"यह किस तरह की याचिका है?" आपातकाल के कारण हुई परेशानी के लिए मुआवजे की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई स्थगित करते हुए कहा
LiveLaw News Network
7 Dec 2020 5:09 PM IST
"यह किस तरह की याचिका है? ", 94 साल की विधवा द्वारा दायर याचिका को स्थगित करते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा।
एक 94-वर्षीया विधवा ने 1975 में आपातकाल की घोषणा को असंवैधानिक करार दिये जाने और इसमें हिस्सा लेने वाले अधिकारियों से मुआवजा के तौर पर 25 करोड़ रुपये दिलाये जाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता डॉ नीला गोखले द्वारा सूचित किया गया था कि इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे द्वारा बहस की जाएगी।
न्यायमूर्ति कौल ने इस बिंदु पर टिप्पणी की,
"यह कैसी याचिका है? 30-35 साल बाद।"
इसके बाद गोखले ने जुलाई 2020 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश का उल्लेख किया, जिसमें याचिकाकर्ता के पति से संबंधित संपत्ति के किराए के भुगतान का निर्देश दिया गया था, जो आपातकाल के दौरान कार्यवाही के अधीन थी।
बेंच अगले सोमवार को मामले को सूचीबद्ध किया।
एक 94-वर्षीया विधवा ने 1975 में आपातकाल की घोषणा को असंवैधानिक करार दिये जाने और इसमें हिस्सा लेने वाले अधिकारियों से मुआवजा के तौर पर 25 करोड़ रुपये दिलाये जाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
'एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला (1976)' मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले को पलटने वाले 2017 के 'के एस पुत्तास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत सरकार' मामले में दिये गये फैसले पर भरोसा करते हुए याचिका में कहा गया है कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में दफन सबसे काले अध्याय 'आपातकाल' के दौरान अधिकारियों के हाथों अत्याचार की शिकार हुई इस याचिकाकर्ता को अभी तक राहत प्रदान नहीं की जा सकी है।
एडवोकेट डॉ. नीला गोखले की ओर से तैयार और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) अनन्या घोष द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि, "याचिकाकर्ता, उसके मृतक पति और परिजनों पर हुए अत्याचार के मामले में न्याय हासिल करने और घोर कष्ट में बिताये गये उनके जीवन के लिए क्षतिपूर्ति की मांग को लेकर यह याचिका दायर की गयी है।"
आपातकाल के पीड़ितों के तौर पर याचिका में इस बात का ब्योरा दिया गया है कि तत्कालीन सरकारी अधिकारियों ने पीड़ितों के कारोबार और घरों को तबाह करने के प्रयास के तहत याचिकाकर्ता और उसके पति को गैर-न्यायोचित एवं निरंकुश हिरासत आदेश जारी करके निशाना बनाया था और इसके परिणामस्वरूप वे लोग देश छोड़ने को मजबूर हुए थे।
"उसका कारोबार बंद हो गया, अचल सम्पत्ति सहित सभी सम्पत्तियां और बहुमूल्य चीजें जब्त कर ली गयी थी और हथिया ली गयी थी। याचिकाकर्ता के पति ने दबाव के आगे घुटने टेक दिये और उनकी मौत हो गयी। उसके बाद से याचिकाकर्ता आपातकाल के दौरान अपने पति के खिलाफ जान-बूझकर शुरू किये गये मुकदमों को अकेले झेल रही है।" याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिसम्बर 2014 में दिये गये फैसले का हवाला देकर कहा गया है कि उसके पति के फलते-फूलते कारोबार के बंद होने से हुई क्षति और उसकी करोड़ों रुपये की जब्त बहुमूल्य चीजों की क्षतिपूर्ति अभी तक नहीं हो सकी है। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2014 के अपने फैसले में याचिकाकर्ता के मृत पति के खिलाफ मुकदमों को निरस्त कर दिया था।
याचिका में यह भी कहा गया है हाईकोर्ट ने 28 जुलाई 2020 के आदेश के तहत एक प्रॉपर्टी के बकाया किराये का भुगतान याचिकाकर्ता और अन्य कानूनी वारिसों को किये जाने का आदेश दिया था। हालांकि, याचिका में यह भी दलील दी गयी है कि अन्य बहुमूल्य चल सम्पत्तियों को गायब किया जा चुका है।
"कहने की जरूरत नहीं है कि आपातकाल के दौरान कई सरकारी अधिकारी अधिकारियों और निजी व्यक्तियों द्वारा बहुमूल्य चल सम्पत्तियां गायब की जा चुकी हैं और गैर-कानूनी तरीके से हथिया ली गयी है। आश्चर्यजनक रूप से, याचिकाकर्ता के बेटे को उस वक्त बहुत ही खराब अनुभव हुआ तथा गहरा धक्का लगा जब उसने देखा कि उसकी मां के चुराये गये गहनों में से कुछ नयी दिल्ली में बिक्री के लिए रखे गये हैं।" याचिकाकर्ता ने अपने वृद्धावस्था का हवाला देकर आपातकाल के दौरान लगे आघात से मुक्ति की इच्छा व्यक्त की है, ताकि उसे संतोष का भाव महसूस हो सके।