सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई दया, पारिवारिक हालात और सुधरने की मंशा पर झपटमार को दी राहत 

LiveLaw News Network

5 Feb 2020 12:15 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई दया, पारिवारिक हालात और सुधरने की मंशा पर झपटमार को दी राहत 

    एक अहम फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक कुख्यात झपटमार को कई मामलों मे चाकू की नोंक पर झपटमारी के मामले में दोषी करार देकर एक के बाद एक सजा के फैसले को पलटते हुए रिहा करने के आदेश दिए हैं।

    जस्टिस आर बानुमति और जस्टिस ए एस बोपन्ना की पीठ ने उसकी गरीब पृष्ठभूमि, बीमार मां और जेल में उसके द्वारा दिखाए गए सुधार के संकेतों पर विचार करते हुए ये फैसला सुनाया है।

    दरअसल एक सीरियल चेन झपटमार विक्की को पांच मामलों में दोषी ठहराया गया था और दिल्ली में रोहिणी और तीस हजारी में ट्रायल कोर्ट द्वारा अलग-अलग सजा सुनाई गई थी। आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 427 के अनुसार पहले से ही दोषी व्यक्ति अगर फिर से दोषी पाया जाता है और उसके द्वारा किए गए अपराध के अन्य मामलों में सजा सुनाई जाती है तो बाद के मामलों में उसे दी गई सजाएं लगातार चलेंगी ना कि समवर्ती।

    इस प्रावधान के तहत विक्की को पहले दस साल की सजा हुई और दूसरे मामले में उसे इसके बाद सात साल की कैद की सजा काटनी थी। दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा उसकी उस याचिका को खारिज कर दिया गया जिसमें उसने एक साथ सजा काटने के आदेश देने की मांग की थी। इसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की।

    पीठ ने जेल प्रशासन से दोषी और उसके परिवार के बारे में रिपोर्ट मांगी। प्रोबेशन अधिकारी की रिपोर्ट में कहा गया कि यह पाया गया कि उसका परिवार बहुत गरीब है और पिछले 20 वर्षों से 50 गज के घर में रह रहा है। अपीलकर्ता के पिता की उम्र 58 वर्ष है, उनका स्वास्थ्य खराब है और वे कारपेंटर के रूप में काम कर परिवार में एकमात्र कमाने वाले हैं। अपीलकर्ता की मां कैंसर से पीड़ित थी और आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण इलाज नहीं करा पा रही है।

    अपीलकर्ता के पिता ने बताया कि उनका बेटा दोषी साबित होने से पहले अपने काम में मदद कर रहा था। अपीलकर्ता की बड़ी बहन की शादी हो चुकी है, लेकिन पिछले डेढ़ साल से वह अपने ससुराल में घरेलू हिंसा के कारण अपने मायके में रह रही है। पड़ोसियों से पूछताछ करने पर उन्होंने अपीलकर्ता और उसके परिवार के पक्ष में रिपोर्ट की। अपीलकर्ता के परिवार ने अपीलकर्ता के साथ फिर से जुड़ने और सामान्य सामाजिक जीवन जीने की इच्छा व्यक्त की। अपीलकर्ता के पास अपने परिवार की पूर्ण स्वीकृति है और उसने उनके साथ फिर से एकजुट होने के लिए गहरी रुचि और इच्छा भी दिखाई है।

    पीठ ने कहा,

    "परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट, अपीलकर्ता की मां की बीमारी, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, तथ्यों और परिस्थितियों और न्याय के हित में, हमारे विचार में, यह देखते हुए कारावास की सजा को समवर्ती चलाने के लिए निर्देशित करने में विवेक का उपयोग करने के लिए एक फिट मामला है। "

    इसके अलावा पीठ ने कहा कि चूंकि अपीलकर्ता की खराब आर्थिक पृष्ठभूमि है इसलिए एफआईआर 67/2011 और एफआईआर 263-2009 में प्रत्येक दोष पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया है और इसे रद्द किया जाता है।

    पीठ ने ये भी साफ किया कि कारावास की सजा को समवर्ती रूप से चलाने का यह आदेश मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों और अपीलकर्ता की मां की बीमारी के कारण दिया गया है और इसलिए अन्य मामलों में इसे मिसाल के तौर पर नहीं उद्धृत किया जा सकता है। पीठ ने तुरंत विक्की को रिहा करने का आदेश दिया।

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