सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा, सीवर सफाई के दौरान मौत पर उठाए सवाल

LiveLaw News Network

18 Sep 2019 9:42 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट पुनर्विचार याचिका  पर फैसला सुरक्षित रखा, सीवर सफाई के दौरान मौत पर उठाए सवाल

    SC/ST एक्ट के प्रावधानों को हल्का करने के 20 मार्च, 2018 के फैसले पर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के बाद तीन जजों की पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। पीठ अब फैसले के बाद लाए गए संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 25 सितंबर को सुनवाई करेगा।

    जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान मानवीय तरीके से सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों पर सरकार को कड़ी फटकार लगाई।

    "सीवर सफाई में लोग मर रहे हैं, सरकार क्या कर रही है "

    जस्टिस मिश्रा ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपालन से कहा कि सीवर सफाई में रोजाना लोगों की जान जा रही है। इन लोगों को मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर तक नहीं दिए जाते। सरकार क्या कर रही है ?

    उन्होंने कहा, " ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के 70 साल बाद भी जातिगत भेदभाव को दूर करने का प्रयास नहीं किया गया है। इस तरह लोगों को मरने नहीं दिया जा सकता।" पीठ ने AG को इस संबंध में उठाए जाने वाले कदमों व उपायों पर एक नोट दाखिल करने को कहा। पीठ ने कहा कि दुनियाभर के किसी भी देश में इस तरह लोगों को सीवर सफाई के लिए नहीं भेजा जाता।

    वहीं AG ने कहा कि वो जानते हैं कि सीवर सफाई में कैसे लोगों की जान जा रही है। वहीं याचिकाकर्ता की ओर ये गोपाल शंकरनारायण ने पीठ को बताया कि हर साल सीवर सफाई के दौरान करीब 300 लोगों की मौत हो जाती है।

    बड़ी बेंच के गठन के लिए मामले को CJI रंजन गोगोई के पास भेजा था

    इससे पहले 13 सितंबर को दो जजों की पीठ ने बड़ी बेंच के गठन के लिए मामले को CJI रंजन गोगोई के पास भेज दिया था। अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस यू यू ललित की पीठ ने कहा था, " मामला महत्वपूर्ण है और इसे देखते हुए हम लगता है कि इसकी सुनवाई तीन जजों की पीठ को करनी चाहिए। इसे अगले सप्ताह सुनवाई के लिए लगाया जाए।"

    दरअसल देश में कानून जाति तटस्थ और एकसमान होने चाहिए,ये कहते हुए एक मई को सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने कहा था कि देश में कानून एकसमान होना चाहिए और ये सामान्य वर्ग या एससी / एसटी वर्ग के लिए नहीं हो सकता।

    पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल की दलीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। शुरुआत में वेणुगोपाल ने कहा था कि मार्च का फैसला "समस्याग्रस्त" था और अदालत द्वारा इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। पिछले साल फैसले का समर्थन करने वाले पक्षकारों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा था कि केंद्र की पुनर्विचार याचिका के कोई मायने नहीं रह गए हैं क्योंकि संसद पहले ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2018 को पारित कर चुकी है ताकि फैसले के प्रभावों को बेअसर किया जा सके।

    उन्होंने कहा था कि संशोधन अधिनियम पर तब तक रोक लगाई जानी चाहिए जब तक अदालत केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर अपना फैसला नहीं दे देती। पीठ ने कहा कि अगर फैसले में कोई गलत किया गया है तो उसे हमेशा पुनर्विचार याचिका में सुधारा जा सकता है।

    वहीं वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने फैसले का समर्थन करने वाले एक पक्षकार की ओर से कहा था कि फैसले में दिया गया तत्काल गिरफ्तारी से सरंक्षण संविधान की भावना के खिलाफ नहीं है। इसका हर पहलू कानून के अनुसार है।

    दरअसल शीर्ष अदालत ने 30 जनवरी कोएससी / एसटी एक्ट में संशोधन पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। एससी और एसटी कानून के तहत गिरफ्तारी के खिलाफ कुछ सुरक्षा उपायों से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए पिछले साल 9 अगस्त को संसद ने एक विधेयक पारित किया था।

    एससी / एसटी अधिनियम के दुरुपयोग पर SC ने दिया था ध्यान

    शीर्ष अदालत ने 20 मार्च, 2018 को सरकारी कर्मचारियों और निजी व्यक्तियों के खिलाफ कड़े एससी / एसटी अधिनियम के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग पर ध्यान दिया था और कहा था कि कानून के तहत दायर किसी भी शिकायत पर तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी। पीठ ने कहा था कि "कई मौकों" पर, निर्दोष नागरिकों को आरोपी और लोकसेवकों को उनके कर्तव्यों को निभाने से रोका जा रहा है जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम को लागू करते समय विधायिका का ऐसा इरादा कभी नहीं था।

    अदालत ने कहा था कि अत्याचार अधिनियम के तहत मामलों में अग्रिम जमानत देने के खिलाफ कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है, अगर कोई भी प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता या जहां शिकायतकर्ता को प्रथम दृष्टया दोषी पाया जाता है। पीठ ने कहा था कि अत्याचार अधिनियम के तहत मामलों में गिरफ्तारी के कानून के दुरुपयोग के मद्देनजर किसी लोक सेवक की गिरफ्तारी केवल नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा अनुमोदन के बाद और एक गैर-लोक सेवक की गिरफ्तारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के अनुमोदन के बाद ही हो सकती है।

    Tags
    Next Story