सुप्रीम कोर्ट ने किराया राहत पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के वादे को लागू करने पर रोक के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

28 Feb 2022 8:22 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने किराया राहत पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के वादे को लागू करने पर रोक के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ के सितंबर, 2021 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया जिसमें गरीब किरायेदारों की ओर से किराए के भुगतान के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा किए गए वादे को प्रवर्तनीय बताने के एकल न्यायाधीश के आदेश पर अस्थायी रूप से रोक लगाई गई थी।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ एचसी डिवीजन बेंच के रोक आदेश के खिलाफ दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने 29 मार्च 2020 को एक संवाददाता सम्मेलन में दिए गए सीएम के भाषण को पढ़ा, जहां, COVID-19 महामारी के मद्देनज़र, उन्होंने सभी मकान मालिकों से उन किरायेदारों से किराए की मांग / संग्रह को स्थगित करने का अनुरोध किया था, जो गरीब और गरीबी से त्रस्त हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से भाषण के प्रासंगिक अंश को हिंदी में उद्धृत किया जिसमें यह मूल रूप से दिया गया था।

    जज द्वारा पढ़े गए अंश का आधिकारिक अनुवाद (जैसा कि दिल्ली हाई कोर्ट सिंगल बेंच के आदेश में दिया गया है) इस प्रकार है-

    "... एक किरायेदार गरीबी के कारण किराया देने में असमर्थ रहा है, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि सरकार इसके लिए भुगतान करेगी। मैं उन किरायेदारों के बारे में बात कर रहा हूं जो साधनों की कमी के कारण अपने किराए का कुछ भुगतान करने में असमर्थ हो सकते हैं ... "

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से कहा,

    "भाषण को देखें- 'थोड़ा बहुत किराया' (उनका कुछ किराया) ... क्या आप इस पर प्रॉमिसरी एस्टॉपेल लागू कर सकते हैं? क्या यह कार्लिल बनाम कार्बोलिक (कार्लिल बनाम कार्बोलिक स्मोक बॉल कंपनी [1892] EWCA civ 1 का इरादा हो सकता है। अपील की अदालत द्वारा एक अंग्रेजी अनुबंध कानून का निर्णय है, जिसमें कहा गया है कि इनाम पाने के लिए कुछ शर्तों वाले विज्ञापन एक बाध्यकारी एकतरफा प्रस्ताव का गठन करते हैं जिसे किसी भी व्यक्ति द्वारा स्वीकार किया जा सकता है जो इसकी शर्तों को पूरा करता है। कुछ पॉलिसी बनने के लिए नोटिफिकेशन जारी करना पड़ता है..."

    हालांकि, अंत में, पीठ, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल थे, ने अपने आदेश में निर्देश दिया कि " सिंगल जज के फैसले के खिलाफ अपील में पारित हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के एक हस्तेक्षप आदेश के खिलाफ तत्काल एसएलपी दायर की गई है"

    और इसलिए, "अनुच्छेद 136 के तहत हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता है" और एसएलपी को "केवल उसी आधार पर" खारिज किया जाता है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से याचिकाकर्ता के वकील से कहा,

    "हमने कहा है कि एसएलपी एक हस्तेक्षप आदेश के खिलाफ है और इसे केवल उसी आधार पर खारिज किया जाता है।"

    जुलाई, 2021 में, एक उल्लेखनीय निर्णय में, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया एक वादा या आश्वासन लागू करने योग्य वादे के बराबर है और एक मुख्यमंत्री से इस तरह के वादे को प्रभावी करने के लिए अपने अधिकार का प्रयोग करने की अपेक्षा की जाती है।

    जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की एकल न्यायाधीश पीठ ने इस प्रकार कहा:

    "मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया वादा/आश्वासन/ ज्ञापन स्पष्ट रूप से एक लागू करने योग्य वादे के बराबर है, जिसके कार्यान्वयन पर सरकार द्वारा विचार किया जाना चाहिए। सुशासन की आवश्यकता है कि शासन करने वालों द्वारा नागरिकों से किए गए वादे, बिना वैध और उचित कारण के ना टूटें।"

    इसके अलावा, यह कहा:

    "मुख्यमंत्री से अपेक्षा की जाती है कि उनके पास उक्त ज्ञान था और उनसे अपने वादे/आश्वासन को प्रभावी करने के लिए अपने अधिकार का प्रयोग करने की अपेक्षा की जाती है। उस हद तक, यह कहना अनुचित नहीं होगा कि एक उचित नागरिक यह विश्वास करेगा कि मुख्यमंत्री उक्त वादा करते हुए अपनी सरकार की ओर से बोलें हैं।"

    अदालत दिहाड़ी मजदूरों / श्रमिकों द्वारा दायर उस याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें पिछले साल 29 मार्च को दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल द्वारा किए गए वादे को लागू करने की मांग की गई थी जो अपने मासिक किराए का भुगतान करने में असमर्थ थे।

    सितंबर 2021 में मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने कहा कि एकल न्यायाधीश के आदेश के संचालन और कार्यान्वयन को सुनवाई की अगली तारीख यानी 29 नवंबर तक स्थगित रखा जाएगा। इसने सरकार से मौखिक रूप से भी पूछा था कि क्या वह आंशिक रूप से भुगतान करने को तैयार है।

    ये कद एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ दिल्ली सरकार द्वारा दायर एक अपील में आया था। वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष वशिष्ठ ने दावा किया कि केजरीवाल का बयान कोई ''वादा'' नहीं था।

    केस : नजमा और अन्य बनाम दिल्ली सरकार एनसीटी और अन्य।

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