एक समान तथ्यों पर दायर दूसरी शिकायत सुनवाई योग्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

7 March 2020 6:45 AM GMT

  • एक समान तथ्यों पर दायर दूसरी शिकायत सुनवाई योग्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि किसी शिकायत का पहले निपटारा योग्यता के आधार पर और कानून के तहत निर्धारित तरीके से हो चुका हो तो लगभग उन्हीं तथ्यों के समान तथ्यों के आधार पर दायर दूसरी शिकायत (जो तथ्य पहली शिकायत में उठाए गए थे) सुनवाई योग्य नहीं होगी।

    जस्टिस यू.यू ललित और जस्टिस विनीत सरन की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि पहली शिकायत के समान तथ्यों पर दायर दूसरी शिकायत सुनवाई योग्य नहीं हो सकती। पीठ ने कहा कि यदि दोनों शिकायतों का मूल एक ही था तो दूसरी शिकायत पर सुनवाई नहीं की जानी चाहिए।

    मामले की पृष्ठभूमि

    अपीलकर्ता के ससुर के पास मारुति 800 कार थी और 12 दिसंबर, 2001 को उनका निधन हो गया। ससुर की मौत के बाद परिवार में विधवा सास, उनके तीन बेटे और एक बेटी रह गए।

    अपीलकर्ता के पति के भाई (शिकायतकर्ता) ने अपीलकर्ता और उसके पति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 409, 420, 467, 468 और 471 के तहत शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि उनके पिता के जाली हस्ताक्षर शपथ पत्र पर इस्तेमाल किए गए और मारुति 800 कार को बेच दिया गया था।

    05 जुलाई 2013 को जब यह शिकायत न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी, जबलपुर के सामने सुनवाई के लिए आई तो कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि अपीलकर्ता और उसके पति के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है।

    शिकायतकर्ता ने VIII अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, जबलपुर के समक्ष पुनःविचार अर्जी दायर की। हालांकि, बाद में उन्होंने कहा कि वह पुनर्विचार अर्जी वापस लेना चाहते हैं, इसलिए उनको कुछ नए तथ्यों के आधार पर एक नई शिकायत दायर करने की स्वतंत्रता देते हुए रिवीजन को वापस लेने की अनुमति दी जाए।

    कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने के लिए कोई अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि नए तथ्यों के आधार पर किसी भी समय एक नई शिकायत दर्ज की जा सकती है।

    इसके बाद शिकायतकर्ता ने उन्हीं आरोपों के आधार पर शिकायत दर्ज की, लेकिन अपनी शिकायत को पुष्ट करने के लिए अतिरिक्त सामग्री प्रस्तुत की और कहा कि आईपीसी की धारा 201, 409, 420, 467, 468 और 471 के तहत संज्ञान लिया जाए।

    न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, जबलपुर ने आईपीसी की धारा 420 के तहत दंडनीय अपराध के संबंध में संज्ञान लिया, लेकिन इस शिकायत को अन्य अपराधों के संबंध में खारिज कर दिया। इस आदेश को शिकायतकर्ता ने आपराधिक पुनर्विचार के तहत चुनौती दी थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया था। साथ ही मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया गया था कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध दस्तावेजों पर पुनर्विचार करें और उचित अपराधों के संबंध में संज्ञान लेने के बाद उचित आदेश पारित करें। अपीलकर्ताओं ने इस आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी।

    उस आदेश के सदंर्भ में प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने शिकायत में लगाए गए सभी कथित अपराधों पर संज्ञान लिया और अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप तय किए गए।

    इसके बाद, अपीलकर्ताओं ने हाईकोर्ट के समक्ष आरोप तय करने के आदेश को भी चुनौती दे दी थी।

    हाईकोर्ट ने कहा

    हाईकोर्ट ने दोनों रिवीजन पर सुनवाई की और दूसरी शिकायत को बनाए रखने के सवाल पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और रिवीज़न याचिकाओं को खारिज कर दिया। साथ ही अपीलकर्ताओं को निर्देश दिया कि दो सप्ताह के भीतर न्यायालय की रजिस्ट्री में 45000 रुपये ( केवल पैंतालीस हजार रुपये) की राशि जमा कराएं।

    लेकिन इस तरह के सुझाव शिकायतकर्ता को स्वीकार्य नहीं थे और इसलिए हाईकोर्ट ने इस मामले की विस्तार से सुनवाई की।

    बाद में हाईकोर्ट ने रिवीज़न याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि दूसरी शिकायत को बनाए रखा जा सकता है। इससे दुखी होकर अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

    सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

    हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील को अनुमति देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहली शिकायत के समान तथ्यों पर दर्ज की गई दूसरी शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है। प्रमथा नाथ तालुकदार बनाम सरोज रंजन सरकार मामले में दिए फैसले पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा कि,

    ''वर्तमान मामले में दायर पहली शिकायत में कोई कानूनी दुर्बलता नहीं थी। वाहन की बिक्री के लगभग एक साल बाद शिकायत दर्ज की गई थी इसका मतलब यह था कि शिकायतकर्ता के पास उसके निपटान के बाद उचित समय था।

    न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पाया कि कोई भी प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है, जिसके बाद पहली शिकायत को खारिज कर दिया गया था, इसलिए पहली शिकायत को किसी तकनीकी आधार पर नहीं निपटाया गया था। दूसरी शिकायत में बताए गए तथ्य या सामग्री केवल सहायक सामग्री की प्रकृति के थे और दूसरी शिकायत में जिन तथ्यों पर विश्वास किया गया है वे ऐसे नहीं थे जो पहले नहीं बताए जा सकते थे या एकत्रित नहीं किए जा सकते थे। प्रासंगिक रूप से, दोनों शिकायतों में मुख्य आरोप समान थे।''

    वहीं, न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि अपीलकर्ताओं द्वारा जमा की गई राशि उनको वापस लौटा दी जाए। अगर उस राशि पर कोई ब्याज बनता है तो वह भी अपीलकर्ताओं को दिया जाए।

    वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत कामत, साथ में वकील अमित पई और राजेश इनामदार अपीलकर्ता के लिए उपस्थित हुए। वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा प्रतिवादियों के लिए पेश हुई।

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