अयोग्यता पर फैसला देने के लिए स्पीकर का समय निर्धारण करने के SC के फैसले पर वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने संदेह जताया
LiveLaw News Network
5 Feb 2020 10:16 AM IST

वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों के बेंच के हालिया फैसले के बारे में संदेह व्यक्त किया जिसमें स्पीकर को संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत विधायकों की अयोग्यता पर निर्णय लेने के लिए समय-सीमा निर्धारित की है।
यह मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष हुआ जो DMK की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष को
2017 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई पलानीस्वामी के विश्वास प्रस्ताव में विरोध में वोट करने वाले ओ पन्नीरसेल्वम और अन्नाद्रमुक के 10 अन्य विधायकों को अयोग्य घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
वहीं द्रमुक की ओर से पेश वरिष्ठ कपिल सिब्बल ने मामले पर फैसला करने के लिए स्पीकर को दिशा-निर्देश की मांग की। उन्होंने किल्हो होलोहन बनाम जचिल्लु और अन्य [1992 SCR (1) 686] के मामले का हवाला देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने कहा था कि स्पीकर दसवीं अनुसूची के अनुसार अयोग्यता के मामलों का फैसला करते समय न्यायिक जांच से प्रतिरक्षा का आनंद नहीं लेते हैं और वो अयोग्यता के मामलों को तय करने के लिए बाध्य हैं तथा निर्णय सीमित न्यायिक समीक्षा के लिए खुले हैं।
इस आशय के लिए, सिब्बल ने केशिम मेघचंद्र सिंह बनाम विधानसभा अध्यक्ष मणिपुर विधान सभा स्पीकर और अन्य (2020) में न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली 3 न्यायाधीश बेंच द्वारा हालिया फैसले का हवाला दिया जिसने
उचित समय निर्धारित किया है और बाध्य तरीके (आदर्श रूप से तीन महीने) जिसके अनुसार इस तरह की अयोग्यता स्पीकर द्वारा तय की जानी है।
जिन विधायकों की अयोग्यता मांगी गई है, उनके लिए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने न्यायमूर्ति नरीमन द्वारा लिखित इस फैसले पर संदेह व्यक्त किया।
रोहतगी ने बताया कि एसए संपत कुमार बनाम काले यादियाह व अन्य (2016) के मामले में जस्टिस आर के अग्रवाल और जस्टिस आर एफ नरीमन ने इस मुद्दे पर बड़ी पीठ को संदर्भ भेजा था कि क्या न्यायालय एक लंबित अयोग्यता मामले पर निर्णय लेने के लिए स्पीकर को निर्देश दे सकता है।
हालांकि, कीशम मेघचंद्र मामले में, जिसमें जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन के साथ जस्टिस नरीमन एक हिस्सा थे, ने इस आधार पर संदर्भ को रद्द कर दिया कि 5 न्यायाधीशों की बेंच को संदर्भित कानून का सवाल राजेंद्र सिंह राणा व अन्य
बनाम स्वामी प्रसाद मौर्य व अन्य (2007) में पहले ही तय हो चुका है।
"यह निर्णय इस आधार पर आगे बढ़ता है कि एक संदर्भ 2-न्यायाधीश बेंच द्वारा 5-न्यायाधीश पीठ को भेजा जाता है। हालांकि, यह निर्णय उस संदर्भ को रद्द कर देता है। यह कैसे किया जा सकता है? यह 3-न्यायाधीश पीठ के लिए खुला नहीं है। " रोहतगी ने दावा किया।
रोहतगी ने कहा कि हाल ही में सुनाए गए एक फैसले के आधार पर अध्यक्ष को फटकार नहीं लगाई जा सकती।
हालांकि, CJI बोबडे ने कहा कि जस्टिस नरीमन के फैसले पर कोर्ट अपील में नहीं बैठा है। रोहतगी ने हालांकि जोर देकर कहा कि संपत कुमार के फैसले में किया गया संदर्भ अभी भी विचार के लिए खुला है।
CJI ने हालांकि इस मुद्दे पर विचार करने के लिए असंतोष व्यक्त किया और कहा:
"हम किसी प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं करेंगे। हमें लगता है कि स्पीकर से विलंब के बारे में पूछना उचित है।"
अयोग्यता की दलीलों पर 3 साल की निष्क्रियता के बारे में CJI तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल से स्पष्टीकरण लेने के लिए आगे बढ़े।
"कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है? यह देरी अनावश्यक है। आप इसे खारिज भी कर सकते थे। हमें बताएं कि आप क्या करेंगे और कब करेंगे। हम दो सप्ताह के भीतर इसकी परिणति का निर्देश नहीं देंगे, क्योंकि हम न्यायिक अतिरेक का प्रयोग नहीं करना चाहते हैं।हम ऐसा नहीं कर सकते, " CJI बोबडे ने पूछा।
उसी के आधार पर, एक सप्ताह के भीतर, अयोग्य ठहराए गए विधायकों की याचिका पर स्पीकर द्वारा देरी पर भी स्पष्टीकरण मांगा गया है। यह मामला अब 14 फरवरी, 2020 को सूचीबद्ध किया गया है।