क्या सीपीसी के ऑर्डर 39 नियम 2ए लागू करने के लिए 'जानबूझकर' निषोधाज्ञा की अवज्ञा होनी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के फैसले पर संदेह जताया

LiveLaw News Network

8 Aug 2021 7:41 AM GMT

  • क्या सीपीसी के ऑर्डर 39 नियम 2ए लागू करने के लिए जानबूझकर निषोधाज्ञा की अवज्ञा होनी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के फैसले पर संदेह जताया

    Should Disobedience Of Injunction Be 'Wilful' To Invoke Order 39 Rule 2A CPC? Supreme Court Doubts Its Earlier Judgment

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले की शुद्धता पर संदेह किया है जिसमें कहा गया था कि नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश XXXIX, नियम 2-ए के लिए "केवल अवज्ञा" नहीं बल्कि "जानबूझकर अवज्ञा" की आवश्यकता है।

    न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति बी आर गवई की खंडपीठ ने अमेजन-फ्यूचर रिटेल करार मामले में यह टिप्पणी की।

    पीठ ने कहा कि नियम 2-ए मुख्य रूप से आदेश XXXIX, नियम 1 और 2 के तहत पारित आदेशों को लागू करने के लिए है। इसने आगे कहा कि 'यू.सी. सुरेंद्रनाथ बनाम माम्बली बेकरी' मामले में दिये गये निर्णय की समीक्षा एक बड़ी बेंच द्वारा किये जाने की आवश्यकता है।

    सीपीसी का आदेश XXXIX अस्थायी निषेधाज्ञा प्रदान करने से संबंधित है। नियम 1 उन मामलों को सूचीबद्ध करता है जिनमें अस्थायी निषेधाज्ञा दी जा सकती है और नियम 2 पुनरावृत्ति को रोकने या उल्लंघन को जारी रखने के लिए निषेधाज्ञा देने के बारे में है। नियम 2-ए निषेधाज्ञा की अवज्ञा या उल्लंघन का परिणाम निम्नानुसार प्रदान करता है: (1) कोर्ट के नियम 1 या नियम 2 के तहत दिए गए किसी भी निषेधाज्ञा या अन्य आदेश की अवज्ञा या किसी भी शर्तों के उल्लंघन के मामले में, जिस पर निषेधाज्ञा लागू की गई थी, या कोई न्यायालय जिसे वाद या कार्यवाही स्थानांतरित की जाती है, ऐसी अवज्ञा या उल्लंघन के दोषी व्यक्ति की संपत्ति को कुर्क करने का आदेश दे सकता है, और ऐसे व्यक्ति को दीवानी जेल में तीन महीने से अधिक की अवधि के लिए हिरासत में रखे जाने का आदेश भी दिया जा सकता है जाएगा, जब तक कि इस बीच न्यायालय उसकी रिहाई का निर्देश न दे।

    इस प्रावधान को इस मामले में बेंच द्वारा व्याख्या की गई थी क्योंकि हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इमरजेंसी आर्बिट्रेटर द्वारा पारित निर्णय को लागू करने के लिए एमेजॉन द्वारा दायर एक आवेदन में नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश XXXIX, नियम 2-ए के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया था।

    इस संबंध में, कोर्ट ने 'भारतीय खाद्य निगम बनाम सुख देव प्रसाद, (2009) 5 एससीसी 665' मामले में दिये गये एक निर्णय का संज्ञान लिया था जिसमें यह माना गया था कि न्यायालयों की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत दीवानी अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति के समान ही सीपीसी के आदेश 39 नियम 2-ए के तहत एक अदालत द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्ति दंडात्मक है। यह भी नोट किया गया कि 'यू.सी. सुरेंद्रनाथ बनाम माम्बली बेकरी, (2019) 20 एससीसी 666' मामले में यह देखा गया कि सीपीसी के आदेश 39 नियम 2-ए के तहत आदेश की जानबूझकर अवज्ञा के दोषी व्यक्ति के निर्धारण के लिए केवल "अवज्ञा" नहीं, बल्कि "जानबूझकर अवज्ञा" होना चाहिए।

    'यू.सी. सुरेंद्रनाथ' मामले में न्यायमूर्ति आर. भानुमति और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की खंडपीठ ने इस प्रकार कहा था:

    सीपीसी के आदेश XXXIX नियम 2ए के तहत आदेश की जानबूझकर अवज्ञा के लिए दोषी व्यक्ति के निर्धारण के लिए केवल "अवज्ञा" नहीं होना चाहिए, बल्कि यह "जानबूझकर अवज्ञा" होना चाहिए। जानबूझकर अवज्ञा का आरोप आपराधिक दायित्व की प्रकृति में है, इसे अदालत की संतुष्टि के लिए साबित करना होगा कि अवज्ञा केवल "अवज्ञा" नहीं बल्कि "जानबूझकर अवज्ञा" थी।

    'यू.सी. सुरेंद्रनाथ'(सुप्रा) मामले में की गई व्याख्या की शुद्धता पर संदेह जताते हुए पीठ ने कहा:

    50. यह कहना एक बात है कि आदेश XXXIX, नियम 2-ए के तहत अदालत द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्ति दंडात्मक प्रकृति की है और न्यायालयों की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत दीवानी अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति के समान है। यह कहना काफी अलग है कि आदेश XXXIX, नियम 2-ए के लिए "केवल अवज्ञा" नहीं बल्कि "जानबूझकर अवज्ञा" की आवश्यकता है। प्रथम दृष्ट्या हमारा विचार है कि बाद में आदेश XXXIX, नियम 2-ए में "विलफुल" शब्द जोड़ने का बाद का निर्णय बिल्कुल सही नहीं है और इसकी एक बड़ी पीठ द्वारा समीक्षा की आवश्यकता हो सकती है। यह कहना पर्याप्त है कि आदेश XXXIX, नियम 1 और 2 के तहत पारित आदेशों और अदालत की अवमानना में किए गए आदेशों को लागू करने में एक बड़ा अंतर है।

    कोर्ट ने कहा कि अदालत की अवमानना से संबंधी आदेश मुख्य रूप से अपराधी को जुर्माना या जेल की सजा या दोनों लगाकर दंडित करने के लिए बनाए जाते हैं, जबकि आदेश XXXIX, नियम 2-ए मुख्य रूप से आदेश XXXIX, नियम 1 और 2 के तहत पारित आदेशों को लागू करने के लिए है। कोर्ट ने कहा कि उस उद्देश्य के लिए, दीवानी अदालतों को विशाल शक्तियां दी जाती हैं, जिसमें कारावास के आदेश पारित करने के अलावा संपत्ति कुर्क करने की शक्ति भी शामिल है, जो प्रकृति में दंडात्मक हैं।

    कोर्ट ने आगे जोड़ा, "जब स्थायी निषेधाज्ञा के लिए एक आदेश लागू किया जाना है, आदेश XXI, नियम 32 कुर्की और/या सिविल जेल में नजरबंदी का प्रावधान करता है। वैसे आदेश जो ऑर्डर XXI, नियम 32 के तहत पारित किए जाते हैं, मुख्य रूप से इसी तरह के तरीकों से निषेधाज्ञा आदेशों को लागू करने के इरादे से है, जैसा ऑर्डर XXXIX, नियम 2-ए में निहित हैं। यह आदेश XXXIX के उद्देश्य को भी दर्शाता है, नियम 2-ए मुख्य रूप से अंतरिम निषेधाज्ञा के आदेशों को लागू करने के लिए है।"

    केस: एमेजनडॉटकॉम एनवी इन्वेस्टमेंट होल्डिंग्स एलएलसी बनाम फ्यूचर रिटेल लिमिटेड; सीए 4492-4493 /2021

    कोरम: न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और न्यायमूर्ति बीआर गवई

    अधिवक्ता: वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम, वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार (अपीलकर्ता के लिए), वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, वरिष्ठ अधिवक्ता के वी विश्वनाथन, वरिष्ठ अधिवक्ता विक्रम ननकानी (प्रतिवादी के लिए)

    साइटेशन : एलएल 2021 एससी 357

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