कानून में बाद में किया गया बदलाव बरी किए जाने के फैसले को पलटने का आधार नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
19 Dec 2024 12:50 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि बरी किए जाने के खिलाफ अपील के साथ देरी के लिए माफ़ी मांगने के आवेदन को अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि अभियोजन पक्ष का मामला कानून में बाद में किए गए बदलाव से समर्थित है। कोर्ट के अनुसार, कानून में बदलाव से पहले से तय किए गए मामला फिर से खोलने का औचित्य नहीं बनता।
कोर्ट ने कहा,
"कानून में बदलाव बरी किए जाने के फैसले में गलती खोजने का आधार नहीं हो सकता।"
जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की बेंच ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर आपराधिक अपील पर सुनवाई की, जिसमें अपीलकर्ता को बरी किए जाने के खिलाफ राज्य की याचिका स्वीकार किया गया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के बाद के फैसले ने अभियोजन पक्ष के मामले का पक्ष लिया।
संक्षेप में कहें तो मोहन लाल बनाम पंजाब राज्य (2018) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर अपीलकर्ता को बरी कर दिया गया, जिसमें कहा गया कि निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए आपराधिक मामले में शिकायतकर्ता और जांचकर्ता एक ही व्यक्ति नहीं होने चाहिए।
बाद में मुकेश सिंह बनाम राज्य (2020) में सुप्रीम कोर्ट ने मोहन लाल का फैसला खारिज कर दिया, जिसमें शिकायतकर्ता को जांचकर्ता के रूप में कार्य करने की अनुमति दी गई।
मुकेश सिंह के फैसले पर भरोसा करते हुए राज्य ने अपीलकर्ता की बरी को पलटने के लिए बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर करने में हुई 1184 दिनों की देरी को माफ करने की अनुमति मांगते हुए हाईकोर्ट में अपील की।
बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर करने में देरी के लिए आवेदन की अनुमति देने के हाईकोर्ट के फैसले से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि कानून में बाद में बदलाव बरी किए जाने को पलटने का आधार नहीं हो सकता।
दिल्ली विकास प्राधिकरण बनाम तेजपाल एवं अन्य (2024) के हालिया मामले का संदर्भ दिया गया, जिसमें कहा गया कि कानून में बदलाव से पहले से तय मामलों को फिर से नहीं खोला जा सकता है, जब तक कि वे अंतिम निर्णय के लिए लंबित न हों।
अदालत ने कहा,
चूंकि हैदर का मामला 2018 में तय किया गया, इसलिए 2020 में मुकेश सिंह के फैसले के कारण इसे फिर से नहीं देखा जा सकता था।
न्यायालय ने कहा,
“बरी करने के आधार पर विचार करने के बाद और यह तथ्य भी कि कानून में बदलाव अपने आप में 10.12.2018 तक अपीलकर्ता के पक्ष में दिए गए बरी करने के फैसले में गलती खोजने का आधार नहीं हो सकता है, हमारे आकलन में हाईकोर्ट का 23.06.2023 का विवादित आदेश कायम नहीं रखा जा सकता है। तदनुसार, सीआरएल में 23.06.2023 के आदेश को अलग करके। अपील संख्या 762/2023, अपील स्वीकार की जाती है।”
केस टाइटल: हैदर बनाम केरल राज्य