मुंबई पुलिस से केस सीबीआई को ट्रांसफर करने की अर्नब गोस्वामी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को फैसला सुनाएगा

LiveLaw News Network

18 May 2020 4:36 PM GMT

  • मुंबई पुलिस से केस सीबीआई को ट्रांसफर करने की अर्नब गोस्वामी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को फैसला सुनाएगा

    सुप्रीम कोर्ट रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी द्वारा दायर रिट याचिका पर मंगलवार को फैसला सुनाएगा, जिसमें कथित सांप्रदायिक टिप्पणी को लेकर दर्ज एफआईआर में महाराष्ट्र पुलिस से सीबीआई को जांच ट्रांसफर करने की मांग की गई है।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने 11 मई को आदेश सुरक्षित रखा था।

    मुंबई पुलिस ने बांद्रा में प्रवासियों के एकत्र होने की रिपोर्ट में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए अर्नब गोस्वामी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को अर्नब गोस्वामी द्वारा दायर याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया था, जिसमें मुंबई पुलिस द्वारा बांद्रा में प्रवासियों के इकट्ठा होने की उनकी रिपोर्ट के जरिए सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई।

    गोस्वामी ने मुंबई पुलिस की निष्पक्षता पर संदेह जताते हुए सीबीआई को जांच स्थानांतरित करने की भी मांग की है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने एफआईआर पर फैसला सुनाने तक के लिए कठोर कार्रवाई से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की थी।

    रिपब्लिक टीवी चीफ के लिए पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि आपराधिक जांच का मकसद पत्रकारिता के लिए उनके मुवक्किल को परेशान करना है। उन्होंने कहा कि 25 अप्रैल को पुलिस द्वारा गोस्वामी से 12 घंटे लंबी पूछताछ की गई थी।

    महाराष्ट्र राज्य के लिए पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने इसका विरोध किया और कहा कि मामले को सीबीआई को हस्तांतरित करने का मतलब होगा "जांच आपके हाथ में जाएगी।"

    सिब्बल के इस बयान पर भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कड़ी आपत्ति जताई। इस संदर्भ में साल्वे ने कहा "श्री सिब्बल का बयान इस मामले को सीबीआई को स्थानांतरित करने की आवश्यकता को दर्शाता है। यह राज्य और केंद्र के बीच एक राजनीतिक समस्या है और मुझे मैं उनकी क्रॉस फायरिंग में फंस गया हूं।"

    सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि उनके पास मामले में लेने के लिए कोई पक्ष नहीं है, और यह नहीं कह रहे हैं कि अदालत को याचिकाकर्ता की प्रार्थना को स्वीकार या अस्वीकार करना चाहिए।

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