'भ्रष्टाचार राष्ट्र-निर्माण गतिविधियों को धीमा करता है': सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्ट लोक सेवकों को दंडित करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करने को कहा

Brij Nandan

15 Dec 2022 3:46 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की एक संविधान पीठ ने गुरुवार को माना कि भ्रष्टाचार के मामलों में जहां लोक सेवकों पर आरोप लगाया गया है, शिकायतकर्ताओं और अभियोजन पक्ष को यह देखने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए कि भ्रष्ट लोक सेवकों को दंडित किया जाए, ताकि प्रशासन से भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सके।

    कोर्ट ने कहा,

    "हम आशा कि शिकायतकर्ता और अभियोजन पक्ष यह सुनिश्चित करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करेंगे कि भ्रष्ट लोक सेवकों को सजा दी जाए और उन्हें दोषी ठहराया जाए ताकि प्रशासन और शासन प्रदूषण रहित और भ्रष्टाचार से मुक्त हो सके।"

    जस्टिस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना, जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने कहा,

    "मृत्यु या अन्य कारणों से शिकायतकर्ता का प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध न होने पर भी पीसी अधिनियम के तहत लोक सेवक को दोषी ठहराया जा सकता है, अवैध परितोषण की मांग परिस्थितियों के आधार पर निष्कर्षात्मक साक्ष्य के माध्यम से सिद्ध की सकती है।"

    संविधान पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता के साक्ष्य/अवैध संतुष्टि की मांग के प्रत्यक्ष या प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में, अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत अन्य साक्ष्यों के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(2, धारा 7 और धारा 13(1)(डी) के तहत लोक सेवक के अपराध की निष्कर्ष निकालने की अनुमति है।

    जस्टिस नागरत्न ने शीर्ष अदालत के पिछले निर्णयों का उल्लेख किया, जिसमें न्यायालय ने संकेत दिया था कि कैसे लोक सेवकों के बीच भ्रष्टाचार संस्थानों में जनता के विश्वास को खत्म करता है, उनके कामकाज को प्रभावित करता है और ईमानदार अधिकारियों को भी हतोत्साहित करता है।

    इस संबंध में, खंडपीठ ने दोहराया कि सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र सिंह बनाम हरियाणा राज्य के अपने फैसले में क्या कहा था।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह दुखद है, लेकिन एक कड़वी सच्चाई है कि भ्रष्टाचार राजनीति की महत्वपूर्ण नसों, सार्वजनिक सेवा में दक्षता के सामाजिक ताने-बाने और ईमानदार अधिकारियों का मनोबल गिराने वाले भ्रष्टाचार की तरह है। सार्वजनिक सेवा में दक्षता में तभी सुधार होगा जब लोक सेवक अपना कर्तव्य कर्तव्यनिष्ठा, सच्चाई, ईमानदारी से करता है और और अपने पद के कर्तव्यों के पालन के लिए खुद को समर्पित करता है।"

    कोर्ट ने एबी भास्कर राव बनाम सीबीआई के फैसले का भी हवाला दिया।

    कोर्ट ने कहा,

    "प्रतिवादी की प्रार्थना को स्वीकार करना मुश्किल है कि इस मामले में एक उदार दृष्टिकोण लिया जाए। लोक सेवकों द्वारा भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या बन गया है। यह हर जगह फैल गया है। सार्वजनिक गतिविधि का कोई भी पहलू इस भ्रष्टाचार की बदबू से अप्रभावित नहीं रह गया है। इसका पूरे देश के कामकाज पर गहरा और व्यापक प्रभाव पड़ता है। बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार राष्ट्र निर्माण गतिविधियों को धीमा कर देता है और सभी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।"

    [केस टाइटल: नीरज दत्ता बनाम राज्य (जीएनसीटीडी)|आपराधिक अपील संख्या) 1669/2009]



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