"शाहजहां के ताजमहल का निर्माण कराने का कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं": सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ताजमहल के "वास्तविक इतिहास" की मांग

Shahadat

30 Sept 2022 1:24 PM IST

  • शाहजहां के ताजमहल का निर्माण कराने का कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ताजमहल के वास्तविक इतिहास की मांग

    सुप्रीम कोर्ट में "ताजमहल के वास्तविक इतिहास का अध्ययन करने, विवाद को शांत करने और इसके इतिहास को स्पष्ट करने" के लिए तथ्य खोज समिति (Fact Finding Committee) के गठन की मांग करते हुए याचिका दायर की गई।

    याचिकाकर्ता डॉ. रजनीश सिंह के अनुसार, हालांकि यह कहा गया कि ताजमहल का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज़ महल के लिए 1631 से 1653 तक 22 वर्षों की अवधि के दौरान कराया था, लेकिन इसे साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

    याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 12 मई के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें इस आधार पर उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी कि मुद्दे न्यायिक रूप से निर्धारित नहीं है।

    एडवोकेट समीर श्रीवास्तव के माध्यम से दायर याचिका के अनुसार, एनसीईआरटी ने उन्हें आरटीआई प्रश्न में उत्तर दिया कि शाहजहां द्वारा ताजमहल के निर्माण के संबंध में कोई प्राथमिक स्रोत उपलब्ध नहीं है। याचिकाकर्ता ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में एक और आरटीआई दायर की लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।

    हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता ने ताजमहल में सीलबंद 22 कमरों को अध्ययन और निरीक्षण के लिए खोलने के निर्देश भी मांगे थे। उन्होंने प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों और पुरातत्व स्थलों और अवशेष (राष्ट्रीय महत्व की घोषणा) अधिनियम, 1951 के तहत "मुगल आक्रमणकारियों" द्वारा ऐतिहासिक स्मारकों के रूप में निर्मित स्मारकों की घोषणा को भी चुनौती दी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एसएलपी में याचिकाकर्ता ने कहा कि वह केवल अपनी पहली प्रार्थना ताजमहल के "वास्तविक इतिहास" का अध्ययन करने के लिए तथ्य खोज समिति पर जोर दे रहा है।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि एएसआई विश्व धरोहर स्थल ताजमहल का सही इतिहास बताने की स्थिति में नहीं है।

    याचिका में कहा गया,

    "यह निष्क्रिया कानून है कि सूचना का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत मौलिक अधिकार का पहलू है और अगर जानकारी बिना किसी वैज्ञानिक तर्क या किसी सबूत के दी गई है तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत मौलिक अधिकार के खिलाफ है।"

    केस टाइटल: डॉ. रजनीश सिंह बनाम भारत संघ और अन्य।

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