सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के आदेश को उचित ठहराया, अग्रिम जमानत की शर्त के रूप में पति को बीस हजार रुपये प्रतिमाह पत्नी को देने होंगे

LiveLaw News Network

18 Oct 2020 9:43 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के आदेश को उचित ठहराया, अग्रिम जमानत की शर्त के रूप में पति को बीस हजार रुपये प्रतिमाह पत्नी को देने होंगे

    सुप्रीम कोर्ट ने एक पति की तरफ से पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है। पटना हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पति को अग्रिम जमानत देते हुए शर्त लगाई थी कि वह हर महीने अपनी पत्नी को बीस हजार रुपये दे।

    इस मामले में, पत्नी ने याचिकाकर्ता पति के खिलाफ एक घरेलू हिंसा की शिकायत दायर की थी। इसी मामले में अग्रिम जमानत की मांग करते हुए पति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अदालत ने इस अग्रिम जमानत याचिका का निपटारा करते हुए कहा था कि दोनों पक्षों के बीच तलाक का मामला लंबित है। इसलिए, हाईकोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया था परंतु साथ में एक शर्त लगा दी थी कि उसे अपनी पत्नी को बीस हजार रुपये मासिक भुगतान करना होगा। हालांकि उसने आदेश में संशोधन करने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया था,परंतु उस आवेदन को खारिज कर दिया गया।

    इन आदेशों को चुनौती देते हुए पति ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया। उसने दलील दी कि अग्रिम जमानत देने की कार्यवाही किसी मामले में रखरखाव देने के लिए सही कार्यवाही नहीं है। कहा गया कि हाईकोर्ट अग्रिम जमानत की सुनवाई करते हुए रखरखाव के मुद्दे को तय करने के लिए उपयुक्त फोरम नहीं है। उसने यह भी दलील दी कि उसकी वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है। इस कारण वह अग्रिम जमानत के बदले प्रतिवादी को मासिक रखरखाव का भुगतान करने की स्थिति में नहीं हैं।

    याचिकाकर्ता ने मुनीष भसीन व अन्य बनाम राज्य ( एनसीटी आॅफ दिल्ली) व अन्य(2009) 4 एससीसी 45 के मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए दलील दी कि जो शर्ते लगाई जा सकती है,वो इस प्रकार होनी चाहिए-


    (1) जांच अधिकारी के समक्ष या न्यायालय के समक्ष अभियुक्त की उपस्थिति को सुरक्षित करने के लिए,

    (2) उसे न्याय के मार्ग से भागने से रोकने के लिए,

    (3) उसे सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने से रोकने के लिए या गवाहों को प्रेरित करने या डराने से रोकने के लिए ताकि उन्हें पुलिस या न्यायालय के समक्ष तथ्यों का खुलासा करने से रोक न जाए,

    (4) किसी विशेष क्षेत्र या इलाके में अभियुक्त की आवाजाही को प्रतिबंधित करना या कानून और व्यवस्था आदि को बनाए रखना।

    यह भी बताया गया कि, उक्त निर्णय में यह माना गया है कि अभियुक्त को किसी अन्य शर्त के अधीन करना ,कोड की धारा 438 के तहत न्यायालय को प्रदत्त शक्ति के अधिकार क्षेत्र से परे होगा। उक्त निर्णय में, अदालत ने हाईकोर्ट के उस निर्देश को रद्द कर दिया था, जिसमें एक पति को अपनी पत्नी और बच्चे को रखरखाव का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट ने पति व उसके माता-पिता को अग्रिम जमानत देते हुए यह शर्त लगाई थी। इस मामले में भी पत्नी ने अपने पति व ससुरालवालों के खिलाफ शिकायत दायर की थी।

    जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने इस मामले में दायर एसएलपी को खारिज करते हुए कहा कि हमें हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिख रहा है।

    केस- मोहन मुरारी बनाम बिहार राज्य ,डायरी नंबर 20961/ 2020,

    कोरम- जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कृष्ण मुरारी

    प्रतिनिधित्व-वकील वैभव चैधरी, एओआर लजेफर अहमद बी. एफ।

    आदेश की काॅपी यहां से डाउनलोड करें।



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