विकास दुबे एनकाउंटर की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व SC जज जस्टिस बीएस चौहान के नेतृत्व में आयोग का गठन किया
LiveLaw News Network
22 July 2020 2:03 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यूपी के गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर के मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बी एस चौहान की अध्यक्षता में एक जांच आयोग के गठन को मंज़ूरी दे दी।
न्यायमूर्ति चौहान का नाम सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुझाया था, जो उत्तर प्रदेश सरकार के लिए पेश हुए थे। एसजी ने सीजेआई एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि न्यायमूर्ति चौहान आयोग का हिस्सा बनने के लिए सहमत हो गए हैं।
एसजी ने जांच टीम का हिस्सा बनने के लिए यूपी के पूर्व पुलिस महानिदेशक केएल गुप्ता का नाम भी सुझाया। उन्होंने प्रस्तुत किया कि पूर्व डीजीपी की सभी पृष्ठभूमि की जांच की गई है। एसजी ने सुझाव दिया कि आयोग लगभग 65 आपराधिक मामलों का सामना करने के बावजूद विकास दुबे को जमानत / पैरोल पर रिहा करने की स्थिति में जांच करेगा।
सीजेआई बोबडे ने कहा कि राज्य के अधिकारियों की विफलता की जांच हो जिसके कारण दुबे को जमानत "महत्वपूर्ण कारक" रहा।
सॉलिसिटर जनरल द्वारा सुझाए गए नामों को मंजूरी देते हुए, पीठ ने आयोग को 1 सप्ताह की अवधि में जल्द से जल्द काम शुरू करने का निर्देश दिया। इसे आगे कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट के संदर्भ में दो महीने के भीतर शीर्ष अदालत को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।
कोर्ट ने आगे आदेश दिया कि केंद्र को आयोग के अध्यक्ष द्वारा निर्देशित सचिवीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता घनश्याम उपाध्याय के आयोग में उनके द्वारा प्रस्तावित न्यायाधीशों को शामिल करने के सुझाव को स्वीकार नहीं किया। याचिकाकर्ता ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और आरएम लोढ़ा, और पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगड़े, अनिल आर दवे, कुरियन जोसेफ, फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला, एम वाई इकबाल, एके पटनायक, विक्रमजीत सेन, केएस पनिकर राधाकृष्णन और एचएल गोखले सहित एक सूची प्रस्तुत की थी। सूची में हाल ही में सेवानिवृत्त जस्टिस दीपक गुप्ता और आर बानुमति भी शामिल थे।
जस्टिस चौहान के चयन का समर्थन करते हुए, सीजेआई ने याचिकाकर्ता से कहा, " आपको जस्टिस चौहान के कमीशन के गठन में गलती नहीं ढूंढनी चाहिए।"
याचिकाकर्ता ने स्पष्ट किया कि वह न्यायमूर्ति चौहान की साख पर संदेह नहीं कर रहे बल्कि उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को भी शामिल करने की मांग कर रहे थे।
पीठ ने यूपी राज्य में आयोग के काम करने के विरोध को भी नहीं माना और कहा कि आयोग कानपुर में स्थित होगा।
इसके अलावा, वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख (एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश) द्वारा दी गई याचिका को ठुकराते हुए, पीठ ने कहा कि वह मामले में यूपी पुलिस की एसआईटी द्वारा की गई जांच की निगरानी नहीं करेगी।
मुंबई के एक वकील, उपाध्याय ने 10 जुलाई को याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि यूपी पुलिस ने दुबे की पांच सहयोगियों को मुठभेड़ में मार गिराया है। उन्होंने आशंका व्यक्त की कि अदालत द्वारा तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया गया तो दुबे भी मुठभेड़ में मारा जाएगा।
इससे पहले कि उनकी याचिका को सूचीबद्ध किया जाता, दुबे को 11 जुलाई की सुबह एक मुठभेड़ में मार दिया गया, जो तब हुआ जब उसे उज्जैन (मप्र) से कानपुर ले जाया जा रहा था।
पुलिस ने दावा किया कि काफिले के एक वाहन के पलट जाने के बाद दुबे ने पुलिस की पिस्तौल छीनकर भागने की कोशिश की थी।
यूपी पुलिस ने कोर्ट में एक जवाबी हलफनामा दायर किया है जिसमें कहा गया है कि दुबे का एनकाउंटर निर्मित नहीं था बल्कि असली था क्योंकि उसका मकसद उन पुलिसकर्मियों को मारकर भागना जो उसका रखवाली कर रहे थे।
विकास दुबे की गिरफ्तारी के बाद होने वाली घटनाओं के क्रम को बताते हुए, पुलिस ने कहा कि एसयूवी द्वारा उसे ले जाने के दौरान बराजर टोल प्लाजा के बाद अचानक "भारी बारिश" के कारण गाड़ी पलट गई क्योंकि "मवेशियों का झुंड अचानक दाहिनी ओर से सड़क पर दौड़ता हुआ आया" और इससे पुलिस कर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए और होश खोने लगे। इस दौरान दुबे ने एक पुलिसकर्मी पिस्तौल छीन ली और फरार होने लगा। इसी दौरान पुलिस और दुबे के बीच क्रास फायरिंग हुई जिसमें वो मारा गया।