सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन और महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिका को बर्खास्त करने की मांग वाली याचिका दायर

Brij Nandan

16 Jun 2022 4:21 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दिल्ली के कैबिनेट मंत्री सत्येंद्र जैन (Satyendra Jain) और महाराष्ट्र के कैबिनेट मत्री नवाब मलिक (Nawab Malik) को बर्खास्त करने की मांग वाली याचिका दायर की गई है।

    याचिका में मांग की गई है कि मंत्री, जो जो न केवल आईपीसी की धारा 21 और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम (PCA) की धारा 2 (सी) के तहत एक लोक सेवक है, बल्कि एक कानून निर्माता भी है और अनुसूची -3 के तहत संवैधानिक शपथ लेता है; 2 दिनों की न्यायिक हिरासत के बाद पद से अस्थायी रूप से वंचित कर दिया जाए (जैसे आईएएस, न्यायाधीशों और अन्य लोक सेवकों को सेवाओं से निलंबित कर दिया जाता है।)

    यह याचिका एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की है।

    बता दें, सत्येंद्र जैन को काले धन, बेनामी संपत्तियों, भूत कंपनियों, मनी लॉन्ड्रिंग और आय से अधिक संपत्ति के मामलों में 31.05.2022 को गिरफ्तार किया गया था। अभी वे न्यायिक हिरासत में हैं।

    वहीं, कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक को दाऊद इब्राहिम से जुड़े काले धन, बेनामी संपत्तियों, मनी लॉन्ड्रिंग और आय से अधिक संपत्ति के मामलों में 23.2.2022 को गिरफ्तार किया गया था। मलिक अभी न्यायिक हिरासत में हैं।

    याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की है कि वैकल्पिक रूप से, संविधान का संरक्षक होने के नाते, भारत के विधि आयोग को विकसित देशों के चुनाव कानूनों की जांच करने और अनुच्छेद 14 की भावना में मंत्रियों, विधायकों और लोक सेवकों के पद के सम्मान को बनाए रखने के लिए एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया जाए।

    याचिका में कहा गया है कि कोर्ट ने दोनों की जमानत अर्जी खारिज कर दी है, लेकिन दोनों मंत्री आज तक संवैधानिक पद पर हैं।

    याचिका में यह भी कहा गया है कि लोक सेवकों के विपरीत, नवाब मलिक और सत्येंद्र जैन जैसे मंत्री लंबे समय तक न्यायिक हिरासत में रहते हुए भी संवैधानिक स्थिति का आनंद ले रहे हैं, जो कि मनमाना और अनुच्छेद 14 के विपरीत है।

    याचिका कहती है कि विधायक या सांसद को सदन की बैठक के सभी दिनों में उपस्थित रहना होता है। उस पर सदन से अनुपस्थिति पर प्रतिबंध इस हद तक है कि उसे अपनी अनुपस्थिति के लिए अध्यक्ष की अनुमति लेनी पड़ती है। इतना ही नहीं यदि वह 60 दिनों तक बैठक से अनुपस्थित रहता है तो उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है।

    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 में कहा गया है कि एक सांसद को अयोग्य ठहराया जा सकता है यदि वह "लाभ का पद" रखता है। 10वीं अनुसूची के तहत सांसद चुने जाने के बाद यदि वह अपनी पार्टी छोड़ता है या दल बदलता है तो उसे अयोग्य भी ठहराया जा सकता है।

    अनुच्छेद 101 के तहत, यदि कोई सांसद बिना अनुमति के 60 दिनों से अधिक समय तक बैठकों से अनुपस्थित रहता है, तो उसकी सीट खाली घोषित की जा सकती है।

    अनुच्छेद 104 के तहत, यदि कोई सांसद शपथ लिए बिना संसद में बैठता है या मतदान करता है, तो उसे प्रति दिन 500 रुपये तक का जुर्माना देना होगा। हालांकि, सांसदों के प्रदर्शन को मापने के लिए संविधान या प्रक्रिया के नियमों में कोई प्रावधान नहीं है।

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