'बिना सोचे समझे मौखिक टिप्पणी करने से बचें जो व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकती है': सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को सलाह दी

LiveLaw News Network

30 April 2021 1:52 PM GMT

  • बिना सोचे समझे मौखिक टिप्पणी करने से बचें जो व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकती है: सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को सलाह दी

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि उच्च न्यायालयों को सुनवाई के दौरान बिना सोचे समझे टिप्पणी करने से बचना चाहिए और साथ संयम बरतना चाहिए क्योंकि यह व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकती है और उनके बारे में गलतफहमी पैदा कर सकती है।

    न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह अवलोकन किया जो COVID-19 से संबंधित मुद्दों पर स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही थी।

    जब लगभग चार घंटे की सुनवाई खत्म होने की कगार पर थी, तब भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने COVID से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालयों द्वारा की गईं कुछ कठोर टिप्पणियों के बारे में पीठ के समक्ष शिकायत की।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि,

    "यौर लॉर्डशिप आप हमारे अविभाजित हिंदू परिवार के कर्ता के समान हैं। इसलिए मैं इसे प्रस्तुत कर रहा हूं। कुछ रिट याचिकाओं और आवेदनों में केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कठोर टिप्पणियां की गई हैं जबकि इसके राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाना था, लेकिन इससे बचा गया है। उच्च न्यायालयों में गंभीर टिप्पणियां की जाती हैं।"

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि,

    " अपलोड होने से पहले हम हर आदेश को बहुत ध्यान से देखते हैं।"

    एसजी ने स्पष्ट करते हुए कहा कि,

    "नहीं नहीं! मैं यौर लॉर्डशिप आपके बारे में बिल्कुल भी बात नहीं कर रहा हूं! मैं केवल यह कहना चाहता हूं जैसा कि लॉर्डशिप आपने हमारे अविभाजित हिंदू परिवार के कर्ता की भूमिका को स्वीकार कर लिया है, कुछ उच्च न्यायालयों ने कुछ बहुत ही कठोर अवलोकन किए हैं। यह चिंता का विषय हैं। हर किसी के द्वारा साझा किया जाता है, लेकिन संकट के इस समय में हमें बहुत सतर्क रहना चाहिए। यहां तक कि वकीलों के रूप में भी हमें बहुत ही चौकस सतर्क रहना चाहिए।"

    बिहार राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने भी एसजी की बातों का समर्थन किया और कहा कि कुछ उच्च न्यायालय तो ड्यूटी पर मौजूद अधिकारी की कड़ी आलोचना करते हैं। यह बहुत ही हतोत्साहित करने वाला है। कभी-कभी तो हद पार कर देते हैं। अपना काम नहीं कर रहे हैं और सरकारी अधिकारियों के रूप में काम नहीं कर रहे हैं।

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि,

    "मुझे आपकी बात समझ में आ गई। मैं उस संदर्भ को भी जानता हूं जिसकी आप बात कर रहे हैं। हम सभी बार के सदस्य रहे हैं और हम सभी जानते हैं कि जब न्यायाधीश अदालत में कुछ कहते हैं तो यह केवल वकीलों से जानकारी प्राप्त करने और वकीलों की प्रतिक्रिया के लिए होता है ताकि एक खुला संवाद हो सके। यह किसी भी निष्कर्ष के लिए नहीं है। यह केवल वकील और दूसरे पक्ष की परिकल्पना का टेस्ट करना है।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि,

    "हम किसी वकील के खिलाफ नहीं हैं। ठीक उसी तरह जब मेहरा (जीएनसीटीडी के लिए राहुल मेहरा) तर्क देते हैं हम उसी पीठ पर हैं जो बता रहे हैं कि वह क्या गलत है। सॉलिसिटर जनरल के मामले में भी यही है। हम टेस्ट करते हैं और उनकी दलीलों की आलोचना भी करते हैं।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि,

    "बेशक न्यायाधीशों के रूप में हमें इसे भी देखना होगा कि यह नया समय है जिसमें हम रह रहे हैं और हर शब्द जो हम कहते हैं सोशल मीडिया या ट्विटर का हिस्सा बन जाता है। हम सभी कह सकते हैं कि हम संयम बरतने उम्मीद करते हैं।"

    जस्टिस ने चंद्रचूड़ आगे कहा कि,

    "विशेष रूप से संवेदनशील मामलों में हम कुछ सावधानी और संयम बरतते हैं। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि हम टिप्पणी करने से डरते हैं। बेशक हम स्वतंत्र हैं! यह केवल गंभीर मामले में होता है जिसमें हम निजी नागरिकों के बारे में बिना सोचे समझे टिप्पणी कर देते हैं।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि,

    "जब हम उच्च न्यायालय के एक फैसले की आलोचना करते हैं तब भी हम सोच समझकर कहते हैं। बिना सोच समझे कुछ नहीं कहते हैं और हम संयम बरतते हैं। हम केवल यही उम्मीद करेंगे कि इनसे निपटने के लिए उच्च न्यायालयों को स्वतंत्रता दी गई है और हाईकोर्ट को बिना सोचे समझे टिप्पणी करने से बचना चाहिए।"

    एसजी ने कहा कि,

    " यौर लॉर्डशिप यह पर्याप्त है। जैसा कि कहा जाता है कि एक राजनयिक एक ऐसा व्यक्ति होता है जो अलग-अलग दृष्टिकोणों वाले लोगों की मदद करता है। यही समय की आवश्यकता है।"

    न्यायमूर्ति रवींद्र भट ने कहा कि,

    "उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को स्थानीय परिस्थितियों से अवगत काराया जाता है। इसलिए कभी-कभी वे भावुक हो जाते हैं और कठोर टिप्पणी कर देते हैं। लेकिन हमें इतना कमजोर नहीं होना चाहिए कि हम उनसे नाराज हों।"

    न्यायमूर्ति भट्ट ने कहा कि,

    "जब हमने स्वत: संज्ञान मामला उठाया, तो इस बात की आशंका थी कि हम उच्च न्यायालयों से मामलों को अपने पास वापस ले रहे हैं तो बार कहीं हम पर भी कड़ी टिप्पणी की और अब देखा जा रहा है कि बार को हाईकोर्ट से विवाद है।"

    जस्टिस भट्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा COVID-19 के मुद्दों पर स्वत: संज्ञान लेने के मामले में बार द्वारा की गई आलोचना का जिक्र किया और कहा कि उच्च न्यायालयों को लग रहा है कि हमने उनसे मामलों को छिन लिया है।

    मद्रास और दिल्ली के उच्च न्यायालयों ने गुरूवार को COVID19 से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ गंभीर मौखिक टिप्पणियां की थीं।

    मद्रास उच्च न्यायालय ने COVID-19 की दूसरी लहर से निपटने में केंद्र सरकार की तैयारियों पर सवाल उठाए थे और पूछा था कि केंद्र पिछले 14 महीनों से क्या कर रहा है।

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए केंद्र की ऑक्सीजन आवंटन नीति पर सवाल उठाया था। COVID -19 के मुद्दों पर स्वत: संज्ञान के मामले से निपटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया था कि हमारा उच्च न्यायालयों को ऐसे मामलों से निपटने से रोकने का कोई इरादा नहीं है।

    आज (शुक्रवार) चुनाव आयोग ने मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की, जिसमें न्यायाधीशों द्वारा की गई मौखिक टिप्पणी को मीडिया में प्रकाशित करने से रोकने की मांग की गई है।

    चुनाव आयोग के खिलाफ मद्रास उच्च न्यायालय की मौखिक टिप्पणियों के मद्देनजर यह याचिका दायर की गई है। कोर्ट ने COVID-19 की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराया।

    उच्च न्यायालय ने कहा कि कोर्ट मीडिया के संवेदनशील होने के मुद्दे पर चुनाव आयोग की शिकायत पर विचार करने के लिए थोड़ा समय ले सकता है क्योंकि बेंच को इस समय COVID -19 उपायों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

    Next Story