सुप्रीम कोर्ट ने सीबीएसई-आईसीएसई छात्रों की कक्षा दसवीं-बारहवीं की परीक्षा के लिए हाइब्रिड ऑप्शन की मांग खारिज की

LiveLaw News Network

18 Nov 2021 9:54 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने सीबीएसई-आईसीएसई छात्रों की कक्षा दसवीं-बारहवीं की परीक्षा के लिए हाइब्रिड ऑप्शन की मांग खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को छात्रों द्वारा दायर याचिका खारिज की। याचिका में 18 नवंबर, 2021 को होनी वाली सीबीएसई-आईसीएसई छात्रों की कक्षा दसवीं-बारहवीं की परीक्षा हाइब्रिड मोड में आयोजित करने के लिए तत्काल निर्देश देने की मांग की गई थी।

    न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज की कि सीबीएसई की सत्रीय परीक्षाएं 16 नवंबर से शुरू हो चुकी हैं और कोर्ट इस समय हस्तक्षेप करके प्रक्रिया को बाधित नहीं करेगा।

    पीठ ने अपने आदेश में यह भी नोट किया कि आईसीएसई की टर्म परीक्षाएं अगले सोमवार, 22 नवंबर से शुरू हो रही हैं।

    बेंच ने आदेश में कहा,

    "परीक्षा 16 नवंबर को शुरू हो चुकी है, अब हस्तक्षेप करना और पूरी प्रक्रिया को बाधित करना अनुचित होगा। इस विलंबित चरण में रिट याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है। हम आशा और विश्वास करते हैं कि अधिकारियों द्वारा सभी सावधानियां बरती जाएंगी और COVID19 एसओपी का पालन किया जाएगा।"

    पीठ ने भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के प्रस्तुतीकरण पर ध्यान दिया, जो सीबीएसई के लिए पेश हुए, कि COVID के संबंध में याचिकाकर्ताओं की चिंताओं को दूर करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था अपनाई गई है।

    एसजी ने कहा कि सोशल डिस्टेंसिंग और कम यात्रा समय सुनिश्चित करने के लिए परीक्षा केंद्रों को पिछले वर्ष के 6500 से बढ़ाकर 15,000 कर दिया गया है। अब एक केंद्र में केवल 12 छात्र बैठेंगे, जबकि पहले 40 छात्र बैठते थे। साथ ही परीक्षा का समय 3 घंटे से घटाकर 90 मिनट कर दिया गया है।

    एसजी ने कहा कि लगभग 34 लाख छात्र परीक्षा में शामिल हो रहे हैं और परीक्षा के तरीके को बदलना अब कठिन होगा।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने प्रस्तुत किया कि वे जो चाहते हैं कि एक हाइब्रिड विकल्प दिया जाए क्योंकि COVID महामारी का खतरा अभी खत्म नहीं हुआ है।

    हेगड़े ने प्रस्तुत किया,

    "यह प्रतिकूल नहीं है। यह एक अनूठी स्थिति है। लाखों छात्र परीक्षा लिख रहे होंगे। ये महामारी के कारण लाई गई मध्यावधि परीक्षा है। हमारा अनुरोध है। महामारी अभी खत्म नहीं हुई है। यह कहना जल्दबाजी होगी कि हम फिजिकल रूप से परीक्षा आयोजित कर सकते हैं । जहां भी लोगों की भीड़ होगी, वहां वायरस संचारित हो सकता है। ये बच्चे कॉमरेडिडिटी वाले लोगों के बीच रहते हैं।"

    उन्होंने बताया कि पिछले साल परीक्षा ऑनलाइन आयोजित की गई थी और इस साल भी यही विकल्प दिया जाना चाहिए।

    जब पीठ ने बताया कि परीक्षाएं पहले ही शुरू हो चुकी हैं, तो हेगड़े ने कहा, "वे छोटे पेपर थे, जो कुछ ही छात्र लिखते हैं। प्रमुख पेपर, जिनमें भाषा, गणित, विज्ञान शामिल हैं, वे अभी तक नहीं हुए हैं।" हेगड़े ने कहा कि चूंकि परीक्षा एमसीक्यू प्रारूप में होती है, इसलिए ऑनलाइन विकल्प आसानी से दिया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा,

    "हेगड़े आप इतनी देर से आए हैं।"

    हेगड़े ने बताया कि अधिसूचना 14 अक्टूबर को जारी की गई और माता-पिता और छात्र अधिकारियों के समक्ष अभ्यावेदन दाखिल कर रहे हैं और उन्होंने अंततः नवंबर के पहले सप्ताह में अदालत का दरवाजा खटखटाया।

    न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा,

    "वे 34 लाख छात्रों के लिए परीक्षा आयोजित कर रहे हैं। हम परीक्षण कर सकते थे यदि आप जल्दी आते। इस अंतिम मिनट में हम प्रक्रिया को गड़बड़ नहीं कर सकते। अधिकारियों को अपना काम करने दें।"

    पीठ ने कहा कि याचिका को पहली बार 5 नवंबर को सूचीबद्ध किया गया था और अगली पोस्टिंग 15 नवंबर को थी, जब पीठ ने याचिकाकर्ताओं से प्रतिवादियों को अग्रिम प्रति देने को कहा।

    पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता उल्लेख करने के बाद तत्काल सूची की मांग कर सकते थे।

    पीठ ने हस्तक्षेप से इनकार करते हुए आदेश में कहा कि उसे उम्मीद है और भरोसा है कि अधिकारी परीक्षा आयोजित करते समय COVID प्रोटोकॉल का पालन करेंगे।

    याचिका का विवरण

    एडवोकेट सुमंत नुकाला के माध्यम से दायर याचिका में संशोधित परीक्षा कार्यक्रम को चुनौती दी गई थी। इसमें 16 नवंबर और 22 नवंबर से हाइब्रिड मोड अपनाने के बजाय केवल ऑफलाइन मोड में परीक्षा आयोजित करने का निर्देश दिया गया था।

    याचिका में निम्नलिखित दो सर्कुलर को रद्द करने की मांग की गई थी:

    * सर्कुलर दिनांक 14.10.2021 में सीबीएसई बोर्ड के दसवीं और बारहवीं कक्षा के छात्रों के लिए टर्म 1 परीक्षा का कार्यक्रम अकेले ऑफलाइन मोड में आयोजित किया जाना।

    * सर्कुलर दिनांक 22.10.2021 जहां तक आईएससी और आईसीएसई के लिए सेमेस्टर 1 परीक्षाओं के कार्यक्रम को केवल ऑफलाइन मोड में आयोजित करने के लिए संशोधित किया गया।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि डेट शीट तीन सप्ताह में फैले प्रमुख विषयों के लिए परीक्षाओं का खुलासा करती है। साथ ही COVID-19 के संक्रमण के जोखिम और बाद की परीक्षाओं पर प्रभाव पड़ने की आशंका है।

    * यह कहा गया कि दिसंबर, 2021 में प्रमुख विषयों की परीक्षा से पहले नवंबर, 2021 में फिजिकल मोड में मामूली विषयों की परीक्षाएं हैं। इससे प्रमुख विषयों की परीक्षाओं को सुपर स्प्रेडर इवेंट में बदलने की संभावना बढ़ गई है।

    याचिका में कहा गया है,

    "किसी भी कीमत पर ऑफ़लाइन परीक्षाओं के माध्यम से इस तरह के निरंतर प्रदर्शन से COVID-19 के संक्रमण का खतरा तेजी से बढ़ जाता है। इससे आक्षेपित कार्रवाई को मनमाना और स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन माना जाता है।"

    याचिकाकर्ताओं ने एक विशिष्ट स्टैंड लेते हुए कहा कि परीक्षा का हाइब्रिड या ब्लेंडेड मोड समय की आवश्यकता है और लॉजिस्टिक बाधाओं पर तनाव को कम करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग की बेहतर सुविधा प्रदान करता है।

    यह तर्क देते हुए कि बिना विकल्प दिए सहमति प्राप्त करना पूर्व दृष्टया मनमाना और अवैध है, याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि कई छात्रों ने बताया कि गलत बयानी और जबरदस्ती का सहारा लेकर सहमति प्राप्त की जा रही है।

    केस का शीर्षक: अभ्युदय चकमा एंड अन्य बनाम भारत संघ एंड अन्य | डब्ल्यूपी (सी) 1240/2021

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