सुप्रीम कोर्ट ने ओपइंडिया की संपादक नूपुर शर्मा, सीईओ राहुल रौशन आदि के ख़िलाफ़ दर्ज एफआईआर पर पश्चिम बंगाल पुलिस की जांच पर रोक लगाई
LiveLaw News Network
26 Jun 2020 7:26 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल ओपइंडिया के संपादकों और संस्थापकों के ख़िलाफ़ दायर तीन एफआईआर पर पश्चिम बंगाल पुलिस की आगे की जाँच पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश दिया।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने यह अंतरिम आदेश पास किया। इस बारे में रिट याचिका ओपइंडिया की संपादक नूपुर शर्मा, उसके पति वैभव शर्मा, न्यूज़ पोर्टल के संस्थापक और सीईओ राहुल रौशन और इसके हिंदी विंग के संपादक अजीत भारती ने दायर की थी।
वक़ील महेश जेठमलानी ने याचिककर्ताओं की पैरवी की और कहा कि यह एफआईआर प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने के लिए पुलिस द्वारा क़ानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। यह कहा गया यह कार्रवाई इसलिए की गई है क्योंकि पोर्टल ने पश्चिम बंगाल सरकार की आलोचना वाली खबरें प्रकाशित की हैं।
यह कहा गया कि खबरें अन्य मीडिया संगठनों ने भी प्रकाशित की पर पश्चिम बंगाल की पुलिस ने ओपइंडिया के संपादकों के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई की है।
याचिकाकर्ताओं ने शिकायत की कि उन्हें एफआईआर की प्रतियां नहीं दी गईं और यूथ बार एसोसिएशन मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक़ इसे वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया।
दलील में कहा गया कि
"प्रतिवादी नम्बर 1-राज्य सरकार की मंशा इतनी गलत है कि एक ओर तो वह प्रेस की आज़ादी को कुचलना चाहती है और सीआरपीसी, 1973 की धारा 41A के तहत नोटिस जारी कर रही है, जिसकी वजह से याचिकाकर्ताओं की जान और उनकी निजी आज़ादी को ख़तरा उत्पन्न हो गया है और बार बार आग्रह करने के बावजूद एफआईआर की प्रतियां याचिकाकर्ताओं को देने से मना कर दिया है और इसे अपने आधिकारिक वेबसाइट पर भी अपलोड नहीं किया है जो कि यूथ बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है जिसकी वजह से याचिकाकर्ता सीआरपीसी के तहत उपलब्ध उपचार प्राप्त करने से वंचित हो गए हैं।"
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पुलिस ने उन्हें विवादित न्यूज़ को हटाने के लिए दबाव डाला। पुलिस की कार्रवाई मनमानी, कठोर और संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत प्रेस की आज़ादी के ख़िलाफ़ है।
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