'बहुत बल्की सिनॉप्सिस से बचें': सुप्रीम कोर्ट ने 6 पेज के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर 60 पेज के सिनोप्सिस पर निराशा जताई

Sharafat

26 Aug 2023 8:56 AM GMT

  • बहुत बल्की सिनॉप्सिस से बचें: सुप्रीम कोर्ट ने 6 पेज के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर 60 पेज के सिनोप्सिस पर निराशा जताई

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उसके समक्ष आने वाले मामलों में भारी-भरकम सिनॉप्सिस दाखिल करने के प्रति आगाह किया। शीर्ष अदालत ने कर्नाटक हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की ।

    शीर्ष अदालत ने इस बात पर निराशा व्यक्त की कि हाईकोर्ट के जिस आदेश को चुनौती दी जा रही है, उस आदेश में केवल 6 पेज थे, जबकि एसएलपी का सिनोप्सिस 60 पेज से अधिक था। इसके अतिरिक्त शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि निचली अदालत के जिस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी, उसमें केवल 10 पेज थे।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह की भारी भरकम सिनॉप्सिस से बचना चाहिए।

    पीठ ने अपने आदेश में दर्ज किया, "..हमें यहां यह दर्ज करना होगा कि शिकायत 10 पेज की है, ट्रायल कोर्ट का आदेश 10 पेज का है और हाईकोर्ट का विवादित आदेश 6 पेज का है। हालांकि, 60 से अधिक पेज का सिनॉप्सिस और 27 पेज का है एसएलपी के हैं। इस तरह के भारी सिनॉपसिस से बचना चाहिए।"

    मौजूदा मामले में निचली अदालत में मुकदमे में प्रतिवादियों ने परिसीमा के आधार पर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 7 नियम 11 के तहत वाद को खारिज करने के लिए एक आवेदन दायर किया था। ट्रायल कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी थी, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

    पीठ ने कहा, "कानून अच्छी तरह से स्थापित है कि वाद को अस्वीकार नहीं किया जा सकता या उचित दलीलों के बिना मुकदमे को परिसीमा द्वारा वर्जित मानकर खारिज नहीं किया जा सकता है, परिसीमा पर मुद्दे को तैयार करना और साक्ष्य लेना, परिसीमा का प्रश्न तथ्य और कानून का एक मिश्रित प्रश्न है और शिकायत को पढ़ने पर यह नहीं माना जा सकता कि मुकदमा समय से बाधित है।"

    शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश की पुष्टि करते हुए एसएलपी को खारिज कर दी। अदालत ने कहा,

    " ट्रायल कोर्ट ने पहले ही लिमिटेशन के मुद्दे को तैयार कर लिया है। वादपत्र पर गौर करने के बाद हम हाईकोर्ट से सहमत हैं कि यह ऐसा मामला नहीं था जहां लिमिटेशन की बाधा के आधार पर वादी को खारिज किया जा सकता था।"

    केस टाइटल : द्रक्षायनम्मा और अन्य बनाम गिरीश और अन्य अपील के लिए विशेष अनुमति (सी) नंबर 18219/2023

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