सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा नेताओं की पश्चिम बंगाल के स्थानीय चुनावों में केंद्रीय बलों की तैनाती की याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

25 Feb 2022 8:17 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा नेताओं की पश्चिम बंगाल के स्थानीय चुनावों में केंद्रीय बलों की तैनाती की याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पार्टी के नेता मौसमी रॉय और प्रताप बनर्जी द्वारा पश्चिम बंगाल के स्थानीय चुनावों में केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग वाली याचिका खारिज कर दी।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्य कांत की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया, जिसने 27 फरवरी को होने वाले पश्चिम बंगाल की शेष 108 नगर पालिकाओं के आगामी चुनावों के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती के लिए निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया था।

    बुधवार को कलकत्ता हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) को प्रत्येक नगर पालिकाओं में मौजूद स्थितियों के संबंध में जानकारी एकत्र करके जमीनी स्थिति का आकलन करने के लिए राज्य के गृह सचिव के साथ पुलिस महानिदेशक और पुलिस महानिरीक्षक की एक संयुक्त बैठक आयोजित करने का निर्देश दिया था और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती के संबंध में 24 घंटे के भीतर निर्णय लेने के लिए कहा था।

    प्रासंगिक रूप से, हाईकोर्ट ने रेखांकित किया था कि यदि यह निर्णय लिया जाता है कि केंद्रीय बलों को तैनात नहीं किया जाएगा तो राज्य चुनाव आयुक्त को यह सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा कि कोई हिंसा न हो और चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से हो।

    शुक्रवार को याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष तर्क दिया कि पिछले चरणों के चुनावों के दौरान हिंसा की व्यापक खबरें थीं। हालांकि इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के समक्ष पूरे दिन चली, लेकिन हाईकोर्ट ने केंद्रीय बलों की तैनाती के आदेश पारित करने से इनकार कर दिया और मामले को राज्य चुनाव आयोग को भेज दिया।

    उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस के प्रति पक्षपाती है। पटवालिया ने कहा, "एसईसी तृणमूल कांग्रेस के आधिकारिक समाचार पत्र " जय बांग्ला" पर निर्भर है। हमने हिंसा के बारे में द हिंदू, द न्यू इंडिया एक्सप्रेस आदि की रिपोर्टों को रिकॉर्ड में रखा था।

    वरिष्ठ वकील ने आगे कहा कि हाईकोर्ट याचिकाकर्ताओं की दलीलों से सहमत है, इसने "केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश देने से रोक दिया।

    उन्होंने जारी रखा,

    "मीडिया में झूठी मतदान की घटनाएं हुई हैं, कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हो गई है, यह कोई छिटपुट घटना नहीं थी, चुनाव हिंसा से त्रस्त हो गए थे- जब भाजपा के उम्मीदवार ने बूथ के अंदर टीएमसी सदस्यों की उपस्थिति के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया तो भाजपा उम्मीदवार को गंभीर परिणाम की धमकी दी गई थी, विरोध के व्यापक उदाहरण, धांधली, झूठे मतदान, मृत लोगों द्वारा वोट डाले गए हैं- मुखोपाध्याय, प्रसिद्ध रवींद्र संगीत गायक, जिनका वोट डाला गया है, दिसंबर 2018 में पहले ही मर चुके हैं। राज्य का जवाब बहुत दिलचस्प है । वे कहते हैं कि झूठा, झूठा, झूठा, इनकार किया जाता है, इनकार किया जाता है, इनकार किया जाता है,, इनकार किया जाता है, कि तत्काल आवेदन पूरी तरह से प्रेरित है, कि यह असाधारण जुर्माने के साथ खारिज करने के लिए उत्तरदायी है, कि हिंसा की कोई घटना नहीं हुआ, कि कोई शिकायत नहीं मिली, वे साफ हाथों से नहीं आए हैं!"

    पटवालिया ने आग्रह किया,

    "हमने बताया कि यह दिखाने के लिए पांच उदाहरण थे कि राज्य चुनाव आयोग शायद राज्य सरकार के पक्ष में झुक रहा था। 10 फरवरी के आदेश के अनुसरण में राज्य चुनाव आयोग द्वारा कोई विवेक नहीं लगाया गया। हमने कहा कि दो योजनाएं हैं जिसे राज्य सरकार ने रोक दिया था और जिसे अब जारी रखने की अनुमति दी गई है। उन योजनाओं में वे भूमि के मालिकाना हक, विभिन्न अन्य लाभ दे रहे हैं और इसलिए यह भी गलत तरीके से किया गया है।हमने कहा है कि एक नगर परिषद एक विशेष रूप से संवेदनशील नगरपालिका परिषद है जैसा कि नंदीग्राम में है जहां माननीय मुख्यमंत्री चुनाव लड़ीं और हार गईं। चुनाव आयोग ने आश्चर्यजनक रूप से हमारे आवेदन आने से एक दिन पहले एक आदेश पारित किया कि उस नगर पालिका में ईवीएम पर मुहर नहीं होगी। यह आदेश समझना असंभव है! चुनाव आयोग ने अपनी प्रतिक्रिया में एक समाचार पत्र पर भरोसा किया जो कि टीएमसी का आधिकारिक समाचार पत्र है, जो कहता है कि कोई हिंसा नहीं हुई। हमने हिंदू, टेलीग्राम , इंडियन एक्सप्रेस को रिकॉर्ड में रखा है जिसमें सभी ने लगातार कहा कि गंभीर हिंसा हुई थी। हिंदू कहता है कि पश्चिम बंगाल में हिंसा सर्वविदित है और कुछ भी नहीं बदला है!"

    पटवालिया ने जोर देकर कहा,

    "कल शाम तक, हमें बताया गया था कि अर्धसैनिक बलों को तैनात नहीं करने के लिए कुछ निर्णय लिया गया है, लेकिन हमें कोई आदेश नहीं दिया गया है। अभी जैसे ही सुनवाई शुरू हुई है, हमें पश्चिम बंगाल पुलिस विभाग से 25 फरवरी 2022 की तारीख वाला एक पृष्ठ प्राप्त हुआ है।यह सचिव पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग को संबोधित है और महानिदेशक और पुलिस महानिरीक्षक, कानून और व्यवस्था द्वारा हस्ताक्षरित है। यह कहता है कि पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग के विभिन्न निर्देशों के अनुसार, 27 फरवरी को होने वाले चुनाव के लिए बलों की संख्या बढ़ा दी गई है और चुनाव के लिए बलों की कुल तैनाती 44,000 है। यह अभी भी एक संचार नहीं है जिससे यह पता चलता है कि केंद्रीय बलों की आवश्यकता है या नहीं। अभी तक इस तरह के किसी निर्णय से अवगत नहीं कराया गया है!"

    पीठ ने संक्षिप्त चर्चा के बाद याचिका को खारिज करने का फैसला किया।

    इसके बाद, भारत संघ के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा,

    "आपने इस पर विचार नहीं करने का फैसला किया है। लेकिन त्रिपुरा चुनाव मामले में कोर्ट ने पूछा था कि क्या सरकार कुछ कर सकती है। मैं यह कह सकता हूं कि हमें बलों की तैनाती में कोई समस्या नहीं है।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "धन्यवाद, श्रीमान सॉलिसिटर", और अगले आइटम को बोर्ड पर लेने को कहा।

    पीठ ने हालांकि कहा कि वह हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है और याचिका खारिज करने के लिए आगे बढ़ी।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि हाईकोर्ट ने आक्षेपित फैसले में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस बनाम त्रिपुरा राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भरता को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि उस विशेष मामले में जमीनी स्थिति पर विचार करने के बाद, अर्धसैनिक बलों को तैनात करने का निर्णय पहले ही लिया जा चुका था और बाद में मुद्दा केवल सीआरपीएफ की अतिरिक्त कंपनियों को उपलब्ध कराने का था। हालांकि, मौजूदा मामले में, चुनाव आयोग ने अभी तक जमीनी स्थिति का आकलन करने के बाद अर्धसैनिक बलों को तैनात करने का निर्णय नहीं लिया है, हाईकोर्ट ने आगे प्रकाश डाला था।

    पृष्ठभूमि

    भाजपा ने हाईकोर्ट के समक्ष आरोप लगाया था कि पश्चिम बंगाल में हाल ही में हुए नगरपालिका चुनावों के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा और वोटों की हेराफेरी हुई थी और तदनुसार शेष 108 नगरपालिकाओं के आगामी चुनावों के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग की थी।

    चार नगर निगमों – सिलीगुड़ी, बिधाननगर, आसनसोल और चंद्रनगर के चुनाव 12 फरवरी को हुए थे। इन चार नगर निगमों के चुनाव कुछ हफ़्ते पहले COVID-19 संक्रमण में बढ़ोतरी को देखते हुए हाईकोर्ट के निर्देश पर स्थगित कर दिए गए थे।

    कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ ने बुधवार को राज्य चुनाव आयोग को राज्य के गृह सचिव, पुलिस महानिरीक्षक और अन्य अधिकारियों के साथ 24 घंटे के भीतर एक संयुक्त बैठक करने और निर्णय लेने का निर्देश दिया था कि क्या 108 नगरपालिकाओं के आगामी चुनावों के शांतिपूर्ण संचालन के लिए केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती की आवश्यकता होगी।

    हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि हिंसा होने पर राज्य चुनाव आयुक्त व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होंगे, आगे फैसला सुनाया था,

    "यदि आयुक्त, राज्य चुनाव आयोग अर्धसैनिक बलों को तैनात नहीं करने का निर्णय लेता है, तो वह यह सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा कि कोई हिंसा न हो और नगरपालिका में स्वतंत्र, निष्पक्ष और निडर चुनाव हों जहां अर्धसैनिक बल नहीं हैं।"

    हाईकोर्ट ने ने यह भी नोट किया था कि हालांकि यह आरोप लगाया गया है कि भाजपा उम्मीदवारों को अपना नामांकन पत्र दाखिल करने से रोका गया है, लेकिन न तो उन उम्मीदवारों के नामों का खुलासा किया गया है और न ही उनके समर्थन में हलफनामा दायर किया गया है। आगे यह भी कहा गया था कि 4 नगर पालिकाओं के पहले ही संपन्न चुनावों के संबंध में कथित हिंसा के बारे में परस्पर विरोधी सामग्री को रिकॉर्ड में रखा गया है।

    हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि याचिका में आरोपों की प्रकृति को देखते हुए, एसईसी को आईएएस कैडर के निष्पक्ष अधिकारियों को पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त करना चाहिए।

    हाईकोर्ट ने ने पहले राज्य चुनाव आयोग को राज्य के मुख्य सचिव और गृह सचिव के साथ-साथ महानिदेशक और पुलिस महानिरीक्षक के साथ 12 घंटे के भीतर एक संयुक्त बैठक करने और यह तय करने का निर्देश दिया था कि विधाननगर नगर निगम के हाल ही में संपन्न चुनावों के शांतिपूर्ण संचालन के लिए केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती होगी या नहीं जो 12 फरवरी को हुए थे।

    यह मानते हुए कि राज्य चुनाव आयोग के आयुक्त को यह सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा कि कोई हिंसा न हो, अदालत ने आगे निर्देश दिया, "यदि आयुक्त, राज्य चुनाव आयोग की राय है कि विधाननगर नगर निगम चुनाव के दौरान अर्धसैनिक बलों की तैनाती आवश्यक नहीं है, तो वह व्यक्तिगत रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी होंगे कि कोई हिंसा न हो और बिधाननगर में स्वतंत्र, निडर और शांतिपूर्ण चुनाव हों। राज्य चुनाव आयोग ने बाद में 4 नगर निगमों के चुनावों के लिए केंद्रीय बलों को तैनात नहीं करने का फैसला किया था।

    गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने दिसंबर 2021 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा हाईकोर्ट के एकल पीठ के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें कोलकाता नगर चुनावों के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग करने वाली भाजपा की याचिका को अस्वीकार कर दिया गया था। कोलकाता नगर निगम चुनाव 19 दिसंबर को हुए थे।

    सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भाजपा की इस तरह की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, जिसमें कोलकाता नगरपालिका चुनावों के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग की गई थी, पार्टी को इस तरह की राहत के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा था।

    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने भाजपा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह से कहा था,

    "केंद्रीय बल की आवश्यकता के संबंध में हम निर्णय नहीं ले सकते, हाईकोर्ट स्थिति जानने के लिए बेहतर स्थिति में होगा।"

    केस: प्रताप बनर्जी और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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