'अगर 3 साल में विज्ञापनों पर 1100 करोड़ रुपये खर्च किए जा सकते हैं तो इंफ्रा प्रोजेक्ट्स में भी योगदान दिया जा सकता है': सुप्रीम कोर्ट ने रैपिड रेल पर दिल्ली सरकार से कहा

Shahadat

24 July 2023 2:02 PM IST

  • अगर 3 साल में विज्ञापनों पर 1100 करोड़ रुपये खर्च किए जा सकते हैं तो इंफ्रा प्रोजेक्ट्स में भी योगदान दिया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट ने रैपिड रेल पर दिल्ली सरकार से कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली सरकार के इस बयान को स्वीकार कर लिया कि वह आरआरटीएस प्रोजेक्ट (रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) में योगदान देने के लिए बजटीय प्रावधान करेगी।

    पिछले अवसर पर यह अवगत कराए जाने पर कि दिल्ली सरकार बजटीय बाधाओं के कारण आरआरटीएस परियोजना (रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) में योगदान नहीं दे रही है, सुप्रीम कोर्ट ने उसे पिछले तीन वित्तीय वर्षों में विज्ञापनों के लिए इस्तेमाल किए गए धन का खुलासा करते हुए दो सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था।

    इसके बाद हलफनामा दायर किया गया और बताया गया कि खर्च की गई राशि लगभग 1073 करोड़ रुपये है।

    जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने आदेश में स्पष्ट रूप से दर्ज किया,

    "हम केवल इस तथ्य के कारण अंतिम आदेश पारित करने के लिए बाध्य हैं कि दिल्ली सरकार ने अपनी आनुपातिक राशि का योगदान करने से हाथ खड़े कर दिए।"

    इसमें आगे कहा गया,

    "अगर पिछले 3 वित्तीय वर्षों में विज्ञापन के लिए 1100 करोड़ रुपये खर्च किए जा सकते हैं तो निश्चित रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में योगदान दिया जा सकता है।"

    जस्टिस कौल ने विज्ञापनों के लिए किए गए बजटीय आवंटन के बारे में सूचित किए जाने पर दिल्ली सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट एएम सिघवी से कहा,

    "या तो आप भुगतान करें या हम आपका विज्ञापन बजट कुर्क कर लेंगे।"

    सिंघवी ने न्यायाधीश को आश्वासन दिया कि भुगतान किया जाएगा, लेकिन पीठ से अनुरोध किया कि इसे उचित समयावधि में किस्तों में करने की अनुमति दी जाए।

    जस्टिस कौल ने माना कि भुगतान अनुसूची स्वयं समय की अवधि में फैली हुई है। खंडपीठ को सूचित किया गया कि राज्य निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार संबंधित परियोजनाओं के लिए बजटीय प्रावधान करेगा। राज्य सरकार की बात को स्वीकार करते हुए खंडपीठ ने अतिदेय राशि के भुगतान के संबंध में भी निर्देश पारित किया।

    [केस टाइटल: एमसी मेहता बनाम यूओआई और अन्य। डब्ल्यूपी(सी) नंबर 13029/1985]

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