सुप्रीम कोर्ट ने 12 साल से जेल में बंद व्यक्ति को यह पता चलने के बाद रिहा किया कि अपराध के समय वह किशोर था

Sharafat

8 Sep 2023 10:24 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने 12 साल से जेल में बंद व्यक्ति को यह पता चलने के बाद रिहा किया कि अपराध के समय वह किशोर था

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति को रिहा करने का निर्देश दिया, जो 12 साल की कैद काट चुका था। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश यह पता चलने के बाद दिया कि वह अपराध के समय किशोर था और दोहराया कि किशोर न्याय अधिनियम, 2000 के तहत अधिकतम सजा 3 साल है।

    याचिकाकर्ता ने अपने किशोर होने के दावे के वैरिफिकेशन की मांग करते हुए संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका दायर करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। अदालत ने तदनुसार अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगी थी, जिन्होंने पुष्टि की थी कि अपराध के समय याचिकाकर्ता की उम्र 16 साल और 7 महीने थी।

    जस्टिस बीआर गवई , जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने सत्र न्यायाधीश की रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लेते हुए याचिकाकर्ता को रिहा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने देखा कि किशोरता का प्रश्न किसी भी अदालत के समक्ष और किसी भी स्तर पर उठाया जा सकता है जैसा कि किशोर न्याय अधिनियम 2000 की धारा 7ए(1) के तहत प्रावधान है।

    शीर्ष अदालत ने कहा,

    “अपराध के समय याचिकाकर्ता के किशोर होने की पुष्टि करने वाली अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद हमने रिट याचिका को स्वीकार कर लिया है और याचिकाकर्ता को रिहा करने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता ने किशोर न्याय अधिनियम, 2000 के तहत अधिकतम वैधानिक सजा से कहीं अधिक सजा यानी तीन साल की कैद की सज़ा भुगती है।”

    याचिकाकर्ता को 2009 में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 34 सहपठित धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने सजा की पुष्टि की थी। बाद में याचिकाकर्ता ने किशोरवयता के सत्यापन की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।

    शीर्ष अदालत ने कहा,

    “किशोर न्याय अधिनियम, 2000 की धारा 15(1)(जी) के सहपठित धारा 16 के मद्देनजर, याचिकाकर्ता की हिरासत में रहने की अधिकतम अवधि तीन वर्ष है। हालांकि, चूंकि हमारे सामने वर्तमान रिट याचिका में पहली बार किशोरवयता की दलील उठाई गई थी, 2005 में शुरू हुई आपराधिक कानून की प्रक्रिया के कारण याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया गया और ट्रायल कोर्ट द्वारा एक साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इस बीच, याचिकाकर्ता 12 साल से अधिक कारावास की सजा काट चुका है। द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, खम्मम की रिपोर्ट को स्वीकार करने के बाद याचिकाकर्ता को अब कैद में नहीं रखा जा सकता है।"

    केस टाइटल : मक्केला नागैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, रिट याचिका (सीआरएल) संख्या 429/2022

    ऑर्डर पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




    Next Story