छह वरिष्ठ वकीलों नेे मुख्य न्यायाधीश से किया आग्रह, बाॅम्बे हाईकोर्ट में नियमित कामकाज की अनुमति दी जाए

LiveLaw News Network

19 May 2020 2:11 AM GMT

  • छह वरिष्ठ वकीलों नेे मुख्य न्यायाधीश से किया आग्रह, बाॅम्बे हाईकोर्ट में  नियमित कामकाज की अनुमति दी जाए

    बॉम्बे हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि वे हाईकोर्ट की सभी बेंच को नियमित कामकाज करने की अनुमति देने पर विचार करें. क्योंकि वर्तमान लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी सोशल डिस्टेंसिंग आदि जैसे प्रतिबंध जारी रहेंगे। पत्र में कहा गया है कि एक बार कोर्ट खुलने के बाद हाई कोर्ट के लिए नियमित रूप से कामकाज फिर से शुरू करना बहुत मुश्किल हो जाएगा क्योंकि बहुत सारे नए केस दायर किए जाएंगे और पुराने लंबित मामलों का बोझ भी अदालतों पर आएगा।

    अधिवक्ता इक़बाल् चागला, जनक द्वारकादास, फ्रेडुन ई डी विट्रे, नवरोज एच सिरवाई, एमपी भरुचा और डेरियस खंबाटा ने तर्क दिया है कि मान लीजिए कि मुंबई में यह लाॅकडाउन जून के अंत तक जारी रहे। वहीं प्रतिदिन दायर किए जा रहे नए मामलों की संख्या का देखें, क्योंकि इस समय कोर्ट के काम को प्रतिबंधित किया गया है और बेंच कुछ घंटों के लिए ही काम कर रही है। ऐसे में जब कोर्ट को फिर से खोला जाएगा तो उस समय लंबित मामलों की संख्या इतनी होगी कि उसे संभालना मुश्किल हो जाएगा।

    वर्तमान में हाईकोर्ट की सभी बेंच सीमित घंटों (12-2 बजे के बीच) के लिए अपनी सीमित शक्ति के साथ कार्य कर रही हैं। हालाँकि बॉम्बे हाईकोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध डेटा बताता है कि 30 जून, 2019 तक 4.5 लाख से अधिक मामले लंबित थे। इसके अलावा 2 मार्च से 20 मार्च, 2020 के बीच 1,256 मामले (केवल ओरिजनल साइड पर) दायर किए गए थे यानी प्रति दिन लगभग 90 मामले दायर किए गए थे।

    पत्र में कहा गया है-

    ''इस आधार पर, यह मान लेना सुरक्षित है कि भले ही 30 जून तक सामान्य स्थिति बहाल हो जाए, जिसकी अभी अधिक संभावना नहीं है,परंतु उसके बाद भी कोर्ट फिर से शुरू होने के बाद लगभग 6,700 ताजा मामले (जो लॉकडाउन के दौरान दायर नहीं हो पाए हैं) दायर किए जाएंगे। पत्र में कहा गया है कि जब तक हाईकोर्ट में सामान्य तौर पर सभी उपलब्ध जज अपने नियमित काम के घंटों के दौरान सुनवाई शुरू नहीं कर देते हैं,तब तक हाईकोर्ट पुराने मामलों के अलावा दायर होने वाले नए मामलों का भी सामना नहीं कर पाएगा या उन्हें निपटा नहीं पाएगा। तकनीक के प्रभावी उपयोग से ही यह पूरी तरह से संभव है।''

    इस ज्ञापन में सीजेआई एसए बोबडे़ और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की ई-फाइलिंग की अवधारणा पर भी जिक्र किया गया है, क्योंकि सीजेआई और जस्टिस चंद्रचूड़ ने 15 मई को सुप्रीम कोर्ट के ई-फाइलिंग मॉड्यूल का उद्घाटन किया था।

    उस समय सीजेआई ने कहा था कि-

    ''ई-फाइलिंग ने वास्तव में अदालत की रजिस्ट्री को अधिवक्ताओं के चैंबर में ला दिया है''

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा था कि-''ई-फाइलिंग नागरिकों को कुशल न्याय प्रदान करने के अधिकार को बढ़ाएगा।''

    हाईकोर्ट द्वारा पहले इस्तेमाल की गई वीडियो कॉन्फ्रेंस एप्लिकेशन के संबंध में,इस पत्र में कहा गया है कि -

    "हाईकोर्ट द्वारा पहले इस्तेमाल की गई वीडियो कॉन्फ्रेंस एप्लिकेशन संतोषजनक नहीं थी। भले ही अब अधिक मजबूत प्लेटफार्म का उपयोग किया जाता है, लेकिन कनेक्टिविटी फिर भी एक गंभीर मुद्दा है। परिणामस्वरूप सीमित संख्या में वीडियो के जरिए हुई सुनवाई में भी समय-समय पर व्यवधान उत्पन्न हुए हैं।''

    इस प्रकार, मुख्य न्यायाधीश को निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं -

    1.अदालत को सभी उपलब्ध न्यायाधीशों के साथ सुनवाई शुरू करनी चाहिए। सभी जज नियमित कोर्ट कार्यदिवसों में अपराह्न 11 बजे से 2 बजे तक और फिर 3 बजे से शाम 5 बजे तक काम करें। जैसा की मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट कर रही है।

    2. अभी सामूहिक पारगमन प्रतिबंधित है इसलिए न्यायालय को कोर्ट के सभी संबंधित कर्मचारियों के लिए आने-जाने करने की व्यवस्था करनी चाहिए। इस संबंध में, केरल हाईकोर्ट ने 15 मई 2020 को एक आधिकारिक ज्ञापन जारी किया था,जिसमें कहा गया था कि ''केएसआरटीसी (केरल राज्य सड़क परिवहन निगम) के साथ समन्वय करके जिले के विभिन्न स्थानों से हाईकोर्ट लाने और फिर यहां से वापस ले जाने के लिए वाहन सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।''

    3. सभी प्रारंभिक उपायों को उपयोग किया जा सकता है ताकि जल्द से जल्द कोर्ट में व्यक्तिगत तौर पर पेश होकर सुनवाई फिर से शुरू की जा सके।

    4. ई-फाइलिंग सुविधाएं-

    ए- सुप्रीम कोर्ट की प्रैक्टिस के अनुरूप, ई-फाइलिंग सभी ताजा फाइलिंग के लिए उपलब्ध होनी चाहिए और ''बहुत जरूरी'' या ''तत्काल'' मामलों तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए।

    बी- सभी ई-फाइलिंग सर्चेबल पीडीएफ फॉर्मेट में होने चाहिए। जिनमें इग्जिबिट/ एनेक्स्चर के बुकमार्क और हाइपरलिंक भी साथ दिए हो। ताकि न्यायाधीश और वकील रिकॉर्ड के माध्यम से उनको कुशलता से नेविगेट कर सकें या खोज सकें।

    5. लंबित मामलों के संबंध में कहा गया है कि उनको सूचीबद्ध करने से पहले रिकॉर्ड को डिजिटाइज किया जाना आवश्यक होगा। हाईकोर्ट रिकॉर्ड्स के डिजिटलीकरण के लिए तकनीकी रूप से योग्य एजेंसी को नियुक्त करने पर विचार कर सकती है और संबंधित एडवोकेट आॅन रिकॉर्ड/पक्षकारों से सहायता लेने के लिए अनुरोध भी किया जा सकता है।

    6. यदि सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों को रिकॉर्ड या स्क्रीन शेयरिंग के माध्यम से नेविगेट करने के लिए सहायता की आवश्यक हो तो अधिवक्ताओं के कार्यालयों से जूनियर वकीलों या तकनीकी कर्मचारियों को अदालत की सहायता करने की अनुमति दी जा सकती है।

    7. मामलों को सूचीबद्ध करने की वर्तमान प्रणाली को नए सिरे से बनाए जाने की आवश्यकता है। इस संबंध में कई सुझाव दिए गए हैं। (प्रतिनिधित्व या ज्ञापन को देखें)

    8. पक्षकारों की सहमति लेकर न्यायालय द्वारा मामलों के अंतिम निस्तारण के लिए वीडियो के जरिए सुनवाई करने का निर्देश भी दिया जा सकता है। खासतौर पर जब तक कि उपरोक्त आवश्यकताओं का अनुपालन नहीं किया जाता है।

    9. पक्षकारों की सहमति लेकर 24 मार्च 2020 से पहले लंबित सभी मामलों में भी वीडियो सुनवाई करने का निर्देश न्यायालय द्वारा दिया जा सकता है। इसके लिए मामले की सुनवाई के लिए तय की गई तारीख से एक सप्ताह पहले ही रजिस्ट्री को हाइपरलिंक्स और बुकमार्क के साथ पूरी तरह से खोजे जाने वाले पीडीएफ प्रारूप में पूरे रिकॉर्ड को फिर से तैयार करना होगा।

    10. वर्तमान लिस्टिंग प्रणाली के तहत प्रत्येक जज /बेंच के समक्ष मामलों की अवास्तविक संख्या सूचीबद्ध की जाती है। यह सुझाव दिया जा रहा है कि केवल मामलों की वास्तविक संख्या को ही सूचीबद्ध किया जाए (यदि संभव हो तो, स्टैगर्ड टाइम स्लॉट में) ताकि प्रत्येक बेंच त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए रिकॉर्ड को पहले ही अच्छे देख लें या समझ लें।

    11. इस महामारी को प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और दीर्घकाल के लिए दक्षता बढ़ाने के अवसर के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए।

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