सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाईकोर्ट से जज पद के उस उम्मीदवार के मामले को फिर से देखने को कहा, जिसका चयन कुत्ते के काटने के 'झूठे' मामले में रद्द कर दिया गया

Shahadat

18 Aug 2023 11:09 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाईकोर्ट से जज पद के उस उम्मीदवार के मामले को फिर से देखने को कहा, जिसका चयन कुत्ते के काटने के झूठे मामले में रद्द कर दिया गया

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से उस न्यायिक अभ्यर्थी के मामले पर फिर से विचार करने को कहा, जिसका नाम "झूठी" आपराधिक शिकायत के कारण मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा, 2019 (परीक्षा) की मेरिट सूची से हटा दिया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि हाईकोर्ट ने उसे आपराधिक मामले से बरी करने पर विचार नहीं किया।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने अपने आदेश में प्रथम दृष्टया टिप्पणी की कि इस मामले पर प्रशासनिक पक्ष से हाईकोर्ट द्वारा फिर से विचार करने की आवश्यकता है।

    वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता को सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में तैनात होने के लिए चुना गया, लेकिन उसका नाम पिछले आपराधिक मामले के बारे में पता चलने के आधार पर मेरिट सूची/चयन सूची से हटा दिया गया। प्रासंगिक रूप से याचिकाकर्ता को उक्त मामले में बरी कर दिया गया था।

    इस संदर्भ में उसने अपनी याचिका में कहा,

    “आदेश पारित करने में भौतिक अनियमितता की गई, जिसके तहत याचिकाकर्ता का नाम उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 289 के तहत दर्ज मामले के पंजीकरण के आधार पर सुनवाई का कोई उचित अवसर दिए बिना सिविल जज के चयनित उम्मीदवारों की सूची से हटा दिया गया। बाद में उसे जेएमएफसी अदालत ने योग्यता के आधार पर बरी कर दिया।''

    शिकायतकर्ता के अनुसार, याचिकाकर्ता ने अपने पालतू कुत्ते से शिकायतकर्ता को कटवाया और इस तरह ऐसी कार्रवाई की, जो मानव जीवन के लिए किसी भी संभावित खतरे, या गंभीर चोट के किसी भी संभावित खतरे से बचाने के लिए पर्याप्त है।

    हालांकि, याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि उसके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर झूठी और दुर्भावनापूर्ण है।

    याचिका में कहा गया,

    “याचिकाकर्ता सीधे तौर पर अपराध में शामिल नहीं है, बल्कि वह पीड़िता है, जो शिकायतकर्ता की पिटाई से सड़क के कुत्ते को बचाने के दौरान घायल हो गई। साथ ही शिकायतकर्ता की मेडिकल रिपोर्ट से यह साबित हो गया कि उसे किसी कुत्ते ने नहीं काटा था। एफआईआर पूरी तरह से झूठी और दुर्भावनापूर्ण है, इसलिए जेएमएफसी अदालत भोपाल ने याचिकाकर्ता को योग्यता के आधार पर बरी कर दिया।

    याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि उसने न्यायिक सेवा परीक्षा के सभी चरणों यानी प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार में मामले और अपने बरी होने का उल्लेख किया।

    याचिकाकर्ता का कहना है कि पिछले आपराधिक मामले के आधार पर उसे नियुक्ति से इनकार करना, जिसमें वह बरी हो गई, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निर्धारित मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि उसके साथ अन्य उम्मीदवारों के समान और समान व्यवहार नहीं किया गया।

    याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट एस.के. गंगेले, नमित सक्सेना और अन्य ने किया।

    याचिका पर समान स्थिति वाले उम्मीदवारों द्वारा दायर तीन संबंधित रिट याचिकाओं के साथ विचार किया गया, जिनके चयन भी लंबित आपराधिक मामलों के कारण रद्द कर दिए गए।

    कोर्ट ने सभी मामलों को 17 अक्टूबर, 2023 को पोस्ट करते हुए आदेश दिया,

    "इस बीच चयनित होने के बाद याचिकाकर्ताओं को शामिल नहीं करने के कारण को देखते हुए प्रथम दृष्टया मामले को हाईकोर्ट द्वारा प्रशासनिक पक्ष पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है, यदि ऐसा नहीं होता है तो हम मामले को गुण-दोष के आधार पर सुनेंगे और आवश्यक आदेश पारित करेंगे।"

    केस टाइटल: अपूर्व पाठक बनाम मध्य प्रदेश हाईकोर्ट और अन्य, रिट याचिका (सिविल) नंबर 379/2023 एवं संबंधित मामले।

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें




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