सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों को मासिक धर्म स्वच्छता पर राष्ट्रीय नीति बनाने की याचिका पर 31 अगस्त तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया

Shahadat

25 July 2023 10:30 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों को मासिक धर्म स्वच्छता पर राष्ट्रीय नीति बनाने की याचिका पर 31 अगस्त तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 अगस्त, 2023 तक अपनी संबंधित मासिक धर्म स्वच्छता (Menstrual Hygiene) नीतियों के संबंध में केंद्र सरकार को अपनी प्रतिक्रिया देने का निर्देश दिया।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने यह निर्देश देश में स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए मासिक धर्म स्वच्छता की मांग करने वाली याचिका पर पारित किया।

    इससे पहले, अदालत ने केंद्र सरकार को मासिक धर्म स्वच्छता पर राष्ट्रीय नीति बनाने का निर्देश दिया था और कहा था कि उक्त नीति को कम लागत वाले सैनिटरी नैपकिन और स्कूलों में सैनिटरी नैपकिन के सुरक्षित निपटान तंत्र को सुनिश्चित करना चाहिए। इस प्रयोजन के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 4 सप्ताह की अवधि के भीतर अपनी मासिक धर्म स्वच्छता नीतियां संघ को भेजने का निर्देश दिया गया।

    हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को सूचित किया कि केंद्र को केवल चार राज्यों, अर्थात् दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से प्रतिक्रिया मिली। उन्होंने अदालत से अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी जल्द ही अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश देने का अनुरोध किया।

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने आदेश सुनाते हुए कहा,

    "हम सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 अगस्त, 2023 तक मामले में जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हैं। इस आदेश की एक प्रति राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के सभी मुख्य सचिवों को उपलब्ध कराई जाएगी। यदि इस आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो इस अदालत को कानून का सहारा लेना होगा। मामले को नवंबर के दूसरे सप्ताह में सूचीबद्ध करें।"

    खंडपीठ उस याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें भारत संघ, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अन्य बातों के अलावा, कक्षा 6-12 तक की लड़कियों के लिए सैनिटरी पैड और सभी सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों और आवासीय स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय के प्रावधान सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग की गई।

    याचिका के अनुसार, अपर्याप्त मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) विकल्प शिक्षा के लिए बड़ी बाधा है, कई लड़कियां स्वच्छता सुविधाओं, मासिक धर्म उत्पादों तक पहुंच की कमी और मासिक धर्म से जुड़े कलंक के कारण स्कूल छोड़ देती हैं।

    याचिका में न केवल स्कूल में मुफ्त सैनिटरी नैपकिन और शौचालय की मांग की गई, बल्कि तीन चरणीय जागरूकता कार्यक्रम की भी मांग की गई -

    1. मासिक धर्म स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता पैदा करता है और इससे जुड़ी वर्जनाओं को दूर किया जाए;

    2. विशेष रूप से वंचित क्षेत्रों में महिलाओं को पर्याप्त स्वच्छता सुविधाएं और सब्सिडीयुक्त या मुफ्त स्वच्छता उत्पाद दिया जाए;

    3. मासिक धर्म अपशिष्ट निपटान का कुशल और स्वच्छतापूर्ण तरीका सुनिश्चित किया जाए।

    केस टाइटल: डॉ. जया ठाकुर बनाम भारत सरकार और अन्य। डब्ल्यूपी(सी) नंबर 1000/2022

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