Brij Nandan

29 April 2023 7:49 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए रेलवे टिकट की कीमतों में रियायत बहाल करने की मांग वाली याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को वरिष्ठ नागरिकों के लिए रेलवे टिकट की कीमतों में रियायत की बहाली की मांग वाली याचिका खारिज कर दी।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा,

    "उपरोक्त कारणों और राजकोषीय मुद्दे से जुड़े मामले को देखते हुए, इस न्यायालय के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई प्रकृति की रिट जारी करना उचित नहीं होगा। वरिष्ठ नागरिकों की जरूरतों और राजकोषीय नतीजों को ध्यान में रखते हुए नीतिगत निर्णय पर सरकार को फैसला करना है।“

    सुनवाई के दौरान पक्षकार ने व्यक्तिगत रूप से तर्क दिया कि कोविड-19 की अवधि के दौरान रियायत वापस ले ली गई थी। कल्याणकारी राज्य होने के नाते, सरकार का दायित्व है कि वह इसे बहाल करे।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया,

    "हमारे देश में वरिष्ठ नागरिक आबादी का 10% हिस्सा हैं। COVID-19 के आगमन के साथ, रियायत वापस ले ली गई। दुनिया भर में, वरिष्ठ नागरिकों को कई रियायतें और अन्य लाभ दिए जाते हैं।"

    बेंच ने मौखिक रूप से कहा,

    "मैं आपसे सहमत हूं लेकिन क्या करना है? ये राज्य की नीति के पहलू हैं। हम महसूस कर सकते हैं कि रियायत दी जानी चाहिए। क्या हम यह कहते हुए परमादेश जारी कर सकते हैं कि रियायत दी जानी चाहिए? यह मुद्दा है।"

    संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) पर भरोसा करते हुए, यह तर्क दिया गया कि प्रावधान का व्यापक अर्थ है जो बुजुर्गों को कई अधिकारों की गारंटी देता है। उन्होंने कहा कि इन अधिकारों की लगातार निगरानी करने की भी जरूरत है।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि वो रेलवे को अभ्यावेदन दिया था। इस पर पीठ ने कहा,

    "हम निर्देश देंगे कि आपके पत्र के अनुसार निर्णय लिया जाए।"

    न्यायालय ने तब नोट किया कि रेल मंत्रालय ने 12 जनवरी को याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन का जवाब दिया था जिसमें स्वीकार की गई टिकट कीमतों को बहाल करने की गैर-व्यवहार्यता की सूचना दी थी, जिसके कारण अदालत ने याचिका खारिज कर दी थी।

    केस टाइटल: एमके बालकृष्णन बनाम यूओआई




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