Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

SC/ST अत्याचार निवारण( संशोधन ) कानून 2018 पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने फिर किया इनकार, 19 फरवरी को सुनवाई

Rashid MA
30 Jan 2019 5:09 PM GMT
SC/ST अत्याचार निवारण(  संशोधन ) कानून 2018 पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने फिर किया इनकार, 19 फरवरी को सुनवाई
x

SC/ST अत्याचार निवारण (संशोधन) कानून 2018 पर दाखिल जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर इस संशोधन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

बुधवार को सुनवाई करते हुए जस्टिस यू. यू. ललित और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने कहा कि इस मामले में विस्तार से सुनवाई की जरूरत है और पीठ इस पर 19 फरवरी को सुनवाई करेगी। इस दौरान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अलावा केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर भी सुनवाई होगी।

इससे पहले कानून पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ए. के. सीकरी की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने याचिकाओं को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया था।

पीठ को बताया गया था कि 20 मार्च 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार याचिका लंबित है। इस पर पीठ ने कहा कि संशोधित कानून को लेकर दाखिल जनहित याचिकाओं व पुनर्विचार याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई होनी चाहिए। ऐसे में याचिकाओं पर जस्टिस यू. यू. ललित की पीठ में सुनवाई होनी चाहिए और चीफ जस्टिस को उक्त पीठ का गठन करना चाहिए।

इससे पहले पीठ ने संशोधित कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर 6 हफ्ते में उनकी ओर से जवाब मांगा था।

पीठ ने हालांकि, संशोधित कानून पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा था कि इस मामले में केंद्र सरकार का पक्ष सुने बिना रोक नहीं लगाई जा सकती। इस मामले में उचित परीक्षण जरूरी है।

दरअसल वकील पृथ्वी राज चौहान और प्रिया शर्मा द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च 2018 के आदेश को फिर से लागू करने और संशोधन एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।

संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नए कानून 2018 में नए प्रावधान 18 A के लागू होने से फिर दलितों को सताने के मामले में तत्काल गिरफ्तारी होगी और अग्रिम जमानत भी नहीं मिल पाएगी।

एससी एसटी संशोधन कानून 2018 को लोकसभा और राज्यसभा से पास करने के बाद नोटिफाई कर दिया गया है। इस संशोधन कानून के जरिये एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून की धारा 18 ए कहती है कि, इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है और न ही जांच अधिकारी को व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है।

इस कानून के तहत अपराध करने वाले आरोपी को अग्रिम जमानत के प्रावधान (सीआरपीसी की धारा 438) का लाभ नहीं मिलेगा। यानि उसे अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। संशोधित कानून में साफ कहा गया है कि इस कानून के उल्लंघन पर कानून में दी गई प्रक्रिया का ही पालन होगा और अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को दिए गए फैसले में एससी-एसटी कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशा निर्देश जारी किये थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शिकायत मिलने के तुरंत बाद मामला दर्ज नहीं होगा। डीएसपी पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच करके पता लगाएंगे कि आरोपी के खिलाफ वह मामला झूठा या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है।

इसके अलावा इस कानून में एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरी ली जाएगी। इतना ही नहीं कोर्ट ने अभियुक्त की अग्रिम जमानत का भी रास्ता खोल दिया था।

वैसे 20 मार्च के फैसले के खिलाफ केन्द्र सरकार की पुनर्विचार याचिका अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। पुनर्विचार याचिका पर, इस मामले में मुख्य फैसला देने वाली जस्टिस आदर्श कुमार गोयल व जस्टिस यूयू ललित की पीठ सुनवाई कर रही थी और इस पीठ ने फैसले पर अंतरिम रोक लगाने की सरकार की मांग ठुकरा दी थी। इस बीच जस्टिस गोयल सेवानिवृत हो चुके हैं।

Next Story