सुप्रीम कोर्ट ने टोल-फ्री नंबर के माध्यम से COVID टीकाकरण पंजीकरण की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

28 Sep 2021 8:23 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने टोल-फ्री नंबर के माध्यम से COVID टीकाकरण पंजीकरण की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक जनहित याचिका निपटारा किया, जिसमें टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर पर COVID टीकाकरण के लिए पंजीकरण की मांग की गई थी।

    जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि नीति के रूप में अब वॉक-इन पंजीकरण की अनुमति है और बाद के उपायों ने याचिका को निष्फल कर दिया गया है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता से व्यक्तिगत रूप से कहा, "अब ऑनलाइन कोविन पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है। हमारे जून के आदेश के बाद हमें बताया गया है कि वॉक-इन पंजीकरण की अनुमति है। भविष्य में जरूरत पड़ने पर वापस आएं।"

    न्यायाधीश ने कहा, "इसके अलावा एक टोल-फ्री हेल्पलाइन भी सेल-फोन की समस्या होती है, जो पिछली समस्‍या जैसी ही है, (जैसा कि कोर्ट ने अनिवार्य कोव‌िन पंजीकरण के मामले में स्वीकार किया था)। आप रजिस्टर करने के लिए तभी कॉल कर सकते हैं, जब आपके पास सेल फोन हो।"

    जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "इसके अलावा, सभी महत्वपूर्ण टोल-फ्री पंजीकरण पर जाएंगे और वॉक-इन को नजरअंदाज कर दिया जाएगा"

    मंगलवार को पीठ ने एक और जनहिता याचिका का निपटारा किया, जिसमें केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी सभी गैर-COVID-19 रोगियों को पर्याप्त, लगातार और उचित चिकित्सा उपचार और सुविधाएं प्रदान की जाएं। [जीएस मणि वी. यूनियन ऑफ इंडिया]

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता से कहा, "इस याचिका में अब कुछ भी नहीं बचा है। जरूरत पड़ने पर आप फिर से आने की स्वतंत्रता सुरक्षित रख सकते हैं, हालांकि उम्मीद है कि यह नहीं होगा ।"

    सुप्रीम कोर्ट के वकील जीएस मणि द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया था कि COVID-19 लॉकडाउन की स्थिति के कारण पहले से ही COVID -19 मरीज उचित चिकित्सा उपचार पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। COVID वार्ड में भारी भीड़ के कारण उन्हें सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी और निजी अस्पतालों में प्रवेश, उचित चिकित्सा उपचार और सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। कई अस्पतालों ने अपने इमरजेंसी वार्ड में इलाज बंद कर दिया है और बड़ी सर्जरी को टाल दिया है। गैर-COVID रोगियों को नियमित उपचार की आवश्यकता हो‌ती है।

    याचिका में दावा किया गया था कि सार्वजनिक स्वास्थ्य का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत परिभाषित एक राज्य प्रत्येक नागरिक के उक्त मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए कर्तव्यबद्ध है, जिसमें विफल होने पर अनुच्छेद 32 के तहत माननीय सुप्रीम कोर्ट इसे लागू करने के लिए बाध्य है।

    केस शीर्षक: विभूति भूषण मिश्रा और अन्य बनमा यूनियन ऑफ इंडिया और अन्‍य

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