(स्टिंग ऑपरेशन या ब्लैकमेल) सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा दी
LiveLaw News Network
17 Feb 2020 7:45 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने उन पत्रकारों को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा दी है, जिन्होंने स्टिंग ऑपरेशन करने की कोशिश की थी। इन सभी पर आरोप है कि इन्होंने कथित तौर पर पैसे और महिलाओं का लालच देकर ब्लैकमेल करने के लिए राज्य के विभिन्न राजनेताओं तक पहुंच प्राप्त करने की कोशिश की थी।
पत्रकार भूपेंद्र प्रताप सिंह,अभिषेक सिंह,हेमंत चैरसिया और आयुष कुमार सिंह की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, महेश जेठमलानी और अनुपम लाल दास को सुनने के बाद जस्टिस आर बानुमथी और एएस बोपन्ना की पीठ ने इन सभी को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा दी।
यह राहत इस शर्त पर दी गई है कि वे अगले आदेश तक जांच में सहयोग करेंगे। न्यायालय ने उन्हें उनके पासपोर्ट संबंधित पुलिस स्टेशन में समर्पण करने या सौंपने का भी निर्देश दिया है।
वरिष्ठ वकीलों ने कहा कि आरोपी पत्रकार कुछ प्रभावशाली लोगों पर स्टिंग ऑपरेशन करना चाहते थे और जिसके कारण इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एक झूठा मामला दायर किया गया, जबकि इनका मुख्य पेशा पत्रकारिता है।
आरोपियों के खिलाफ आरोप यह था कि इन्होंने शिकायतकर्ता के साथ वित्तीय लेनदेन करने और उसके राजनीतिक कनेक्शन का फायदा उठाने के लिए खुद को व्यवसायी के रूप में पेश किया था। यह भी आरोप लगाया गया कि राजनेताओं को महिलाओं और पैसे का लालच देकर उनसे धमकी देकर वसूली करने के लिए गहरी साजिश रची थी।
हाईकोर्ट में दायर अपनी अग्रिम जमानत याचिका में अभियुक्तों ने अपने कृत्यों का बचाव करते हुए दलील दी थी कि वे भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए केवल वास्तविक स्टिंग ऑपरेशन कर रहे थे।
इनकी याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने पाया था कि सार्वजनिक हित के 'स्टिंग ऑपरेशन' में उनका शामिल होना, आपराधिक दायित्व को समाप्त नहीं करता है।
न्यायमूर्ति सुव्रा घोष और जोयमाल्या बागची की पीठ ने कहा था कि, ''सार्वजनिक हित के'स्टिंग ऑपरेशन' में शामिल होना, किसी व्यक्ति को आपराधिक दायित्व से मुक्त नहीं करता। ऐसा तब और होता है, जब जांच के दौरान एकत्रित सामग्री यह दर्शाती है कि याचिकाकर्ताओं की गतिविधि उतनी सहज नहीं दिखती है, जैसी की दलील दी गई है, बल्कि ब्लैकमेल करने और जबरन वसूली की तरह है।
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