एसएफआई ने नागरिकता संशोधन कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी
LiveLaw News Network
18 Jan 2020 4:05 PM GMT
स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें नागरिकता संशोधन कानून की वैधानिकता समेत पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920, की धारा 3(2)(C)और विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 3 ए के तहत वर्ग छूट देने की केंद्र सरकार की शक्ति की वैधता को चुनौती दी गई है।
उल्लेखनीय है कि पिछले महीने से नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के विरोध में राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। कानून के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं हैं।
नागरिकता संशोधन कानून के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार छह धर्मो, हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई के नागरिकों को त्वरित गति से नागरिकता प्रदान किए जाने का प्रावधान है।
उल्लेखनीय है कि कानून में मुस्लिम समुदाय को शामिल नहीं किया गया है।
याचिका में 2015 और 2016 में जारी कुछ अधिसूचनाओं को असंवैधानिक घोषित करने की भी मांग करती है, जिनके जरिए पासपोर्ट नियमों और फॉरेनर्स आर्डर में संशोधन किए गए हैं, जिनके तहत 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के उपरोक्त छह धार्मिक समुदायों के लोगों को भारत में वैध दस्तावेजों के बिना प्रवेश की अनुमति दी गई है।
याचिका में कहा गया है कि पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 की धारा 3 (2)(C) अधिनियम, 1920 केंद्र सरकार को उन नियमों को लागू करने का अधिकार देती है, जो व्यक्तियों के एक विशेष वर्ग को पूर्णतया या सशर्त रूप से उक्त नियमों से छूट प्रदान कर सकते हैं।"
याचिका में विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 3 ए पर भी सवाल उठाया गया है। विधायिका के अत्यधिक शक्तिशाली बन जाने का हवाला देने के लिए दिल्ली कानून अधिनियम, 1912 (1951 एससीआर 747) और दिल्ली नगर निगम बनाम बिरला कॉटन, स्पिनिंग एंड वीविंग मिल्स (1968 3 एससीआर 251) के मामलों को उद्घरण दिया गया है।
याचिका में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 को धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा के खिलाफ बताया गया है, जो कि भारतीय संविधान की मूल संरचना का एक अभिन्न अंग है।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019, संविधान के अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन करता है क्योंकि 'कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया' होने के बावजूद, यह 'न्यायपूर्ण, उचित और तार्किक' नहीं है और जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि नागरिकता संशोधन कानून में शामिल 'धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर भेदभाव' का वैध औचित्य भी नहीं है और यह 'अंतरराष्ट्रीय सौजन्य' के सिद्धांत के खिलाफ है।
उल्लेखनीय है कि सीएए 2019 की संवैधानिकता को के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। मामलों को 22 जनवरी को सुना जाना है।
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