धारा 482 सीआरपीसी: असाधारण मामलों में संक्षिप्त कारण बताते हुए अंतरिम संरक्षण आदेश पारित किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

21 July 2021 8:17 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट अपवादात्मक मामलों में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत याचिकाओं में संक्षिप्त कारण बताते हुए अंतरिम संरक्षण आदेश पारित कर सकता है।

    न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ ने कहा, "निहारिका इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र सरकार' मामले में जिस बात को लेकर असहमति प्रकट की गयी है, वह यह है कि अदालतों की प्रवृत्ति है कि वे केवल इतना लिखकर आवृत्त, गुप्त, संक्षिप्त, अस्पष्ट आदेश पारित करते हैं कि 'कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा'।"

    इस मामले में तेलंगाना हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आरोपी द्वारा दायर एक याचिका में मामले में आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने भी अपने आदेश में कारण बताये थे। इसने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि आपराधिक मामला आरोपी और शिकायतकर्ताओं के बीच चुनावी विवाद से जुड़ा है।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए, यह तर्क दिया गया था कि हाईकोर्ट को आगे की कार्यवाही पर रोक नहीं लगानी चाहिए, क्योंकि शिकायतों के सामान्य तरीके से पढ़ने से ही प्रथम दृष्ट्या संज्ञेय अपराध प्रतीत होते हैं, खासकर निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र सरकार एवं अन्य तथा स्कोडा ऑटो वोक्सवैगन इंडिया प्रा. लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में निर्दिष्ट कानून के दायरे में।

    कोर्ट ने दलीलों को खारिज करते हुए कहा,

    "22... निहारिका मामले (सुप्रा) ने निश्चित रूप से हाईकोर्ट को असाधारण मामलों में सावधानी के साथ, संक्षिप्त कारण बताते हुए आक्षेपित प्रकृति के एक अंतरिम आदेश पारित करने की अनुमति दी हुई है।" 'निहारिका मामले में जिस बात को लेकर असहमति प्रकट की गयी है, वह यह है कि अदालतों की प्रवृत्ति है कि वे केवल इतना लिखकर आवृत्त, गुप्त, संक्षिप्त, अस्पष्ट आदेश पारित करते हैं कि "कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा।" निहारिका मामले में रिपोर्ट के 60वें पैरा में कोर्ट ने माना है कि अभियुक्त को दबाव में रखने के लिए दीवानी विवादों को आपराधिक मामलों में तब्दील करने तथा विधिक प्रक्रिया के दुरुपयोग के आरोप लग सकते हैं। इन याचिकाओं में आक्षेपित आदेश में हाईकोर्ट ने विस्तृत कारण बताए हैं कि चुनाव धोखाधड़ी के आरोपों के संबंध में कार्यवाही के दौरान बैंक धोखाधड़ी के आरोप कैसे विकसित हुए? इसलिए, निहारिका सिद्धांतों के आलोक में आक्षेपित आदेश को बुरा नहीं कहा जा सकता है।"

    पीठ ने हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल का भी जिक्र करते हुए कहा,

    "निहारिका में निर्णय के पैरा 37 में, भजन लाल मामले से उपरोक्त अंश निकाला गया है। वास्तव में भजन लाल (सुप्रा) मामले में मुख्य न्यायाधीश भगवती, द्वारा 'शिवनंदन पासवान बनाम बिहार राज्य' में व्यक्त किए गए विचार पर ध्यान दिया गया था "कि कोई आपराधिक अभियोजन, यदि अन्यथा उचित और पर्याप्त साक्ष्य पर आधारित हो, तो वह पहले मुखबिर या शिकायतकर्ता की दुर्भावना या राजनीतिक प्रतिशोध के कारण बेकार नहीं हो जाता है।" फिर भी भजन लाल (सुप्रा) मामले ने पैराग्राफ 102 में सात सिद्धांत निर्धारित किए, जो हमने अंतिम रूप से निकाले थे। ऊपर भजन लाल (एक दो सदस्यीय पीठ) के पैराग्राफ 102 में प्रतिपादित सात सिद्धांत वास्तव में निहारिका (तीन सदस्यीय पीठ) में अनुमोदन के साथ उद्धृत किए गए हैं।"

    पीठ ने उपरोक्त टिप्पणी के साथ अपील को खारिज कर दिया।

    कोरम: न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम

    वकील: याचिकाकर्ता के लिए अधिवक्ता दिलजीत सिंह अहलूवालिया, प्रतिवादियों के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा, वरिष्ठ अधिवक्ता निरंजन रेड्डी

    साइटेशन : एलएल 2021 एससी 309

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