सुप्रीम कोर्ट ने 1969 में पूर्वी पाकिस्तान से पलायन करने वाले व्यक्ति को राहत देते हुए CAA का हवाला दिया
Shahadat
9 Dec 2024 9:52 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने 1969 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से भारत में पलायन करने वाले व्यक्ति के नागरिकता के दावे को स्वीकार करते हुए 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) का हवाला दिया।
जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने 2019 के संशोधन द्वारा नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 2(1)(बी) में जोड़े गए प्रावधान का हवाला देते हुए कहा कि अपीलकर्ता (हिंदू धर्म से संबंधित) को 'अवैध प्रवासी' नहीं माना जाएगा।
CAA पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है।
धारा 2(1)(बी) के प्रावधान में कहा गया,
"अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय से संबंधित कोई भी व्यक्ति जो 31 दिसंबर, 2014 से पहले वैध दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश करता है, उसे 'अवैध प्रवासी' नहीं माना जाएगा।"
अपीलकर्ता 16 वर्ष की आयु का है। वह 1969 में अपने पिता के साथ पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से भारत आया था। पश्चिम बंगाल सरकार में सरकारी नौकरी हासिल करने के लिए उसने अपने पिता को जारी किए गए प्रवासन प्रमाणपत्र के आधार पर नागरिकता प्रमाणपत्र के लिए आवेदन किया। प्रतिवादी अधिकारियों ने अपीलकर्ता को अनापत्ति प्रमाण-पत्र प्रदान किया और उसे 1985 में पश्चिम बंगाल सरकार की सेवा में नियुक्त किया गया।
हालांकि, पुलिस सत्यापन रिपोर्ट जिसे नियुक्ति की तिथि से तीन महीने के भीतर प्रस्तुत किया जाना चाहिए, केवल वर्ष 2010 में प्रस्तुत की गई, यानी उसकी नियुक्ति के 25 वर्षों से अधिक की अत्यधिक देरी के बाद। रिपोर्ट में अपीलकर्ता को सेवाओं के लिए 'अनुपयुक्त' पाया गया क्योंकि उसकी नागरिकता साबित नहीं हुई। इसके बाद 2011 में अपीलकर्ता को सेवाओं से बर्खास्त कर दिया गया और रिटायरमेंट लाभों से वंचित कर दिया गया।
कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा प्रशासनिक न्यायाधिकरण का आदेश खारिज करने के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने उसे सेवा से बर्खास्त करना का सरकार का फैसला रद्द कर दिया था।
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उसकी नागरिकता पर संदेह नहीं किया जा सकता। उसने सरकारी नौकरी हासिल करने के लिए अपने पिता के प्रवासन दस्तावेज़ के आधार पर नागरिकता प्रमाण-पत्र मांगा। हालांकि, राज्य ने तर्क दिया कि केवल प्रवासन प्रमाणपत्र ही भारतीय नागरिकता स्थापित नहीं कर सकता। अपीलकर्ता को अधिकारियों के पास अपनी नागरिकता रजिस्टर्ड कराने की आवश्यकता है।
जस्टिस महादेवन द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि अपीलकर्ता नागरिकता अधिनियम की धारा 5(1)(बी) के तहत रजिस्ट्रेशन के माध्यम से भारतीय नागरिकता का हकदार होगा। अधिनियम की धारा 5(1)(बी) कहती है कि “भारतीय मूल का व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर किसी देश या स्थान का सामान्य निवासी है, वह नागरिकता का हकदार है।”
अदालत ने कहा,
“इस मामले में अपीलकर्ता ने दावा किया कि उसके दादा-दादी अपने जन्म के कारण भारतीय नागरिक हैं। नागरिकता से संबंधित प्रावधान भारत के संविधान के भाग II में अनुच्छेद 5 से 11 के तहत निहित हैं। भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 4 अपीलकर्ता के पिता को वंश द्वारा नागरिक माना जाने का अधिकार देती है। अपीलकर्ता अधिनियम की धारा 5 के अनुसार रजिस्ट्रेशन द्वारा नागरिकता का भी हकदार है।”
न्यायालय ने कहा कि रजिस्ट्रेशन के माध्यम से नागरिकता प्राप्त करने के अलावा, अपीलकर्ता गैर-मुस्लिम होने के नाते 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) से भी लाभान्वित होगा। यह अधिनियम 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को "अवैध प्रवासी" के रूप में व्यवहार किए जाने से छूट देता है, जिससे उन्हें नागरिकता लाभ प्राप्त करने का अधिकार मिलता है।
न्यायालय ने कहा,
"पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार की मंशा धारा 2 में संशोधन के माध्यम से स्पष्ट की गई, 10.01.2020 से प्रभावी संशोधन अधिनियम संख्या 47/2019 के माध्यम से धारा 2 में प्रावधान पेश करके, जिसमें कहा गया कि यहां अपीलकर्ता जैसे व्यक्तियों को 'अवैध प्रवासी' नहीं माना जाएगा।"
तदनुसार, न्यायालय ने भारतीय नागरिकता प्रदान करने के संबंध में अपीलकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया और प्रतिवादी राज्य को अपीलकर्ता को रिटायरमेंट लाभ का भुगतान करने का आदेश दिया।
केस टाइटल: बासुदेव दत्ता बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य।