सोशल मीडिया का पॉजीटिव, निगेटिव और संतुलित प्रभाव: जस्टिस जेके माहेश्वरी

Shahadat

25 Sept 2023 10:00 AM IST

  • सोशल मीडिया का पॉजीटिव, निगेटिव और संतुलित प्रभाव: जस्टिस जेके माहेश्वरी

    सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस जेके माहेश्वरी ने अंतर्राष्ट्रीय वकीलों के सम्मेलन 2023 में बोलते हुए न्याय प्रणाली पर सोशल मीडिया के प्रभाव का व्यापक अवलोकन किया।

    उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सोशल मीडिया को तीन दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है: पॉजीटिव, निगेटिव और संतुलित। प्रत्येक परिप्रेक्ष्य का लॉ कम्युनिटी और बड़े पैमाने पर समाज के लिए अपने स्वयं के निहितार्थ होते हैं।

    अपने संबोधन में उन्होंने सबसे पहले निम्नलिखित बातें कहीं-

    पॉजीटिव प्रभाव:

    कम्युनिटी से जुड़ना: सोशल मीडिया वकीलों और जजों को कम्युनिटी से जुड़े रहने में सक्षम बनाता है, जिससे सामाजिक गतिशीलता और समाज को प्रभावित करने वाले मुद्दों की बेहतर समझ को बढ़ावा मिलता है।

    कानूनी जागरूकता फैलाना: यह कानूनी जागरूकता फैलाने के लिए शक्तिशाली उपकरण के रूप में कार्य करता है, जिससे कानूनी जानकारी आम जनता के लिए अधिक सुलभ हो जाती है।

    सूचना तक न्यायसंगत पहुंच: सोशल मीडिया भौगोलिक सुदूरता के बावजूद सूचना तक सुविधाजनक और न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करता है।

    ई-सुनवाई और लाइव स्ट्रीमिंग: सोशल मीडिया ने ई-सुनवाई और अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग की शुरुआत की है, जिससे पारदर्शिता और पहुंच को बढ़ावा मिला है।

    पॉजीटिव उदाहरण:

    निर्भया केस: सोशल मीडिया आंदोलनों ने निर्भया बलात्कार मामले के बारे में जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे अंततः कानून में बदलाव आया।

    COVID-19 महामारी: महामारी के दौरान, सोशल मीडिया ने आवश्यक आपूर्ति की जमाखोरी और कालाबाजारी जैसे मुद्दों को उजागर करने, कानूनी कार्रवाई और सकारात्मक परिणामों को बढ़ावा देने में मदद की।

    सुशांत सिंह राजपूत केस: संवेदनशील मामलों पर मीडिया कवरेज के लिए दिशानिर्देश तैयार किए गए और सोशल मीडिया पर सार्वजनिक चर्चा के परिणामस्वरूप कानूनी प्रक्रियाओं में सुधार किया गया।

    ई-कोर्ट: COVID-19 महामारी के दौरान ई-कोर्ट के कामकाज ने भारत को उच्च केस लोएड को कुशलतापूर्वक संभालने की अनुमति दी।

    निगेटिव प्रभाव:

    पूर्वाग्रहग्रस्त आख्यान: सोशल मीडिया ट्रायल कानूनी पेशे और कम्युनिटी मेंबर के मन में नकारात्मक और पूर्वाग्रहित आख्यान पैदा कर सकते हैं, जो अक्सर अधूरी या गलत जानकारी पर आधारित होते हैं।

    अत्यधिक ट्रोलिंग: कानूनी पदाधिकारियों को तथ्यों की सीमित जानकारी वाले व्यक्तियों से अत्यधिक ट्रोलिंग और आलोचना का सामना करना पड़ सकता है, जिससे अनुचित सार्वजनिक राय बन सकती है।

    मानहानि और निजता का हनन: न्यायाधीशों और इसमें शामिल पक्षकारों सहित हितधारकों को सोशल मीडिया पर जानकारी के अनियमित प्रसार के माध्यम से मानहानि और निजता के हनन का सामना करना पड़ सकता है।

    न्यायिक निर्णयों में पूर्वाग्रह: सोशल मीडिया का प्रभाव अनजाने में न्यायाधीश की निर्णय लेने की प्रक्रिया में पूर्वाग्रह ला सकता है, क्योंकि वे सार्वजनिक भावनाओं के साथ जुड़ने के लिए दबाव महसूस कर सकते हैं।

    निगेटिव उदाहरण:

    ज्ञानवापी मस्जिद मामला: सोशल मीडिया ने इस मामले को लेकर सांप्रदायिक समस्या पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विभिन्न समुदायों ने घटनाओं की अलग-अलग व्याख्या की। न्यायाधीशों को धमकियां और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम है।

    संतुलित प्रभाव:

    त्वरित प्रतिक्रियाएं: सोशल मीडिया के माध्यम से लाइव स्ट्रीमिंग से घटनाओं या संकटों पर तेज़ प्रतिक्रियाएं मिल सकती हैं, जैसा कि मणिपुर हिंसा जैसी घटनाओं पर त्वरित प्रतिक्रिया से पता चलता है, जहां वीडियो और सबूत व्यापक रूप से साझा किए गए। उसी का परिणाम है कि पीड़ितों को न्याय तक पहुंच सुनिश्चित हुई।

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