गन्ने की क़ीमत निर्धारित करने का अधिकार राज्य और केंद्र दोनों को, अगर राज्य की निर्धारित क़ीमत केंद्र से अधिक है तो इससे कोई विवाद पैदा नहीं होता : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

23 April 2020 10:08 AM GMT

  • गन्ने की क़ीमत निर्धारित करने का अधिकार राज्य और केंद्र दोनों को,  अगर राज्य की निर्धारित क़ीमत केंद्र से अधिक है तो इससे कोई विवाद पैदा नहीं होता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि गन्ने का मूल्य निर्धारण का मुद्दा समवर्ती सूची में आता है और केंद्र और राज्य दोनों को ही इसकी क़ीमत निर्धारित करने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार की गन्ने की क़ीमत केंद्र की निर्धारित क़ीमत से नीचे नहीं होना चाहिए। और अगर राज्य चाहे तो वह केंद्र की क़ीमत से ऊँची क़ीमत का निर्धारण कर सकता है।

    न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, एमआर शाह और एसआर रविंद्र भट की पाँच-सदस्यीय पीठ ने इस बात का निर्णय किया कि चौधरी टिका रामजी एवं अन्य आदि बनाम उतर प्रदेश राज्य एवं अन्य (AIR 1956 SC 676) और यूपी को-ऑपरेटिव केन यूनियंस फ़ेडेरेशंस बनाम वेस्ट यूपी शुगर मिल्ज़ एसोसिएशन एंड अदर्स [(2004)5SCC 430] मामले में कोई टकराव है कि नहीं है।

    पीठ ने कहा कि दोनों ही फ़ैसलों में कोई टकराव नहीं है और इसलिए कहा कि इसलिए इस मामले को 7 जजों की बेंच को भेजने का की कोई ज़रूरत नहीं है। 27 फ़रवरी को बेंच ने इस मामले को बड़ी बेंच को सौंपने के बारे में फ़ैसले को सुरक्षित रखा था।

    इसमें यह निर्धारित करना था कि उत्तर प्रदेश सरकार को केंद्र की निर्धारित क़ीमत के ऊपर गन्ने का स्टेट एडवाइज्ड प्राइस (एसएपी) निर्धारित करने का अधिकार है कि नहीं।

    वर्ष 2012 में 3 जजों की पीठ ने कहा था कि चौधरी टिका रामजी एवं अन्य आदि बनाम उतर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में टकराव है और उसने इस मामले को पाँच जजों की पीठ को सौंप दिया था।

    उपरोक्त दोनों मामलों में जो फ़ैसले आए हैं उन पर ग़ौर करते हुए पाँच जजों की बेंच ने कहा कि दोनों फ़ैसलों में किसी भी तरह का टकराव नहीं है।

    अदालत ने कहा,

    "इस अदालत ने यूपी को- ऑपरेटिव केन यूनियंस फ़ेडेरेशंस के मामले में फ़ैसला दिया कि राज्य को यूपी गन्ना (आपूर्ति और ख़रीद विनियमन) अधिनियम, 1953 की धारा 16 के तहत एसएपी निर्धारित करने का अधिकार है और इस तरह यह उसके क़ानूनी क्षेत्र के बाहर नहीं है। एक बार जब एसएपी का निर्धारण हो जाता है, गन्ना आयुक्त पक्षकारों को इसका अनुसरण करने को कह सकता है जैसा कि यूपी को- ऑपरेटिव
    केन यूनियंस फ़ेडेरेशंस के फ़ैसले में कहा गया। यह नहीं कहा जा सकता कि …धारा 16 के तहत क़ीमतों का निर्धारण मनमाना है ….। इस तरह हमारी राय में टिका रामजी मामले में आया फ़ैसला यूपी कोआपरेटिव केन यूनियंस फ़ेडेरेशंस मामले में आए फ़ैसले से टकराता नहीं है और बाद वाले मामले को किसी बड़ी पीठ को भेजने की ज़रूरत नहीं है।"

    पाँच जजों की पीठ के फ़ैसले की मुख्य बातें -

    1. संविधान के समवर्ती सूची (सातवें अनुच्छेद की प्रविष्टि 33 और 34) में होने के कारण केंद्र और राज्य दोनों को गन्ना का मूल्य निर्धारित करने का अधिकार है। पर राज्य सरकार केंद्र की क़ीमत से नीचे क़ीमत का निर्धारण नहीं कर सकती।

    2. यूपी गन्ना (आपूर्ति और ख़रीद विनियमन) अधिनियम, 1953 की धारा 16 के तहत राज्य सरकार को एसएपी निर्धारित करने का अधिकार है जो हमेशा ही केंद्र की निर्धारित क़ीमत से अधिक होगी।

    3. केंद्र सरकार जो कीमत निर्धारित करती है वह न्यूनतम क़ीमत होती है और राज्य सरकार जो क़ीमत निर्धारित करती है वह एडवाइज्ड प्राइस होता है और जो केंद्र कि न्यूनतम क़ीमत से हमेशा ही अधिक होता है और इस वजह से दोनों में किसी भी तरह का कोई टकराव नहीं होता।

    4. यूपी को-ऑपरेटिव केन यूनियंस फ़ेडेरेशंस बनाम वेस्ट यूपी शुगर मिल्ज़ एसोसिएशन एंड अदर्स [(2004)5SCC 430] मामले में संविधान पीठ ने जो फ़ैसला दिया है वह सही क़ानून है।


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