धार्मिक परेड से इनकार पर बड़ा फैसला : सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई अधिकारी की बर्खास्तगी को सही ठहराया
Amir Ahmad
25 Nov 2025 12:58 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना के अधिकारी सैमुअल कमलेसन की याचिका खारिज करते हुए उनकी सेवा से बर्खास्तगी को सही ठहराया। कमलेसन ने अपने पद से हटाए जाने को चुनौती दी थी, जो उन्हें साप्ताहिक रेजिमेंटल धार्मिक परेड में भाग लेने से लगातार इनकार करने के कारण किया गया था।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप से साफ इंकार कर दिया।
सुनवाई के दौरान कमलेसन की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि उनके मुवक्किल ने केवल मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने से परहेज़ किया था, क्योंकि यह उनके ईसाई धर्म के विरुद्ध है। उन्होंने यह भी कहा कि जहां भी सर्वधर्म स्थल होते थे, अधिकारी वहां परेड में सम्मिलित होते थे।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए पूछा कि क्या ऐसी ज़िद या अलगाववादी सोच किसी अनुशासित बल में स्वीकार्य हो सकती है।
जस्टिस बागची ने यह भी इंगित किया कि स्थानीय गिरजाघर के पादरी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि मंदिर में प्रवेश करना ईसाई धर्म के विरुद्ध नहीं है।
इस पर बचाव पक्ष ने कहा कि पादरी का मत सर्वधर्म स्थल के संदर्भ में था न कि मंदिर के।
खंडपीठ ने कहा कि अधिकारी का व्यवहार अपने ही सैनिकों के प्रति अनादरपूर्ण है और यह सेना जैसी संस्था में किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की कि सेना का मूल चरित्र धर्मनिरपेक्षता और अनुशासन है और किसी सैनिक अधिकारी को धार्मिक अहंकार या निजी मान्यता को संस्था पर हावी होने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
कमलेसन के वकील ने अंत में दंड में कमी की मांग की लेकिन अदालत ने इसे सिरे से खारिज कर दिया।
खंडपीठ ने कहा कि सेना में अनुशासन सर्वोपरि है और ऐसा व्यवहार किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।
चीफ जस्टिस ने स्पष्ट कहा कि यह आदेश गलत संदेश नहीं बल्कि एक मज़बूत संदेश देगा।
पृष्ठभूमि
कमलेसन वर्ष 2017 में कैवेलरी रेजिमेंट में भर्ती हुए थे और उन्हें बी स्क्वाड्रन का ट्रूप लीडर बनाया गया, जिसमें सिख सैनिक शामिल थे। उनका कहना था कि रेजिमेंट में केवल मंदिर और गुरुद्वारा थे कोई सर्वधर्म स्थल नहीं। उनका दावा था कि वे परेड में जाते थे पर जब हवन, आरती या पूजा होती थी तब गर्भगृह में प्रवेश से मना करते थे।
सेना ने बताया कि अधिकारी लगातार धार्मिक परेड से दूरी बनाते रहे जबकि उन्हें कई बार समझाया गया। सेना प्रमुख ने पूरे प्रकरण की समीक्षा कर यह निष्कर्ष निकाला कि कमलेसन का व्यवहार सैन्य अनुशासन और रेजिमेंट की एकता के लिए हानिकारक है और उनकी सेवा जारी रखना उचित नहीं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने भी माना था कि सशस्त्र बलों में अनुशासन की कसौटी सामान्य नागरिक जीवन से भिन्न होती है। कमलेसन ने बार-बार अपने धर्म को अपने सैन्य दायित्वों से ऊपर रखा जो सख्त अनुशासन वाली संस्था में स्वीकार्य नहीं।
आख़िरकार, सुप्रीम कोर्ट ने भी यही रुख अपनाते हुए कहा कि कमलेसन का रवैया न केवल अनुशासनहीनता है बल्कि उसकी वजह से सैनिकों के मनोबल और रेजिमेंट की एकजुटता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
अदालत ने कहा कि ऐसा व्यवहार युद्ध जैसी परिस्थितियों में घातक साबित हो सकता है, क्योंकि वहां नेतृत्व और अनुशासन ही सबसे बड़ा बल होता है।
इसके साथ ही कमलेसन की याचिका को पूरी तरह खारिज कर दिया गया।

